मुकेश गुप्ता की अग्रिम जमानत याचिका खारिज

बिलासपुर
छत्तीसगढ़ के हाईप्रोफाइल नान घोटाला मामले में फंसे मुकेश गुप्ता पर अब गिरफ्तारी  की तलवार लटक रही है. फोन टेपिंग मामले में निलंबित हुए मुकेश गुप्ता की अग्रीम जमानत याचिका  हाईकोर्ट  ने खारिज कर दी है. बता दें कि, आईपीएस मुकेश गुप्ता की अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने पिछले सुनवाई में फैसला सुरक्षित रखा था. शुक्रवार को मुकेश गुप्ता की याचिका पर फैसला आया, जिसमें हाईकोर्ट जस्टिस आरसीएस सामन्त के सिंगल बैंच ने निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया है.

कई प्रकरणों पर दर्ज है मुकेश गुप्ता पर मामला

दरअसल, साडा में गलत तरीके से जमीन आवंटन के 21 साल पुराने प्रकरण में शिकायत के बाद निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता के खिलाफ भिलाई के सुपेला थाने में विभिन्न धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया गया था. महाधिवक्ता सतिश चंद वर्मा ने विवेचना प्रभावित होने का हवाला देते हुए अग्रिम जमानत देने का विरोध किया था, जिसमें शुक्रवार को गुप्ता की याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है.

लगा है ये आरोप

बता दें की, निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता पर आरोप है कि दुर्ग जिले के एसपी के रूप में काम करने के दौरान उन्होंने कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर साडा की मोतीलाल आवासीय योजना में भूखंड का आवंटन अपने नाम कराया था. दर्ज प्रकरण के अनुसार गुप्ता ने साडा भिलाई के पूर्व पदेन सदस्य होने के नाते अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए साडा भंग होने के एक दिन बाद ही 9 जून 1998 को 2928 वर्गफुट भूखंड के बदले उससे लगभग दोगुने भूखंड यानी 5810 वर्गफुट की रजिस्ट्री चेक देकर कराई.

इस मामले में माणिक मेहता की शिकायत पर गुप्ता के खिलाफ सुपेला थाने में धारा 409, 420, 467, 468,471, 201 और 421 के तहत मामला पंजीबद्ध किया गया. मामले में संभावित गिरफ्तारी से बचने के लिए गुप्ता ने अग्रिम जमानत अर्जी लगाई. प्रारंभिक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए केस डायरी तलब किया था. साथ ही राज्य सरकार सहित अन्य से जवाब भी मांगा गया था. केस डायरी और जवाब प्रस्तुत होने के बाद जस्टिस आरसीएस सामंत की बेंच में सुनवाई हुई. महाधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा ने विवेचना प्रभावित होने का हवाला देते हुए अग्रिम जमानत मंजूर करने का विरोध किया था. सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था.

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