प्रयागराज का सबसे बड़ा परिवार, साथ रहता है साथ ही वोट भी देता है

 

 कोरांव 
जब भी इलाहाबाद में चुनाव होता है हर प्रत्‍याशी भरैचा गांव के राम नरेश भारतीय के घर जरूर आता है। इसकी वजह यह है कि राम नरेश का परिवार इलाहाबाद के क्षेत्र में सबसे बड़ा है। 98 साल के राम नरेश गर्व के साथ कहते हैं, 'मेरे परिवार में 82 सदस्‍य हैं। इस बार इनमें से 66 लोग वोट डालेंगे। इनमें से पहली बार वोट करने वाले आठ सदस्‍य हैं। आमतौर पर हम दोपहर का खाना खाने के बाद वोट डालने जाते हैं। पास के ही प्राइमरी स्‍कूल में पोलिंग बूथ है।' 

मुंबई से सदस्‍य लौटे वोट डालने 
राम नरेश के पोते विपिन इन चुनावों में पहली बार वोट डालेंगे, इसलिए काफी उत्‍साहित हैं। वह कहते हैं, 'मैं और मेरे चचेरे भाई हमारे परिवार से कॉलेज जाने वाले पहले सदस्‍य हैं।' विपिन के चाचा यानि राम नरेश के बेटे राम हृदय बताते हैं, 'परिवार के दो सदस्‍य मुंबई की प्राइवेट कंपनी में काम करते हें लेकिन वोट डालने के लिए वे भी आ रहे हैं। वोट डालना घर वापसी की एक अहम वजह है।' 
 

हर बार जब भी नेता इस परिवार से वोट मांगने आते हैं तो परिवार के सदस्‍य अपनी समस्‍याएं बताते हैं लेकिन अभी तक इसका कोई लाभ नहीं हुआ है। राम नरेश के भतीजे राम शंकर कहते हैं, 'हम पक्‍का मकान बनाना चाहते हैं लेकिन हाई टेंशन तार हमारे रास्‍ते में आ रहे हैं। हमने इन्‍हें दूसरी जगह हटाने के लिए अर्जी दी है लेकिन अभी तक हमारी बात नहीं सुनी गई। इसके बावजूद हमने वोट डालने का फैसला किया है ताकि नए जनप्रतिनिधि तक हम अपनी बात पहुंचा सकें।' 
 
चुनाव चाहे लोकसभा के हों या राज्यसभा या विधानसभा के, किसी त्योहार से कम नहीं होते। हर बार ऐसी यादें भी रह जाती हैं जो चुनावी इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो जाती हैं। आगे तस्वीरों में देखें, ऐसे ही कुछ ऐतिहासिक पल…
 
आज के समय में भले ही चुनावों के वक्त टीवी पर बढ़-चढ़रक कवरेज होती है, पहले के समय में बहुत सरलता से चुनावों का प्रसारण किया जाता है। इस तस्वीर में देखें, दिल्ली का एक स्टूडियो जहां 1971 के लोकसभा चुनावों का प्रसारण करने की तैयारी की जा रही है। यह चुनावों के टेलिविजन कवरेज के शुरुआती मौकों में से एक था।
 
साल 1978 में कर्नाटक के चिक्कमगलूरू में इंदिरा गांधी के खिलाफ जनता पार्टी के लिए प्रचार करने जाते जॉर्ज फर्नांनडीस। इंदिरा इमर्जेंसी के बाद हुए 1977 के चुनावों में सत्ता से बाहर हो चुकी थीं और अक्टूबर 1978 में चिक्कमगलूरू से उपचुनाव के लिए खड़ी हुई थीं। प्रचार के दौरान फर्नांडीस ने गांधी को ऐसा 'कोबरा' कह डाला था जो वोटरों को काट सकता था। हालांकि, इंदिरा ने इस चुनाव में जनता पार्टी के वीरेंद्र पाटिल को 70,000 वोटों से हरा दिया था।
 
आज हम नतीजे घर से लेकर बाजारों तक में लगीं बड़ी-बड़ी स्क्रीन्स पर देखते हैं। तस्वीर में देखिए, नई दिल्ली में टाइम्स ऑफ इंडिया ऑफिस के पास स्कोरबोर्ड पर डिस्प्ले किए गए 1980 लोकसभा चुनाव के नतीजे।
 
1984 के चुनावों में बांद्रा के पाली हिल में एक पोलिंग बूथ पर अपनी बारी का इंतजार करते ऐक्टर ऋषि कपूर।
 
1984 के लोकसभा चुनावों से पहले प्रचार के लिए निकले लखनऊ सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जेपी शुक्ला वोट मांगने के लिए हजरतगंज के व्यस्त चौराहे पर एक ट्रैफिक कॉन्स्टेबल के पैर छूते हुए। उस साल लखनऊ में कांग्रेस की शीला कौल की जीत हुई थी। कौल इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में शामिल हुई थीं। उन्होंने तीन बार यह सीट अपने नाम की और बाद में हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल भी बनीं।
 
1984 के चुनावों से पहले बॉम्बे की नॉर्थ-वेस्ट लोकसभा सीट पर प्रत्याशी और ऐक्टर सुनील दत्त को उनके समर्थकों ने सिक्कों में तौल दिया। दत्त के सामने मैदान में बीजेपी के राम जेठमलानी थे जिन्हें उन्होंने 1.5 लाख वोटों से हराया। दत्त को 60.7% वोट मिले थे।
 
इलाहाबाद में प्रचार करते अमिताभ बच्चन। 1984 लोकसभा चुनाव में अमिताभ बच्चन ने इलाहाबाद से चुनाव लड़ा था, उन्होंने एचएन बहुगुणा को हराया था। अमिताभ इस सीट से 1,87,795 मतों से जीते थे हालांकि तीन साल बाद उन्होंने राजनीति छोड़ने का ऐलान कर सांसद पद से इस्तीफा दे दिया था।
 
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एनटी रामाराव 1987 में हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान झज्जर में लोकदल के नेता देवीलाल के लिए चुनाव प्रचार करते हुए। वह अपने साथ तेलुगू देशम पार्टी के ऐतिहासिक वाहन भी हरियाणा ले गए थे जिसे चैतन्य रतम नाम दिया गया था। लोकदल-बीजेपी ने चुनाव में विरोधियों का सूपड़ा साफ कर दिया और देवी लाल मुख्यमंत्री बने।
  

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