भारत ग्लोबल कोविड एपिसेंटर की बनने की ओर बढ़ रहा

 
नई दिल्ली
 
'भारत जल्दी ही Covid-19 का एपिसेंटर होगा.' ये चिंता दुनिया के जाने-माने पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ आशीष के. झा ने जताई है. हार्वर्ड ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉ झा ने इंडिया टुडे टीवी से एक खास बातचीत में कहा कि ये वक्त वायरस के पीछे हाथ धोकर पड़ने यानि आक्रामकता दिखाने का है. डॉ झा के मुताबिक टेस्टिंग को सीमित करना खुद को हराने वाली रणनीति है. उनके मुताबिक भारत में हर दिन 30 से 50 हजार केस हर दिन बढ़ रहे हो सकते हैं, लेकिन अभी उनका छोटा हिस्सा ही पकड़ में आ रहा है.

क्या भारत अगला ग्लोबल हॉटस्पॉट है?

इस सवाल पर डॉ झा का कहना था, ‘’यही चिंता है, यह ग्लोबल हॉटस्पॉट बन रहा है. हम अभी भी इस महामारी की शुरुआत में हैं और अभी वैक्सीन आने में कई, कई महीने हैं. संभवतः एक वर्ष है अभी वैक्सीन आने में. हमारे सामने सवाल यह है कि वायरस के फैलाव को धीमा करने के लिए भारत की रणनीति क्या है? और हम जानते हैं कि सिर्फ तीन चीजें हैं जो कोई फर्क डाल सकती हैं. एक- सोशल डिस्टेंसिंग, जिसका चरम स्वरूप लॉकडाउन है. दूसरा- टेस्टिंग, ट्रेसिंग और आइसोलेशन. और तीसरा- मास्क पहनना. यह बहुत अहम है कि लोग इस पर आक्रामक तरीके से अमल शुरू करें. हम टेस्टिंग की बात महामारी की शुरुआत से ही कर रहे हैं और भारत ने कुछ अच्छी प्रगति की है. हालांकि टेस्टिंग में हम जहां होने चाहिए थे, वहां से काफी दूर हैं. मुझे लगता है, हम सभी यह जानना चाहते हैं कि एक साल तक तक हम लॉकडाउन से बार-बार कैसे बचते रहेंगे.”
 
पिछले महीने के आखिर में डॉ झा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ बातचीत में उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में आक्रामक टेस्टिंग रणनीति अपनाने पर जोर दिया था. वो बातचीत महामारी से निपटने को लेकर वैश्विक पहचान रखने वाले विशेषज्ञों के साथ राहुल गांधी के संवाद की श्रृंखला का हिस्सा थी.

भारत से उभरने वाली बड़ी तस्वीर को लेकर आप क्या सोचते हैं?
इस सवाल पर डॉ आशीष ने कहा, “मैं भारत के कुल केसों की संख्या को लेकर ही चिंतित नहीं हूं. प्रति व्यक्ति या पर कैपिटा आधार पर भारत में अभी भी थोड़े केस और थोड़ी मौतें हैं. लेकिन ट्रेजेक्टरी, पाथ यानि वक्र में दिन-प्रतिदिन की बढ़ोतरी मेरे लिए बहुत ध्यान देने वाली बात है. 10,000-12,000 लोगों की रोज पहचान हो रही है. ये अगर सिर्फ दो हफ्ते पहले भारत की स्थिति से तुलना करें तो कहीं ज्यादा है. और फिर मैं सोचता हूं कि इस घातीय वक्र (एक्स्पोनेंशियल कर्व) को तोड़ने के लिए क्या हो रहा है? मैं चिंतित हूं कि लॉकडाउन पहले ही हो चुका है, लॉकडाउन के बाहर, इक्का दुक्का ही चीजें हैं जिन्हें हम वायरस के फैलाव को रोकने और धीमा करने की दिशा में जानते हैं. मुझे फिक्र है कि क्या भारत वह सब करने में सक्षम होने जा रहा है?”

देश में बढ़ानी चाहिए टेस्टिंग रेट

यह पूछे जाने पर कि टेस्टिंग की संख्या में कमी क्यों आ रही है और टेस्टिंग डेटा को कृत्रिम रूप से कम करने के रास्ते खोजना क्यों बड़ी समस्या वाला है, प्रो. झा ने बताया, “लॉकडाउन का पूरा मकसद था समय खरीदना, जिसका मैंने समर्थन किया था. आप एक बहुत व्यापक टेस्टिंग और ट्रेसिंग प्रोग्राम बनाने के लिए समय खरीद रहे हैं. और मुझे चिंता है कि भारत के पास बहुत लंबा और महंगा लॉकडाउन था, लेकिन टेस्टिंग के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए पर्याप्त रूप से उस वक्त का इस्तेमाल नहीं किया. और अब केस बढ़ रहे हैं. यह वह समय है जहां टेस्टिंग बढ़नी चाहिए. हमें देश भर में टेस्टिंग की संख्या में पर्याप्त बढ़ोतरी करनी चाहिए. मुझे फिक्र है कि ऐसे हॉटस्पॉट्स हैं, जिन्हें हम मिस कर रहे हैं, क्योंकि वहां हम टेस्टिंग तक नहीं कर रहे हैं. इसलिए हम बड़ी संख्या में केसों तक नहीं पहुंच रहे हैं.”

संक्रमित लोगों की नहीं हो पा रही है ट्रेसिंग

संक्रमण के आंकड़े कम रखने की कोशिश में कुछ राज्यों की ओर से टेस्टिंग घटाने की राजनीति पर हेल्थ एक्सपर्ट ने कहा, “यह बहुत ही खुद को हराने वाली रणनीति है. हम ब्राजील में कुछ मुद्दे देख रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी उसी माइंडसेट से टेस्टिंग कम करने की कोशिश की. यहां बॉटमलाइन है- टेस्टिंग केसों का कारण नहीं होती, वायरस होता है. आप कुछ समय के लिए आंखों पर पट्टी बांध सकते हैं. लेकिन एक पाइंट ऐसा आएगा जब ये भारी पड़ेगा. भारतीय उपमहाद्वीप को देखते हुए बहुत फिक्रमंद हूं कि हम बड़ी संख्या में केसों को मिस कर रहे हैं. सबसे अच्छे मॉडल अभी सुझाव देते हैं कि हर दिन शायद 30,000-50,000 भारतीय संक्रमित हो रहे हैं लेकिन हम सिर्फ 10,000-12,000 केस ही पकड़ पा रहे हैं. यह महामारी को रोकने और नियंत्रित करने का कोई तरीका नहीं है. हमें टेस्टिंग को लेकर और अधिक आक्रामक होना होगा.”

वायरस पर काबू पाने की जरूरत

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि भारत जल्द ही केसों की संख्या में अमेरिका से आगे निकल जाएगा, डॉ झा ने कहा, “यह चिंता का विषय है. भारत को वायरस पर बहुत आक्रामकता दिखानी चाहिए, रिएक्टिव (प्रतिक्रियाशील) नहीं होना चाहिए."
 

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