बिहार पुलिस: गश्त पर रहते झूठी जानकारी देना पुलिस अधिकारियों को पड़ेगा महंगा

पटना
गश्त पर रहते हुए झूठी जानकारी देना पुलिस अधिकारियों को महंगा पड़ सकता है। गाड़ी कहां खड़ी है यह जानकारी अब जिलों के एसएसपी और एसपी पास हर पल मौजूद रहेगी। ऐसे में एक झूठ गश्ती पर निकले पुलिस पदाधिकारी को मुश्किल में डाल सकता है। अपराध नियंत्रण और कानून-व्यवस्था की समीक्षा बैठक के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा दिए गए आदेश के बाद पुलिस की 90 प्रतिशत गश्ती गाड़ियों में जीपीएस लगा दिया गया है। 

2303 वाहन जीपीएस से लैश
थानों के पास मौजूद गाड़ियों का इस्तेमाल गश्त के लिए किया जाता है। ऐसे 2542 गाड़ियों में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) लगाया जाना है। पुलिस मुख्यालय के मुताबिक 2303 गश्ती गाड़ियों में जीपीएस लगाने का काम पूरा हो गया है। जिन गाड़ियों में इसे लगाया गया है उसका इस्तेमाल गश्ती और अपराध नियंत्रण के लिए किया जाता है। जल्द ही बची हुई गाड़ियों में भी इसे लगा दिया जाएगा। जीपीएस लगने के बाद अब थानेदार से लेकर एसपी-डीएसपी तक गाड़ियों पर नजर रहेगी। कौन सी गाड़ी किस इलाके में है यह जीपीएस की मदद से देखा जा सकता है। 

जिला पुलिस को दी गई है जिम्मेदारी
पुलिस के वाहनों में जीपीएस लगाने की जिम्मेदारी संबंधित जिले के एसपी को दी गई है। जिला स्तर पर ही इसकी खरीद की गई और पुलिस के उन वाहनों में इसे फिट किया जा रहा है जो थानों को दी गई है। सरकार द्वारा इसके लिए जिलों को राशि मुहैया कराई गई है। 

एसपी दफ्तर में कंट्रोल रूम
सभी जिलों में जीपीएस का एक कंट्रोल रूम बनाया गया है। यह एसपी के कार्यालय या आवासीय कार्यालय में है। अपनी सुविधा के अनुसार एसपी ने कंट्रोल रूम के लिए जगह तय की है। इसका मकसद वह जब चाहे पुलिस की गाड़ियों का लोकेशन देख सकते हैं। समय-समय पर गश्ती व्यवस्था का आकलन भी इसके जरिए किया जा सकता है। यह काम कंट्रोल रूम में मौजूद जीपीएस लोकेशन के डाटा से किया जाएगा। आकलन के जरिए एसपी यह पता कर सकते हैं कि किस थाने की गश्ती गाड़ी कहां ज्यादा समय तक रहती है। जरूरी हुआ तो वह इसमें बदलाव भी कर सकते हैं।  

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