यूपी में गठबंधन को लेकर हड़बड़ी में नहीं कांग्रेस, ‘इंतजार करो’ के मूड में पार्टी

नई दिल्ली

एक तरफ लोकसभा चुनाव 2019 के लिए उत्तर प्रदेश में बुआ, बबुआ और चौधरी की तिकड़ी मिलकर बीजेपी को चुनौती देने की तैयारी कर रही हैं, जहां कांग्रेस को साथ लेने या नहीं लेने पर अभी तस्वीर साफ नहीं है. ऐसे में कांग्रेस के भीतर यूपी को लेकर माथापच्ची जोरों पर है. हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, बड़े नेता इस मसले को अभी जल्दबाजी भरा मानते हैं. अभी लोकसभा चुनाव में वक्त है. 13 फरवरी को जब अंतरिम बजट वाला सत्र खत्म होगा, उसके बाद ही सही तस्वीर सामने आएगी.

राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि उसके बाद सरकार नाम की चीज महज औपचारिकता होगी और जांच एजेंसियां महज मूकदर्शक. इसके बावजूद कांग्रेस के भीतर महागठबंधन को लेकर दोराय बनी हुई है. पहली राय दिल्ली के बड़े नेताओं और लोकसभा चुनाव के बड़े दावेदारों की है, जो चाहते हैं कि किसी भी सूरत में कांग्रेस को महागठबंधन का हिस्सा होना चाहिए. इससे बीजेपी के खिलाफ वोटों का बिखराव नहीं होगा. साथ ही कांग्रेस विपक्षी दलों को साथ लेकर चलने का संदेश भी दे पाएगी.

हालिया घटनाक्रमों पर इस धड़े का कहना है कि यह सियासत है और एक-दूसरे पर दबाव बनाना और आखिरी पत्ते को दिल के करीब रखना, फिर मौका पड़ने पर खोलना इसका मूल सिद्धांत है. वैसे भी हाल में हिंदी बेल्ट के तीन बड़े राज्यों के चुनाव और चुनाव बाद कांग्रेस के साथ सपा-बसपा की तनातनी जगजाहिर रही है. इसलिए जल्दबाजी में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए.

वहीं दूसरा खेमा भी है जो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी नई दलील देने की तैयारी में है और जल्दी ही पार्टी अध्यक्ष के सामने वो भी अपना पक्ष रखेंगे. इस खेमे की अपनी दलीलें हैं.

1. 2017 में सपा के साथ खुला तालमेल नुकसानदेह रहा.

2. एक तरफ बीजेपी और दूसरी तरफ बाकी होने की सूरत में बीजेपी ध्रुवीकरण का दांव भी खेल सकती है.

3. यूपी में शहरी इलाको में कई सीटें ऐसी हैं, जहां एक तबका राष्ट्रीय चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियों को वोट करता आया है. ऐसे में बीजेपी के सामने कांग्रेस उम्मीदवार नहीं होने की सूरत में कांग्रेस का वोट महागठबंधन के बजाए बीजेपी को जा सकता है.

4. महागंठबंधन होने की सूरत में कांग्रेस या सपा का उम्मीदवार अगर दलित नहीं हुआ तो वो बीजेपी का रुख कर सकते हैं, वैसे ही बसपा या कांग्रेस से यादव उम्मीदवार नहीं होने की सूरत में सपा का ये वोट बीजेपी को जा सकता है. आखिर इस चुनाव में मोदी का चेहरा भी होगा.

5. साथ ही 1971 की तर्ज पर विपक्ष के इंदिरा हटाओ के नारे की तरह मोदी हटाओ के नारे की हवा निकल सकती है.

6. लोकसभा चुनाव में अगर कांग्रेस उम्मीदवार मजबूत होता है तो अल्पसंख्यक मतदाताओं की पहली पसंद कांग्रेस होती है, जिसका उदाहरण 2009 का चुनाव है.

7. 2009 की तर्ज पर सपा-बसपा से कांग्रेस सीटों के लिहाज से रणनीतिक तालमेल करे यानी जहां सपा-बसपा गठजोड़ बीजेपी को हराने की हालत में हो, वहां कांग्रेस बीजेपी के वोट काटने वाला उम्मीदवार दे दे. वहीं जहां कांग्रेस का उम्मीदवार बीजेपी को हराने की सूरत में हो, वहां सपा-बसपा बीजेपी के वोट काटने वाला उम्मीदवार दे दे.

ऐसे में फिलहाल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने दो में से एक रास्ता चुनने की चुनौती है, लेकिन उनके करीबी मानते हैं कि, पहला तो वो नहीं चाहते कि गठबंधन नहीं होने का ठीकरा कांग्रेस पर फूटे और दूसरा यह कि अभी गंगा में बहुत पानी बहना बाकी है. साथ ही उनका यह भी मानना है कि, राजनीति में सिर्फ प्लान A ही नहीं होता, प्लान B और C भी होता है.

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