फेल होती दिख रही BJP की डबल इंजन थ्योरी !

 
नई दिल्ली

एक राज्य और कई सवाल-संकेत-संदेश देकर चला गया साल के अंतिम विधानसभा चुनाव का परिणाम। इसमें कई तरह के विरोधाभास भी हैं तो कई तरह के नया ट्रेंड जिसपर आने वाले दिनों में सियासी मंथन होता रहेगा। इसका असर राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ना तय है। पिछली बार झारखंड में चुनाव पूर्व गठबंधन ने पहली बार पूर्ण बहुमत वाली सरकार को आते देखा है। अभी तक राज्य के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था। पिछली बार बीजेपी अकेले 37 सीट जीती और बहुमत से 4 सीट दूर रही। बाद में एजेएसयू के साथ सरकार बनाई। साथ ही रघुवर दास के रूप में पहली बार कोई सरकार ऐसी रही जिसने अपना टर्म पूरा किया। इससे राज्य में स्थिर राजनीति के दौर के लौटने का संकेत मिल रहा है।

झारखंड में बीजेपी को ट्राइबल वोटरों के गुस्से के अलावा स्थानीय मुद्दों पर बुरी तरह हार मिली। चुनाव को राष्ट्रीय मुद्दों की ओर धकेलने की बीजेपी की कोशिश भी पूरी तरह फेल साबित हुई। राज्य और केंद्र चुनाव में अलग-अलग पैटर्न से वोट देने का चल पड़ा नया ट्रेंड भी इसके साथ और स्थापित हुआ। महज 6 महीने में बीजेपी का वोट 20 फीसदी से अधिक गिर गया। जाहिर है अब हर चुनाव के लिए अलग-अलग रणनीति बनाने का दौर वापस होगा। 2014 के बाद बीजेपी ने एक ही फॉर्म्युले से दोनों जगहों पर कामयाबी पाई थी, लेकिन इसमें अब ब्रेक लगता दिख रहा है। इसके लिए बीजेपी ने डबल इंजन का थ्योरी दिया था जिसे झरखंड की जनता ने नकार दिया।

सबसे ज्यादा वोट लेकर भी सत्ता से दूर BJP
एक बार फिर वोट शेयर की माया बीजेपी का पीछा करती रही। पार्टी को 33.5 फीसदी वोट मिले इसके बावजूद वह सबसे बड़ी पार्टी बनने तक संघर्ष करती रही। जेएमएम को 19.29 फीसदी, कांग्रेस को 13.78% और आरजेडी को 2.82 फीसदी वोट मिले। इस हिसाब से गठबंधन को लगभग 36 फीसदी वोट मिला। अगर बीजेपी ने एजेएसयू के साथ गठबंधन बनाए रखा होता तो तस्वीर बदल सकती थी, जिसे 8.14 फीसदी वोट मिले। अगर वोट शेयर को देखें तो एजेएसयू के साथ गठबंधन टूटना बीजेपी के लिए बहुत बड़ा झटका साबित हुआ।
 
साथ ही अगर हालिया चुनाव देखें तो विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जिस अंदाज में वोट मिले रहे हैं उस हिसाब से सीटें कम मिल रही हैं। ऐसा महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में हुआ। चुनाव विश्लेषक के यशवंत देशमुख के अनुसार ऐसा इसलिए हो रहर है कि अपने मजबूत इलाके में बीजेपी बहुत बड़े अंतर से जीत रही है और दूसरी जगह कम अंतर से चुनाव हार रही है।

हेमंत की असली चुनौती अब
ट्राइबल के गुस्से का खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा। लेकिन अब उन्हें किये वादे को पूरा करने की चुनौती हेमंत सोरेन के सामने होगी। हेमंत सोरेन ने अपने चुनावी वादों में लंबी लिस्ट रखी थी। स्थानीय और बाहरी का मुद्दा भी उठाया था। जमीन नीति में बदलाव करने के भी संकेत दिए थे। इन वादों पर आगे बढ़ना बहुत आसान नहीं होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *