मुस्लिम बहुल इलाकों में जोरदार वोटिंग, किसके हाथ लगेगी 7 सीटों की बाजी?

 नई दिल्ली 
दिल्ली में लोकसभा चुनाव की वोटिंग खत्म हो चुकी है। प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में बंद हो गई है। अब सभी दल गुणा-भाग करने में जुटे हुए हैं। 2014 चुनाव के मुकाबले वोटिंग में 5 फीसदी की कमी का असर किसपर पड़ेगा इसे लेकर भी दलों के अपने-अपने तर्क है। पर दिल्ली के परिणामों के लिहाज से मुस्लिम बहुल और आरक्षित क्षेत्रों में हुई जोरदार वोटिंग को अहम माना जा रहा है। मुस्लिम वोट के कांग्रेस और आप में बंटने का अनुमान है और वोट बंटवारे का डर दोनों दलों में साफ दिख रहा है। बावजूद इसके दोनों दल अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। इसबार दिल्ली में करीब 60.5% वोटिंग हुई है जो 2014 के 65.1% के मुकाबले 5 फीसदी कम है।  

वोट बंटवारे से पार्टियों में चिंता 
कांग्रेस और आप के सूत्रों ने बताया कि वे वोटों के बंटवारे से बीजेपी को होने वाले फायदे को लेकर चिंतित हैं। हालांकि कांग्रेस का मानना है कि वह इस चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वाली है। पार्टी का मानना है कि लोग बड़े नजरिए को देखते हुए नैशनल पार्टी को वोट देना पसंद करेंगे। 
 
मुस्लिम बहुल इलाकों में खूब वोटिंग 
मुस्लिम बहुल इलाके बल्लीमारान में 68.3%, मटिया महल में 66.9% और सीलमपुर में 65.5% पोलिंग हुई। त्रिलोकपुरी में 65.4%, मुस्तफाबाद में 65.2%, बाबरपुर में 62.1% और चांदनी चौक में 59.9% मतदान हुआ। वोटिंग के मामले में ओखला अपवाद रहा और यहं केवल 54.8% मत पड़े। 
कुछ वोटरों ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में बताया कि आप सरकार ने दिल्ली में कुछ अच्छे काम किए हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे अहम होते हैं। हालांकि कुछ ऐसे भी वोटर्स थे जिन्होंने दावा किया उन्होंने अरविंद केजरीवाल की पार्टी को वोट दिया है क्योंकि आप ने राजधानी में विकास का काम किया है। 

आरक्षित सीटों के वोटर्स अहम 
कई सीटों पर आरक्षित क्षेत्रों के वोटर अहम थे। 70 विधानसभा सीटों में 12 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। 10 आरक्षित क्षेत्रों में 60% से ज्यादा वोटिंग हुई है। पटेल नगर और बवाना में 60% से कम वोट पड़े हैं। 

आप को SC वोटों से है उम्मीद 
आप अनुसूचित जाति के वोटरों के समर्थन की आस में है। 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के वोट आप को मिले थे और इसने सभी 12 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसबार भी पार्टी को उम्मीद है कि अनुसूचित जाति के वोटर उनके साथ रहेंगे। बीजेपी और कांग्रेस ने भी अनुसूचित जाति को वोटरों को लुभाने के लिए पूरा जोर लगा दिया था। आरक्षित क्षेत्रों में सीमापुरी में सबसे ज्यादा 67.4% वोटिंग हुई। रिजर्व सीट में सबसे कम वोटिंग पटेल नगर (58.8%) में हुई। 

इसलिए दिल्ली में कम हुई वोटिंग 
विशेषज्ञों का मानना है कि वोटर्स और प्रत्याशियों के बीच कमजोर संपर्क के कारण वोटिंग प्रतिशत घटा है। दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान पढ़ाने वाले रवि रंजन ने कहा, 'चुनाव प्रचार के दौरान बड़े नेताओं के सामने प्रत्याशी दब से गए और स्थानीय मुद्दों को सही तरीके से नहीं उठाया गया। इसके अलावा गर्मी के कारण भी लोग घरों से बाहर वोट डालने नहीं निकले।' 

यहां के वोटर भी बेहद अहम 
सबसे ज्यादा वोटिंग 63.45% वोटिंग उत्तर-पूर्व दिल्ली में हुई। नई दिल्ली में सबसे कम 56.9% वोटिंग हुई। उत्तर-पूर्व दिल्ली में बहुत ज्यादा अनाधिकृत कॉलोनिया हैं। यहां बिहार और पूर्वी यूपी के प्रवासी रहते हैं। नई दिल्ली शहरी क्षेत्र है। यहां सरकारी कर्मचारी, कारोबारी और मध्यम वर्ग के लोग रहते हैं। चांदनी चौक इलाके के शकूर बस्ती में कामगार मध्यम वर्ग, कारोबारी और झुग्गी-झोपड़ी वाले लोगों की आबादी है। यहां सबसे ज्यादा 68.7% वोटिंग हुई है। दिल्ली कैंट में महज 42.1 ही वोटिंग हुई है। 

तीनों दलों में बंटे वोटर्स 
दिल्ली में लोकसभा चुनाव में मध्यम वर्ग के वोटर्स तीनों दलों में बंटे नजर आए। जिसने बीजेपी के लिए वोट किया वह मोदी फैक्टर और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए मजबूत लीडरशिप के लिए किया। आप को वोट करने वाले लोग दिल्ली सरकार द्वारा हेल्थ और एजुकेशन में किए काम से प्रभावित थे। दूसरी तरफ कांग्रेस केंद्र में बदलाव को लेकर जनता के बीच थी। 

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