बिहार में जातीय गुणा-गणित, NDA का 3 सूत्री फॉर्मूला Vs महागठबंधन का MY+ समीकरण

 
नई दिल्ली
    
चुनाव, बिहार और जाति फैक्टर- ये तीनों एक-दूसरे के पर्याय हों जैसे. बिहार में चुनाव हो और जातिय गणित की बात न हो ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता. भले ही लोकसभा चुनाव 2019 के लिए तमाम पार्टियां एनडीए और महागठबंधन के दो खेमों में बंट गई हों लेकिन सियासी गुणा-गणित, सीटों के बंटवारे और उम्मीदवारों के चयन में सबसे बड़ा फैक्टर इस बार भी जाति ही दिख रहा है. जाति पर आधारित राजनीति के चलते खेमों के अंदर खेमे और खेमों के खिलाफ खेमे खड़े होते दिख रहे हैं.

बिहार में ढाई सौ से भी अधिक जातियां-उपजातियां हैं. राज्य की 40 लोकसभा सीटों की लड़ाई में उतरे तमाम दलों ने आबादी और सीटों के गणित के हिसाब से टिकट बांटे हैं या उम्मीदवार उतारे हैं.

किस पार्टी से किस जाति को कितने टिकट?

एनडीए बिहार की 40 सीटों में से 39 पर उम्मीदवारों की घोषणा कर चुका है. जबकि महागठबंधन अभी तक 33 उम्मीदवारों के नाम तय कर पाया है. एनडीए ने 'सामान्य वर्ग' के 13 लोगों को टिकट दिया है. इनमें से 7 राजपूत समुदाय से, 3 भूमिहार जाति से, दो ब्राह्मण और एक उम्मीदवार कायस्थ जाति से है. 12 उम्मीदवार ओबीसी समुदाय से हैं. जिसमें 5 यादव, 3 कुशवाहा, 3 वैश्य और एक कुर्मी जाति से है. अति पिछड़ा वर्ग के 7 उम्मीदवार हैं, जिनमें धानुक, केवट, गंगेयी, गोंसाई, निषाद, गंगोता और चन्द्रवंशी के एक-एक उम्मीदवार हैं. 6 दलित उम्मीदवार हैं, जिनमें 4 पासवान जबकि रविवास और मुसहर जाति के 1-1 उम्मीदवार हैं.

वहीं, महागठबंधन का जातिय गणित कुछ अलग है. आरजेडी एम-वाई समीकरण यानी लालू के पुराने यादव-मुस्लिम फॉर्मूले पर फोकस किए हुए हैं. आरजेडी ने अपने खाते की 19 लोकसभा सीटों में से 18 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है, जिनमें से सबसे ज्यादा 8 यादव, 4 मुस्लिम, 3 राजपूत, 2 दलित और 1 सीट पर अतिपिछड़ा उम्मीदवार उतारा है. वहीं कांग्रेस 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इनमें से पटना से शत्रुघ्न सिन्हा(कायस्थ). पूर्णिया से उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह, कटिहार से तारिक अनवर को मौका दिया है. रालोसपा ने अभी अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान नहीं किया है. लेकिन उम्मीदवारी के सामाजिक समीकरण का खुलासा कर दिया है. रालोसपा का कहना है कि पश्चिमी चंपारण से कुशवाहा, पूर्वी चंपारण से सवर्ण, काराकाट से कुशवाहा, जमुई से अनुसूचित जाति और उजियारपुर से कुशवाहा समुदाय के लोगों को टिकट दिया जाएगा.

बिहार में किस जाति की क्या है ताकत?

जाति आधारित राजनीति के लिए मशहूर बिहार में अगर वोट की जातिगत ताकत पर गौर करें तो सबसे ज्यादा आबादी ओबीसी समुदाय की है- 51 फीसदी. 14.4% यादव समुदाय, कुशवाहा यानी कोइरी 6.4%, कुर्मी 4% हैं. दलित 16 फीसदी हैं. सवर्णों की आबादी 17% है जिनमें से भूमिहार 4.7%, ब्राह्मण 5.7%, राजपूत 5.2% और कायस्थ 1.5% हैं. राज्य में मुस्लिम समुदाय की आबादी 16.9% है.

एनडीए का तीन सूत्री फॉर्मूला

एनडीए और महागठबंधन दोनों खेमों में शामिल दलों के अपने-अपने हिसाब हैं जातिय वोटों को लेकर. एनडीए में शामिल हैं- बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी. एनडीए को अपने तीन सूत्री फॉर्मूले पर भरोसा है यानी तीन दल तीन अलग-अलग समीकरणों को साधेंगे. बीजेपी की सवर्ण वोटों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है. इसी तरह यादव वोटों को साधने के लिए भी बीजेपी फ्रंट फुट पर खेल रही है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय यादव समुदाय से आते हैं. बीजेपी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव भी इसी समुदाय से आते हैं. लालू की अनुपस्थिति में आरजेडी वोटों को साधने पर बीजेपी ने फोकस किया है. जबकि नीतीश कुमार की जेडीयू की कुर्मी समुदाय और पसमांदा मुस्लिमों में अच्छी पैठ है. वहीं रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी दलितों की सियासत करती है.

आरजेडी का एम-वाई समीकरण+कांग्रेस का सवर्ण दांव

एनडीए के मुकाबले के लिए उतरे महागठबंधन का भी अपना जातिय गणित है. महागठबंधन में 5 दल शामिल हैं- आरजेडी, कांग्रेस, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा, मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी और जीतनराम मांझी की हम. आरजेडी यादव वोटों पर पकड़ रखती है. हालांकि लालू यादव के जेल में होने के कारण तेजस्वी पर सारा दारोमदार है. कांग्रेस सवर्ण वोटों पर फोकस किए हुए है. मल्लाह वोटों पर मुकेश सहनी, कोइरी यानी कुशवाहा वोटों पर उपेंद्र कुशवाहा दावेदारी पेश कर रहे हैं जबकि दलित वोटों को साधने के लिए जीतनराम मांझी मैदान में हैं.

 

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