रणजीत सिंह: वह भारतीय क्रिकेटर जिन्हें अपनी टीम में लेने के लिए आपस में भिड़ गए थे अंग्रेज

नई दिल्ली
स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले तक भारत में क्रिकेट केवल राजघरानों, राजे-रजवाड़ों, नवाबों और रईसों तक ही सीमित रहा। आमजन में सिर्फ वे लोग ही क्रिकेट खेलते और दिलचस्पी लेते जो क्रिकेट की बदौलत राजघरानों व रियासतों में नौकरी पाना चाहते थे। उदाहरण के लिए आप राजे-रजवाड़ों में पटियाला के महाराज, वडोदरा के महाराज गायकवाड़, पटौदी के नवाब और इंदौर के होलकर्स को शामिल कर सकते हैं। इन्हीं में एक थे भारतीय क्रिकेट के पितामह कहे जाने वाले जामनगर के महाराजा कुमार रणजीत सिंह।

10 सितंबर 1872 को गुजराज के काठियावाड़ के सरोदर गांव में जन्में रणजीत सिंह अगर आज जिंदा होते तो अपना 147वां जन्मदिन मना रहे होते। 16 साल की उम्र में पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए रणजीत सिंह ने भारत में ही क्रिकेट का ककहरा सीखा था। उन्हें करियर के दौरान कुमार रणजीतसिंह, रणजी और स्मिथ के नाम से जाना जाता था। भारत में उन्हीं के नाम से राष्ट्रीय क्रिकेट चैंपियनशिप आयोजित की गई जो आज भी रणजी ट्रॉफी के नाम से चल रही है।

रणजीत सिंह ने अपने छात्र जीवन में क्रिकेट के अलावा फुटबॉल और टेनिस भी खेली, लेकिन क्रिकेट ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई। क्रिकेट की बाइबल कही जाने वाली पत्रिका विजडन ने भी रणजी की प्रतिभा को लोहा मानते हुए उन्हें 1897 में क्रिकेट ऑफ द ईयर से सम्मानित किया था। क्रिकेट के जनक माने जाने वाले डब्ल्यूजी ग्रेस भी उनकी कलात्मक बल्लेबाजी से बेहद प्रभावित थे। उन्होंने कहा था कि दुनिया को अगले सौ साल तक रणजी जैसा बेहतरीन बल्लेबाज देखने को नहीं मिलेगा।

रणजी को उनकी निराली बल्लेबाजी के लिए जाना जाता था। रणजीत सिंह ने अपनी कलाईयों की जादूगरी से इस खेल में लेग ग्लांस जैसे ऑन साइड के कई नए स्ट्रोक जोड़े थे। रणजी अपने जमाने के ऐसे बल्लेबाज थे जिनके पास कई तरह के स्ट्रोक की भरमार थी। इसका जिक्र रणजी के दोस्त सीबी फ्राई ने भी किया था।

फ्राई ने कहा था कि यदि कोई बल्लेबाज ऑन साइड पर ऐसे क्षेत्र में गेंद हिट करता था जहां के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं हो तो वह गेंदबाज से माफी मांगता था। विरोधी टीम का कप्तान कभी उस क्षेत्र में क्षेत्ररक्षक नहीं लगाता था। वह अपेक्षा करता था आप भद्रजन की तरह ऑफ साइड पर ही स्ट्रोक खेलेंगे। रणजी ने हालांकि इस धारणा को बदलकर रख दिया था और अपनी कलाईयों के इस्तेमाल से ऑन साइड पर काफी रन बटोरे थे।

रणजी के इसी कौशल के कारण इंग्लैंड के चयनकर्ताओं को उन्हें अपनी टीम में शामिल करने के लिए मजबूर होना पड़ा। वह इंग्लैंड की टीम में शामिल होने वाले एशियाई मूल के पहले क्रिकेटर थे। उस वक्त भारत में अंग्रेजों का शासन था और रणजीत का इंग्लैंड टीम में चयन हुआ था।

रणजीत के इंग्लैंड टीम में चयन को लेकर काफी विवाद भी हुआ था। रणजीत का जब 1896 में इंग्लैंड टीम में चयन हुआ तब लार्ड हारिस इस चयन के खिलाफ थे। उनका कहना था कि रणजीत का जन्म इंग्लैंड में नहीं बल्कि भारत में हुआ है, तो इंग्लैंड टीम में उनका चयन नहीं होनी चाहिए।

हालांकि बाद में खुद पर लगे दांव को रणजीत सिंह ने सही साबित किया और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जुलाई 1896 में मैनचेस्टर में खेले गए अपने पहले टेस्ट मैच में ही 62 और नाबाद 154 रन की दो लाजवाब पारियां खेल डाली।

रणजीत तेज खेलते हुए 23 चौके की मदद से 154 पर नॉट आउट थे और दुनिया के पहले खिलाड़ी बन गए जिन्हें अपने पहले टेस्ट मैच में पहली पारी में अर्धशतक और दूसरे पारी में शतक मारने का गौरव हासिल हुआ। सिर्फ इतना ही नहीं रणजीत टेस्ट क्रिकेट के पहला खिलाड़ी थे, जो अपने करियर के पहले टेस्ट मैच में शतक ठोकते हुए नॉट आउट रहे।

1897 जब इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई तो रणजी ने सिडनी में पहले टेस्ट मैच में 7वें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए उतरकर 175 रन की बेहतरीन पारी खेली थी जिससे इंग्लैंड नौ विकेट से जीत दर्ज करने में सफल रहा था। रणजी इस मैच से पहले बीमार थे और वह कमजोरी महसूस कर रहे थे लेकिन इंग्लैंड की टीम उन्हें बाहर नहीं रखना चाहती थी।

विजडन ने उनकी इस पारी के बारे में लिखा था कि उनकी शारीरिक स्थिति को देखते हुए यह बल्लेबाजी का बेहतरीन नमूना था क्योंकि वह पहले दिन 39 रन बनाने के बाद बहुत कमज़ोरी महसूस कर रहे थे। दूसरे दिन सुबह का खेल शुरू होने से पहले तक डॉक्टर उनका इलाज कर रहा था।

 

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