पिछड़ी जातियों के उपवर्गों को मिल सकता है न्यूट्रल टैग्स

नई दिल्ली
आरक्षण का लाभ सभी जातियों तक पहुंचाने के लिए पिछड़ी जातियों (OBC) को उपवर्गों (सब-कैटिगरीज) में बांटने के लिए गठित रोहिणी आयोग हर ग्रुप को 'न्यूट्रल' टैग दे सकता है। दरअसल, ओबीसी की केंद्रीय सूची को बांटने के लिए सरकार ने रोहिणी आयोग का गठन किया था, जिसकी रिपोर्ट जुलाई में आने वाली है। बताया जा रहा है कि आयोग हर ग्रुप के लिए 'न्यूट्रल' टैग दे सकता है, जो ओबीसी वर्गों के भीतर नाराजगी से बचने के लिए सामाजिक विकास या पिछड़ेपन का सुझाव देने से बचेगा।

 

OBC लिस्ट को जिन समूहों में बांटने की पैनल सिफारिश कर सकता है, उसे व्यक्त करने के लिए अंकों या अक्षरों का लेबल चुना सकता है। इसका मकसद ज्यादा बैकवर्ड OBCs के लिए सब-कोटा बनाना है, जिनके बारे में कहा जाता है कि ज्यादा दबदबे वाली बैकवर्ड जातियों द्वारा आरक्षण का अधिकांश लाभ लेने के चलते उन्हें फायदा नहीं मिल पाता है।

रोहिणी पैनल आंध्र प्रदेश द्वारा तैयार की गई सब-कैटिगरीज के आधार पर सिफारिश कर सकता है। आंध्र में OBCs को 'A, B, C, D, E' में बांटा गया है। वहीं, कर्नाटक में OBCs के सब-ग्रुप के नाम '1, 2A, 2B, 3A, 3B' हैं। आरक्षण लाभ के समान वितरण को सुनिश्चित करने के लिए OBC लिस्ट को समूहों में बांटने की योजना है जिससे 27 फीसदी आवंटित मंडल आरक्षण में कुल पिछड़ी जाति की आबादी को शामिल किया जा सके।

इसके बाद 'बैकवर्ड्स में फॉरवर्ड्स' 27% में से केवल एक हिस्से के लिए योग्य होंगे जो मौजूदा स्थिति से बिल्कुल उलट है। फिलहाल इनका शेयर असीमित है। इनके बारे में कहा जाता है कि ये बहुत अधिक कोटा लाभ झटक लेते हैं। 27% कोटे का बाकी हिस्सा सबसे ज्यादा बैकवर्ड समूहों के लिए होगा और इससे उन्हें 'बैकवर्ड्स में फॉरवर्ड्स' के साथ प्रतिस्पर्धा से बचने में मदद मिलेगी।

अगर ऐसा होता है तो सब-कैटिगरी बनने से 'बैकवर्ड्स में फॉरवर्ड्स' नाराज हो सकते हैं क्योंकि वे खुद को लूजर समझ सकते हैं। दरअसल, ये समूह राजनीतिक और आर्थिक रूप से मजबूत होते हैं और इनका दबदबा रहता है। इनकी नाराजगी से बचने के लिए आयोग 'सबसे ज्यादा पिछड़े' और 'अति पिछड़े' जैसे नए सब-ग्रुप को नाम या टाइटल देने से बच सकता है। इस तरह के लेबल्स बिहार और तमिलनाडु राज्यों में अपनाए गए हैं।

केंद्रीय विभागों और बैंकों में होने वाली भर्तियों के डेटा के विश्लेषण से आयोग ने पाया कि 10 जातियों को 25 फीसदी लाभ मिला है जबकि 38 अन्य जातियों ने दूसरे एक चौथाई हिस्से को घेर लिया। करीब 22 फीसदी लाभ 506 अन्य जातियों को मिला। इसके विपरीत 2.68 फीसदी लाभ 994 जातियों ने आपस में शेयर किया। गौर करने वाली बात यह है कि 983 जातियों को कोई लाभ ही नहीं मिल पाया।

इससे साफ हो गया है कि कुछ जातियों का ही कोटा लाभ में दबदबा रहता है। ऐसे में आयोग OBCs की केंद्रीय सूची को बांटने की सिफारिश करेगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2017 में रोहिणी आयोग का गठन किया था और इसे 31 मई तक एक और विस्तार दे दिया गया। अब इसे दो और महीने जुलाई 2019 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।

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