प्रयागराज में रियलिटी चेक: गंगा सफाई पर बेदम नजर आए मोदी के दावे

 
प्रयागराज 

नए साल की पहली संध्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने इंटरव्यू से सबको चौंका दिया और उन तमाम सवालों के जवाब दिए जो चुनाव के पहले चर्चा का केंद्र बन रहे थे. इस इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छ गंगा के लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे प्रयासों का भी ज़िक्र किया. उन्होंने कहा कि गंगा की सफाई के लिए नालों का गंगा में गिरने से रोकना सबसे जरूरी कदम है जिसके लिए सरकार कार्यरत है.

पीएम ने दावा किया कि 120 साल से जो नाला गंगा में सीधे गिर रहा था उस पर उनकी सरकार ने रोक लगाई है. अब सवाल उठता है कि क्या सरकार की कोशिशें कामयाब हो रही हैं? क्या गंगा में नालों का गिरना बंद हो गया? अगले कुछ दिनों में तीर्थराज नगरी प्रयाग में कुंभ शुरू हो रहा है, जहां गंगा और यमुना के संगम पर लाखों करोड़ों लोग डुबकी लगाने आएंगे. ऐसे में प्रयागराज में ही गंगा कितनी स्वच्छ हुई है 'आजतक' ने इसका एक रियलिटी चेक किया.  

अपनी पड़ताल के लिए हम प्रयागराज के रसूलाबाद घाट पहुंचे. हमने पाया कि केंद्र की मोदी सरकार की नमामि गंगे योजना यहां महज घोषणा बनकर रह गई है. जिस गंगा को हम प्रणाम करते हैं उस गंगा में इस घाट पर कूड़ा कचरा और मवेशी घूमते नजर आए. पानी का रंग ऐसा कि कोई सोच भी नहीं सकता कि यह मोक्षदायनी गंगा का ही पानी है. निरंजन जैसे कई लोग इस घाट पर पूजा पाठ करने वालों को नियंत्रित करने का काम देखते हैं, उनका कहना है कि इस घाट पर मनाही के बावजूद भी कूड़ा कचरा और पूजा पाठ का सामान गंगा में प्रवाहित किया जाता है. निरंजन लोगों को मना करते हैं लेकिन पढ़े-लिखे लोग भी उनकी बातें पर ध्यान नहीं देते.

घाट से महज़ कुछ दूरी पर ही रसूलाबाद का नाला है. नाव पर सवार होकर हम उस नाले तक पहुंचे. रास्ते भर गंगा का पानी दूषित ही दिखता चला गया. जब हम रसूलाबाद के उस नाले की ओर बढ़े तो तस्वीर देखकर समझ आ गया कि आखिर हिंदुओं की आस्था का प्रतीक मानी जाने वाली गंगा नदी नाले की तरह क्यों दिखती है. खानापूर्ति के लिए नाले के ऊपर जाली लगाकर कूड़ा कचरा तो रोक दिया गाया, लेकिन सीवर और घरों से निकलने वाला गंदा पानी इस नाले के जरिए सीधे गंगा नदी में गिर रहा है. आसपास इतना कूड़ा कचरा और बदबू की सांस लेना भी मुश्किल हो जाए.

घाट के आसपास रहने वाले लोग भी बताते हैं शासन और प्रशासन ने इस गंदगी की ओर कभी ध्यान नहीं दिया और गंगा की सुध नहीं ली. विजय रसूलाबाद के निवासी हैं और बताते हैं कि इस बार भी कुंभ के दौरान संगम पर लोगों को नदी नहीं बल्कि नाले के पानी में स्नान करना पड़ेगा क्योंकि गंगा की सफाई नहीं हुई.

रसूलाबाद के बाद हम तेलियरगंज पहुंचे. संगम से तेलियरगंज की दूरी कुछ ज्यादा नहीं है. गंगा का प्रवाह तेलियरगंज से होते हुए ही संगम की ओर आगे बढ़ता है. खानापूर्ति के नाम पर यहां पर भी नाला रोकने के लिए कुछ व्यवस्था की गई है, जो अपने आप में व्यवस्था का मजाक उड़ा रही है. यहां लाखों लीटर गंदा बदबूदार दूषित पानी गंगा की धारा में मिलकर उसे और प्रदूषित कर रहा है. नाले के आसपास कई टन कचरा पड़ा है जिसे देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आखिरी बार यहां सफाई हुए महीनों बीत गए.

पर्व हो या ना हो, साल भर श्रद्धालु और तीर्थयात्री प्रयाग की गंगा में डुबकी लगा कर मोक्ष पाने आते हैं. यह गंगा के प्रति आस्था ही है जो लोग गंगा के नाम पर नाले से निकल रहे पानी में आस्था की डुबकी लगाते हैं. मणि शर्मा प्रयागराज में रहते हैं और कहते हैं कि गंगा की सफाई का वायदा भर किया गया, सफाई नहीं की गई और आगे सफाई शायद कभी होगी भी नहीं. लेकिन यह श्रद्धालु गंगा को मां मानते हैं, इसलिए दूषित ही सही, लेकिन मां गंगा की धारा में डुबकी लगाकर अपना परलोक जान जाते हैं.

कुंभ के पहले बस गनीमत इतनी है कि गंगा की धारा जितनी दूषित है, यमुना का पानी उतना ही साफ है. दोनों नदियों का पानी देख कर आप पहचान सकते हैं कि एक साफ नदी में दूसरी प्रदूषित नदी का पानी मिल रहा है. दोनों का रंग सरकार के दावों की पोल खोल रहा है. यमुना का पानी अगर गंगा में यहां ना मिले तो बनारस में भी नदी की तस्वीर देखने लायक नहीं होगी.  

2018 भी बीत गया लेकिन गंगा साफ नहीं हुई. अब यह चुनावी साल है, हो सकता है गंगा की सफाई के वादे फिर किए जाएं. मां गंगा के नाम पर फिर वोट मांगे जाएंगे. लेकिन मां गंगा के बेटों को उसकी कितनी परवाह है यह प्रयागराज में गंगा में मिलते नालों की तस्वीरें बयां करती हैं. उम्मीद इतनी है कि कुंभ में आने वाले 12 करोड़ श्रद्धालु और सैलानियों को यह तस्वीर देखकर निराश न हों.

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