मोदी सरकार के 5 साल, वित्तीय घाटा संभालने में पास या फेल?

 
नई दिल्ली     
    
आम चुनावों से पहले अंतरिम बजट की तैयारी में लगी केन्द्र सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती बीते पांच साल के दौरान वित्तीय घाटे को संभालने की कवायद का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने की है. केन्द्र सरकार पिछले साल वित्तीय घाटे के लक्ष्य को पाने में विफल रही है और मौजूदा साल 2018-19 के दौरान भी वह निर्धारित 3.3 फीसदी वित्तीय घाटे के लक्ष्य पाने में विफल होने की तरफ बढ़ रही है.

मौजूदा साल में विफलता इसलिए निश्चित है क्योंकि केन्द्र सरकार डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन और जीएसटी से हुई कमाई की केंद्र की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है. इन दोनों विफलताओं के बाद सरकार के पास रिपोर्ट कार्ड में लाल निशान से बचने के लिए सिर्फ शॉर्टकट का सहारा बचता है. पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के मुताबिक केन्द्र सरकार अब या तो जीएसटी मुआवजे के रिजर्व अथवा रिजर्व बैंक से 23 हजार करोड़ रुपये के अंतरिम लाभांश के सहारे ही घाटे के आर्थिक आंकड़ों में हरा निशान ला सकती है.
 वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान राजस्व घाटा जीडीपी के 3.3 फीसदी लक्ष्य से केन्द्र सरकार अपने अंतरिम बजट में जहां राजस्व को बढ़ा-चढ़ा कर दिखा सकती है वहीं अपने खर्च को छिपाने का काम कर सकती है. तिवारी ने कहा कि केन्द्र सरकार ने पूर्व के तीन मौकों पर राजस्व को लगभग 600 बीपीएस (बेसिस प्वाइंट) अधिक और खर्च को 400 बीपीएस कम दिखाने का काम किया है. अब यह 3.5 फीसदी रह सकता है.
 
खास बात है कि मई 2014 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में बनने वाली मोदी सरकार को सरकारी खजाने पर बड़ी राहत कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट के तौर पर मिली. इस राहत के चलते केन्द्र सरकार के लिए वित्तीय घाटे पर काबू पाना आसान हो गया. वहीं सरकार को इस बड़ी बचत के जरिए अपने आर्थिक कार्यक्रमों को मजबूत करने का मौका भी मिला.

लेकिन कार्यकाल के शुरुआत में घाटा संभालने में सफल होने वाली मोदी सरकार आगे चलकर अपने खर्च को लेकर कहां फंस गई कि उसे बजट में निर्धारित घाटे के लक्ष्य को आगे बढ़ाना पड़ा. जानें मोदी सरकार के पांच साल और वित्तीय घाटे में उतार-चढ़ाव.

केन्द्र सरकार ने 2003 में फिस्कल रेस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट पारित किया जो उसके लिए वित्तीय घाटे के लक्ष्य को निर्धारित करने का काम करता है. हालांकि खर्च और घाटे के संतुलन को बनाए रखने में सरकारें विफल होने लगती हैं तो वह इस एक्ट के तहत निर्धारित घाटे के लक्ष्य में फेरबदल करती रही हैं.
मौजूदा केन्द्र सरकार ने भी मौजूदा एक्ट में फेरबदल के लिए 2016 में एनके सिंह की अध्यक्षता में रिव्यू कमेटी गठित की जिससे लक्ष्य में इजाफा किया जा सके. हालांकि इस समिति ने 31 मार्च 2020 तक वित्तीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 3 फीसदी रखा और इसे 2020-21 के लिए 2.8 फीसदी और 2023 तक 2.5 फीसदी का लक्ष्य निर्धारित किया.

हालांकि इस समिति द्वारा निर्धारित वित्तीय घाटे के लक्ष्य को अधिक बताते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट 2017 में 3.2 फीसदी वित्तीय घाटे का लक्ष्य तय किया. इस फैसले के लिए केन्द्र सरकार की आलोचना भी हुई और आंकड़ों के मुताबिक बजट 2018 में सरकार वित्तीय घाटे के इस लक्ष्य पर भी खरी नहीं उतरी. केन्द्र सरकार ने इसके लिए कई कारण गिनाए जिनमें अहम है जीएसटी से उम्मीद के मुताबिक राजस्व न एकत्र होना और कच्चे तेल की कीमतों में एक बार फिर उछाल आना. वहीं मौजूदा वर्ष के दौरान आम चुनावों को देखते हुए भी केन्द्र सरकार पर लोकलुभावन खर्च करने की उम्मीद है.
 
अपने पहले बजट भाषण में जेटली ने वित्त वर्ष 2014-15 के लिए वित्तीय घाटे का लक्ष्य 4.1 फीसदी रखते हुए 2016-17 तक 3 फीसदी करने का दावा किया. गौरतलब है कि 2011-12 में वित्तीय घाटा 5.7 फीसदी के शीर्ष पर था और पूर्व की यूपीए सरकार के कार्यकाल में 2012-13 में इसे घटाकर 4.8 फीसदी कर लिया गया. 2013-14 में वित्तीय घाटे को 4.5 फीसदी करते हुए मोदी सरकार को मई 2014 में कमान सौंपी गई. इस लक्ष्य पर अपनी पहली बजट स्पीच में जेटली ने कहा कि पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम उन्हें वित्तीय घाटे का एक कड़ा लक्ष्य देकर गए हैं.

वहीं 2015-16 के बजट में जेटली ने दावा किया कि फिस्कल रेस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट द्वारा निर्धारित लक्ष्य को दो नहीं तीन वर्षों में प्राप्त कर लेंगे. पूर्व में सरकार की कवायद 2016-17 तक इस 3 फीसदी के लक्ष्य को प्राप्त करने की बात कही गई थी. लिहाजा, वित्तीय घाटे को काबू करने का नया लक्ष्य देते हुए जेटली ने 2015-16 के लिए 3.9 फीसदी, 2016-17 के लिए 3.5 फीसदी और 2017-18 के लिए जीडीपी के 3 फीसदी के वित्तीय घाटे का लक्ष्य निर्धार

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