भोपाल में साध्वी के लिए आसान नहीं है दिग्विजय का रास्ता रोक पाना
भोपाल
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल संसदीय सीट की लड़ाई काफी दिलचस्प मोड़ पर आ गई है. कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह और बीजेपी की ओर से प्रज्ञा ठाकुर मैदान में हैं और मुकाबला काफी रोचक होता नजर आ रहा है. भोपाल को भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है क्योंकि 1984 के बाद यहां से कांग्रेस का कोई प्रत्याशी नहीं जीत सका है. यही वजह है कि जब कांग्रेस ने राज्य की सत्ता पाई तो मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस चुनौतीपूर्ण सीट से दिग्विजय सिंह को लड़ने का सुझाव दिया और दिग्गी राजा ने भी इस चुनौती को स्वीकार करते हुए यहां से चुनावी मैदान में उतरना स्वीकार कर लिया. इतना ही नहीं उन्होंने औपचारिक तौर पर टिकट की घोषणा होने के पहले ही जनसंपर्क करना भी शुरू कर दिया.
दिग्विजय सिंह जैसे कद्दावर नेता के सामने बीजेपी को अपनी इस सीट को बचाए रखने के लिए एक ऐसे प्रत्याशी की जरूरत थी जिसे मुकाबले में उतारा जा सके. ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का नाम बढ़ाया गया.
मालेगांव ब्लास्ट मामले में 9 साल तक जेल में रहीं साध्वी प्रज्ञा की कट्टर हिंदूवादी छवि के आगे दिग्विजय सिंह की उदारवादी हिंदुत्व कहीं दबता दिखने लगा. इसी बीच कब कहां क्या बोलना है इससे अनजान साध्वी प्रज्ञा भावना में बहकर कुछ ऐसे शब्द कह दिए जो उनके खिलाफ चले गए. मुंबई आतंकी में शहीद हुए हेमंत करकरे के बारे में साध्वी प्रज्ञा का बयान उनपर भारी पड़ गया. साध्वी ने कहा कि उनके शाप के कारण करकरे की मौत हुई.
ये वे शब्द थे जिनसे प्रज्ञा ने खुद का नुकसान कर लिया. हिंदूवादी होने के कारण जेल में यातना झेलने से जो सहानुभूति की लहर प्रज्ञा ने पैदा की थी हेमंत करकरे वाले बयान ने उसे वोट में बदलने के पहले ही एक तरह से शांत कर दिया. इस बयान की हर जगह निंदा होने लगी क्योंकि करकरे की शहादत को लोग भूले नहीं हैं.
खुद बीजेपी कार्यकर्ताओं का एक धड़ा जो साध्वी प्रज्ञा को बाहरी मान रहा था उनके इस बयान से थोड़ा कट गया. करकरे की राष्ट्रीय हीरो वाली छवि को देखते हुए बीजेपी के बड़े नेताओं को भी प्रज्ञा का यह बयान रास नहीं आया और नेताओं के निर्देश पर प्रज्ञा को यह बयान वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा.
कट्टर हिंदुत्ववादी छवि वाली प्रज्ञा ने अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस पर गर्व होने की बात कहकर उन उदारवादी मुस्लिम महिला वोटरों की सहानुभूति भी खो दी जो तीन तलाक मुद्दे को लेकर बीजेपी के समर्थन में आई थी. भोपाल उत्तर विधानसभा सीट से मुस्लिम प्रत्याशी रही फातिमा सिद्धीकी तो इसके बाद प्रज्ञा के लिए चुनाव प्रचार नहीं करने का एलान कर चुकी हैं.
इस बीच दिग्विजय सिंह ने भी मंदिर- मंदिर जाना और साधु- संतों को अपने पक्ष में खड़ा कर लिया. इस तरह से हिंदुओं का जो उदारवादी धड़ा है वह बीजेपी और कांग्रेस में बंटा नजर आ रहा है. बड़ी संख्या में साधु- संतों ने दिग्विजय सिंह के पक्ष में चुनाव प्रचार करने की घोषणा की है. जाहिर है कि इससे संप्रदायों में बंटे हिंदू वोट बैंक में सेंध लगेगी. इस तरह से साध्वी प्रज्ञा की राह अब पहले की तरह आसान नहीं नजर आ रही है.