बाबूलाल गौर: एक अज़ीम शख़्सियत जो हर दिल अज़ीज़ थे

भोपाल
बीजेपी के वेटरन लीडर और पूर्व मुख्‍यमंत्री बाबूलाल गौर एक ऐसी अज़ीम शख़्सियत थे जो हर दिल अज़ीज़ थे.  उनकी राजनीतिक यात्रा सफल और लंबी रही. बाबूलाल गौर अपनी खुशमिजाज़ी और बेबाकी के लिए जाने जाते थे. वह ऐसे नेता थे जो पार्टी लाइन से ऊपर उठकर हर मुद्दे पर अपनी राय बेबाकी से रखते थे. बाबूलाल गौर के नाम भोपाल की गोविंदपुरा सीट से लगातार 10 बार विधायक बनने का रिकॉर्ड है.

2 जून 1930 को उत्तर प्रदेश में जन्मे बाबूलाल गौर ने भोपाल की पुट्ठा मिल में मजदूरी करते हुए पढ़ाई की. बाद में उन्हें भेल में नौकरी मिल गई. इस दौरान उन्होंने कई श्रमिक आंदोलनों में भाग लिया था. वह भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक सदस्‍‍‍‍‍‍यों में थे.

बाबूलाल गौर स्कूली दिनों में संघ की शाखा भी जाया करते थे, लेकिन ट्रेड यूनियनों में उनकी सक्रियता ज्यादा रही. इसी बीच, दोस्तों की मदद से गौर 1972 में गोविंदपुरा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और जीत गए.

गौर ने 1977 में गोविन्दपुरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और वहां से लगातार विधानसभा चुनाव जीतते रहे. इस बीच वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में 59 हजार 666 मतों के अंतर से विजय प्राप्त कर बाबूलाल गौर ने रिकार्ड बनाया था. इसके बाद साल 2003 में 64 हजार 212 मतों के अंतर से विजय पाकर अपने ही रिकार्ड को तोड़ा था.

बाबूलाल गौर 7 मार्च 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक मध्‍य प्रदेश के स्थानीय शासन, विधि एवं विधायी कार्य, संसदीय कार्य, जनसंपर्क, नगरीय कल्याण, शहरी आवास तथा पुनर्वास और भोपाल गैस त्रासदी राहत मंत्री रहे.

इमरजेंसी के बाद 1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी ने उन्हें भोपाल दक्षिण से टिकट दिया था. इस सीट पर वह 19 हजार के करीब वोटों से जीते थे. वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव में गौर की वापसी गोविंदपुरा सीट पर हुई. बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया और बाबूलाल गौर ने इस सीट से चुनाव जीतकर हैट्रिक बना दी.

साल 1980 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद गोविंदपुरा विधानसभा सीट और बाबूलाल गौर एक-दूसरे के पर्याय बन गए. गौर ने साल 2003 में कांग्रेस के शिवकुमार उरमलिया को रिकार्ड मतों से हराया था. इस चुनाव में गौर की लीड 64 हजार 212 की रही थी. विधानसभा में मध्य प्रदेश के चुनावी इतिहास में यह जीत सबसे बड़ी जीत के तौर पर दर्ज हुई.

एक बड़ा दिलचस्प वाकया बाबूलाल गौर के साथ वर्ष 2003 के चुनाव से जुड़ा हुआ है. बताया जाता है कि उनका टिकट करीब-करीब कट गया था. केंद्रीय चुनाव समिति के अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने जब उनके पिछले रिकार्ड को देखा तो उनके हस्तक्षेप से बाबूलाल गौर को फिर से टिकट मिल गया. इतना ही नहीं इस दौरान बाबूलाल गौर ही मुख्यमंत्री बने. वह 23 अगस्त 2004 से 29 नवंबर 2005 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.

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