‘महाराज’ ज्योतिरादित्य सिंधिया की चुप्पी का राज?

भोपाल
मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार बचेगी या जाएगी? यह लाख टके का सवाल अभी बरकरार है। इस सियासी संकट के बीच दो किरदार सबसे असरदार दिख रहे हैं। एक जो खुलकर सामने आ रहा है और दूसरा जिसने अब तक जुबान नहीं खोली। जी हां, हम बात कर रहे हैं दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की। दिग्विजय तो लगातार सक्रिय हैं लेकिन सिंधिया 'पिक्चर' से बाहर हैं। सिंधिया की इस 'चुप्पी' के आखिर मायने क्या हैं, इसको समझने के लिए चलिए आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं।

…तो सड़क पर सिंधिया भी उतरेगा
तारीख- 13 फरवरी 2020। जगह मध्य प्रदेश का टीकमगढ़। कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया एक सभा को संबोधित कर रहे हैं। अचानक कुछ टीचरों ने हंगामा शुरू कर दिया। नाराज शिक्षकों को शांत करने की भाव-भंगिमा के साथ सिंधिया ने कहा, 'आपकी मांग मैंने चुनाव के पहले भी सुनी थी, मैंने आपकी आवाज उठाई थी। ये विश्वास मैं आपको दिलाना चाहता हूं कि आपकी मांग जो हमारी सरकार की मेनिफेस्टो में अंकित है, वह मेनिफेस्टो हमारे लिए हमारा ग्रंथ बनता है। सब्र रखना और अगर उस मेनिफेस्टो का एक-एक अंक न पूरा हुआ तो आपके साथ सड़क पर अकेले मत समझना आपके साथ सड़क पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उतरेगा।'

इस एक बयान ने एमपी में सियासी तूफान खड़ा कर दिया। लोकसभा चुनाव हारने के बाद सियासी वनवास भुगत रहे सिंधिया की यह हुंकार चर्चा का विषय बन गई। मुख्यमंत्री कमलनाथ से सिंधिया की तल्खी कोई दबी-छिपी बात नहीं थी। दो दिन बाद कमलनाथ भी सामने आए। सिंधिया की सड़क पर उतरने की धमकी पर उनसे पूछा गया तो तल्ख अंदाज में बोले- 'तो उतर जाएं।'

जुबान नहीं खोल रहे सिंधिया
सिंधिया सड़क पर तो नहीं उतरे लेकिन फिलहाल कमलनाथ सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस नेताओं को कई राज्यों की सड़क नापनी पड़ रही है। भोपाल से गुरुग्राम और गुरुग्राम से बेंगलुरु। सियासी ड्रामा पल-पल बदल रहा है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से सिंधिया ने दूरी बनाए रखी है। वह दिल्ली हिंसा पर तो ट्विटर के जरिए फौरी टिप्पणी करते हैं लेकिन राज्य में चल रही सियासी उठापटक पर अब तक एक शब्द नहीं बोला है। जब कमलनाथ सरकार की सांसें अटकी हुई थीं तो सिंधिया 'आत्मीय अभिनंदन' में व्यस्त थे। 4 मार्च को उन्होंने क्षत्रिय समाज की ओर से किए गए स्वागत की तस्वीर पोस्ट की।

संकट के पीछे सिंधिया की उपेक्षा?
सिंधिया खुद तो नहीं बोल रहे हैं लेकिन बुलवा जरूर रहे हैं। राज्य के श्रम मंत्री और सिंधिया के कट्टर समर्थक माने जाने वाले महेंद्र सिंह सिसोदिया का बयान इसकी एक बानगी है। शुक्रवार को उन्होंने कहा, 'कमलनाथ सरकार को संकट तब होगा जब सरकार हमारे नेता ज्योतिरादित्य सिंधियाजी की उपेक्षा या अनादर करेगी। तब निश्चित तौर से सरकार पर जो काले बादल छाएंगे वो क्या कर जाएंगे मैं यह नहीं कह सकता।'

इस एक बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कमलनाथ सरकार के भविष्य और अस्तित्व पर छाई धुंध हटना इतना आसान नहीं है। ज्योतिरादित्य चुप रहकर भी संदेश दे रहे हैं। अभी उनके पास कोई अहम जिम्मेदारी नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनाव से चंद महीने पहले कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष बनाया गया। सिंधिया को चुनाव अभियान समिति की जिम्मेदारी मिली। चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस ने 'युवा जोश' पर 'सीनियरमोस्ट' को तवज्जो दी। एक बार फिर सिंधिया को मुंह की खानी पड़ी और कमलनाथ को कुर्सी मिल गई। इसमें दिग्विजय ने भी खुलकर कमलनाथ का साथ दिया।

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