भारत-चीन हिंसक झड़प: सब कुछ वैसे ही हुआ जैसा चीन ने 1969 में सोवियत रूस के साथ किया

नई दिल्ली
पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए। चीन के भी 40 से अधिक सैनिकों के मारे जाने की सूचना है। हालांकि, चीन अभी तक आंकड़ा नहीं बता पाया है। चीन ने इस पूरी घटना को ठीक उसी तरह अंजाम दिया है, जिस तरह उसने 1969 में सोवियत रूस के साथ किया। हालांकि, तब भी उसने अपने मारे गए सैनिकों की संख्या दुनिया से छिपाए रखी। असल में यह उसकी पुरानी रणनीति का हिस्सा है। आइए आपको बताते हैं क्या है 1969 की वह घटना जिसका दोहराव चीन ने भारत संग किया है। 1969 की घटना से पहले आपको बता देते हैं कि सोमवार की रात सीमा पर क्या हुआ। गलवान घाटी में 16 बिहार रेजिमेंट के अधिकारी 6 जून को हुए समझौते के मुताबिक चीनी सैनिकों को पीछे हटने के लिए कहने गए थे। इस दौरान पीछे हटते हुए चीनी सैनिकों ने अचानक पत्थरों, रॉड और लाठियों से भारतीय कमांडिक ऑफिसर और दो जवानों पर हमला बोल दिया। इसके बाद वहां कई घंटों तक दोनों सेनाओं में संघर्ष हुआ। इसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए और चीन अपनी पुरानी रणनीति के तहत संख्या को लेकर चुप्पी साधे हुए है। चीनी सेना 51 साल पहले भी ठीक इसी तरह की एक घटना को अंजाम दे चुकी है। स्थान और सामने वाली सेना भले ही इस बार बदल चुकी थी, लेकिन पूरी स्क्रिप्ट 1969 की है। उस समय चीन ने सोवियत रूस के सैनिकों के साथ इस तरह का संघर्ष किया था, जिसमें सोवियत बॉर्डर गार्ड्स के 31 जवानों की मौत हो गई थी। चीन के कितने सैनिक मारे गए यह अब भी रहस्य ही है।   

2 मार्च 1969 की सुबह। सोवियत बॉर्डर गार्ड्स ने देखा कि चीन की एक पट्रोलिंग पार्टी जम चुकी उसुरी नदी के पार घूम रही है। उसुरी नदी चीन और पूर्व तब के सोवियत रूस के बीच सीमा हुआ करती थी। चीनी सैनिक नदी के एक विवादित द्वीप की ओर बढ़ रही थी, जिसे चाइनीज झेनबाओ कहते हैं और रूसी दमनस्काई।  अमेरिकी नेवी के लिए रिसर्च करने वाली संस्था सेंटर फॉर नेवल एनालिसिस (सीएनए) ने 2010 में इस घटना पर स्टडी की। सीएनए के मुताबिक, उसुरी नदी पर सोवियत रूस के आउटपोस्ट से कमांडर सीनियर लेफ्टिनेंट ईवान स्ट्रेरलिनकोव की अगुआई में बॉर्डर गार्ड्स की एक टीम को आगे बढ़ रही चीन की सेना से मिलने भेजा गया। सीएनए के मुताबिक, उस समय इस तरह की घटनाएं दोनों सेनाओं के बीच सामान्य थी। कई विवादित द्वीपों पर कभी चीनी सैनिक तो कभी सोवियत के बॉर्डर गार्ड्स पट्रोलिंग के लिए जाते तो दूसरी सेना उनसे मिलती थी और दावा करती थी कि आप सीमा पार कर रहे हैं, पीछे हट जाइए। कभी कभार उनमें झड़प भी हो जाती थी। दोनों एक दूसरे पर चिल्लाते, धक्का मुक्की होती या लाठी भी चल जाते थे। लेकिन 2 मार्च की सुबह चीनियों का प्लान कुछ और ही था। जब सोवियत बॉर्डर गार्ड्स के जवान जब रेंच में ही थी तब चीनी सैनिकों ने ऑटोमैटिक हथियारों से गोलीबारी शुरू कर दी। सीनियर लेफ्टिनेंट ईवान स्ट्रेरलिनकोव और छह अन्य सैनिक मारे गए। करीब 2 घंटे तक चले संघर्ष में सोवियत बॉर्डर गार्डर्स के 32 जवान मारे गए। इनमें से एक की मौत चीन की हिरासत में हुई। 

दोनों सेनाओं में बीच-बीच में 22 मार्च तक कई बार संघर्ष हुआ और सोवित रूस के कुल 58 सुरक्षाकर्मी मारे गए। इनमें से 49 बॉर्डर गार्ड्स के जवान थे और 9 सैनिक थे। कुल 94 सैनिक घायल हुए थे। यूक्रेन में तवरिदा नेशनल यूनिवर्सिटी के विद्वान दमितरी रयाबुशकिन ने सोवियत दस्तावेजों के अध्ययन के बाद लिखा था कि सेन्य चिकित्सा विशेषज्ञों ने शवों के परीक्षण में पाया कि 2 मार्च 1969 को मारे गए 31 सुरक्षाकर्मियों में से 19 संघर्ष के दौरान सिर्फ घायल हुए थे, लेकिन चीनी सैनिकों ने उनके सिर में राइफल बट से वार किया था। उन्होंने उनके छाती, सिर और गले में चाकू घोंप दिया था। उन्होंने यह भी बताया कि केवल एक सैनिक को कैदी बनाया गया था और उसे भी कोई उपचार नहीं दिया गया। इससे पता चलता है कि चीनी सैनिकों को आदेश था कि जो भी उनके हाथ आए उनकी सीधे हत्या कर दी जाए।  सोवियत यूनियन का हिस्सा रहे एक देश के राजनयिक ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर कहा कि रिपोर्ट मिली की अधिकतर सैनिकों की मौत बार-बार चाकू घोंपने से हुई थी। चीन ने यह तो माना है कि लद्दाख में उसके सैनिक मारे गए हैं, लेकिन उसने मृतक या घायल सैनिकों की कोई संख्या नहीं बताई है। सीएएन की स्टडी में 1969 की घटना को लेकर भी यही बात कही गई है। तब भी चीन ने यह जानकारी छिपा ली थी कि संघर्ष में उसके कितने सैनिक मारे गए या घायल हुए।
 

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