फिर पद्मावत पर विवाद, अब 10वीं कक्षा की किताब को लेकर नया विवाद

जयपुर

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ की महारानी पद्मिनी पर लिखी मलिक मोहम्मद जायसी की किताब पद्मावत को लेकर एक बार फिर से विवाद शुरू हो गया है. यह विवाद राजस्थान बोर्ड की 10वीं कक्षा में पढ़ाई जाने वाली किताब 'राजस्थान की संस्कृति और इतिहास' में रानी पद्मिनी पर पद्मावत के जरिए लिखी हुई बातों को लेकर है.

इस पुस्तक में रानी पद्मिनी के बारे में मलिक मुहम्मद जायसी जैसे इतिहासकारों का हवाला देकर यह बात लिखी गई है कि मुगल शासक अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मिनी को पाने के लिए ही चितौड़गढ़ पर आक्रमण किया था, जबकि मेवाड़ के इतिहासकार खिलजी के इस आक्रमण के पीछे साम्राज्यवाद को बढ़ाना, राजपुताना प्रतिष्ठा और चित्तौड़ दुर्ग की सैन्य क्षमता को खत्म करना था.

रानी पद्मिनी से जुड़े इस विवादित तथ्य को 10वीं कक्षा की पुस्तक 'राजस्थान का इतिहास एव संस्कृति' के पेज नंबर 9 पर वर्णित किया गया है. प्रताप, चेतक और हल्दीघाटी युद्ध से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को पाठ्यक्रम से हटाने के कारण गहलोत सरकार पहले से ही इतिहासकारों और मेवाड़ के राजपूतों के निशाने पर है. अब रानी पद्मिनी से जुड़ा विवादित तथ्य पाठ्यक्रम में शामिल कर एक बार फिर सरकार कठघरे में आ गई है.

आपको बता दें कि जायसी की रचना पद्मावत के आधार पर कुछ वर्ष पहले बनाई गई संजय लीला भंसाली निर्देशित फिल्म पर भी विवाद खड़ा हो चुका है. इस कारण से इस विवादित तथ्य को फ़िल्म से हटाया गया था. हालांकि इस किताब को 10वीं के छात्र-छात्राओं के ज्ञान में बढ़ोतरी के लिए इस वर्ष से जोड़ा गया है, जिसमें परीक्षार्थीयों को उतीर्ण होना आवश्यक है, लेकिन इसके अंकों को मेरिट में नहीं जोड़ा जाएगा. इससे पहले 10वीं की पुस्तक में से हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप के विजय होने के संदर्भ के हटाने को लेकर भी मेवाड़ राजघराने ने आपत्ति जताई थी. हालांकि इस पूरे मामले में अब तक राज्यसभा सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. सिलेबस तैयार करने वाले कमेटी के लोग भी कुछ नहीं बोल रहे हैं.

महाराणा प्रताप पर पीएचडी करने वाले देश के एक मात्र इतिहासकार डॉ. चंद्रशेखर शर्मा ने साफ किया कि इतिहास के रूप में सूफी साहित्यकार मलिक मोहम्मद जायसी के संदर्भ को जोड़ना तथ्यात्मक रूप से उचित नहीं है. अमीर खुसरो के साथ प्रसिद्ध लेखक निजामुद्दीन औलिया, मीर हसन देहलवी ही नहीं, बल्कि खिलजी के समकालीन सदुद्दीन अली, फखरुद्दीन, इमामुद्दीन रजा, मौलाना आरिफ, अब्दुला हकीम आदि इतिहासकारों ने भी अपनी रचनाओं में किताब में वर्णित इस घटना का कहीं भी उल्लेख नहीं किया. 

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