पहले थीं महिला नक्सली, अब लाल आतंक के खिलाफ कमांडोज

  रायपुर 
कुछ साल पहले तक वे नक्सली थीं लेकिन आज नक्सलियों के खिलाफ जंग लड़ रही हैं। आत्मसमर्पण कर चुकीं और सलवा जुडुम की पीड़ित महिलाएं वैसे तो सरेंडर के बाद ज्यादातर 'घरेलू कामों' में व्यस्त हो जाती हैं लेकिन इनमें से कुछ हाथों में AK-47 लेकर नक्सलियों के खिलाफ जंग में अग्रिम मोर्चे पर हैं।  
 
छत्तीसगढ़ की संरक्षक देवी के नाम पर इन महिला कमांडों को 'दंतेश्वरी लड़ाके' के नाम से जाना जाता है। इन कमांडो ने बुधवार को नक्सलियों के खिलाफ एक ऑपरेशन में हिस्सा लिया, जिसमें 2 नक्सली मारे गए। पुलिस सूत्रों ने बताया कि पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर लड़ रहीं इन महिला कमांडों ने एक महीने में 5 नक्सलियों को ढेर किया है। 

यह प्रयोग दंतेवाड़ा के एस. पी. अभिषेक पल्लव का ब्रेन चाइल्ड है। वह कहते हैं कि 4 महीने पहले जब उन्होंने आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों के एक कैंप का दौरा किया तो उनके दिमाग में यह विचार आया है। 

पल्लव ने बताया, 'एक तरफ जहां ज्यादा पूर्व पुरुष नक्सलियों को प्रशिक्षित करने के बाद उन्हें डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड में भर्ती कर लिया गया है, वहीं दूसरी तरफ महिलाएं घरों में बैठकर रोटी बना रही थी। इस चीज ने उन्हें कुंठित कर दिया क्योंकि वे जंगल में पुरुषों के साथ बराबरी से रहीं और अब उनकी सेवा कर रही हैं। इससे उनके अंदर कमजोर और कमतरी का अहसास होता था।' उन्होंने तब डिस्ट्रिक्ट एस. पी. दिनेश्वरी नंदा से 'महिला कमांडोज की एक एकीकृत कॉम्बैट फोर्स' बनाने के लिए कहा। 

30 महिलाओं को चुना गया और उन्हें ब्रिगेडियर बी. के. पोंवार (रिटायर्ड) द्वारा संचालित कांकेर जंगल वॉरफेयर कॉलेज भेजा गया। वहां दिसंबर में उन्हें 6 हफ्तों की कड़ी कॉम्बैट ट्रेनिंग दी गई और उसके बाद मार्च तक इन-हाउस ट्रेनिंग दी गई। पल्लव ने बताया, 'इसके बाद फील्ड ट्रेनिंग के लिए वे छोटे ऑपरेशनों में जाने लगीं और अब बड़े ऑपरेशंस के लिए पूरी तरह तैयार हैं।' 

पल्लव ने बताया कि इस पहल ने महिलाओं के आत्मगौरव को फिर से स्थापित किया। उन्होंने बताया, 'जब एक माओवादी जोड़े ने सरेंडर किया था तो वे आगे भी सामंजस्य के साथ काम करना चाहते थे। दंतेश्वरी लड़ाके महिला और पुरुष कमांडोज का समूह है, जो जंगल में रहने और लड़ने में पारंगत हैं।' 

दंतेवाड़ा के एसपी ने बताया कि इससे और ज्यादा महिला नक्सलियों को सरेंडर करने की प्रेरणा मिलेगी। फिलहाल, सरेंडर कर चुके नक्सलियों में पुरुष-महिला का अनुपात 90:10 का है। पल्लव ने बताया कि महिला कमांडोज कुछ मायनों में पर्फेक्ट हैं। वे अपने हथियारों को अपनी साड़ियों में छिपा सकती हैं और किसी को कोई शक हुए बिना ही नक्सलियों पर नजर रख सकती हैं। इतना ही नहीं, वे भीड़ में आसानी से घुल जाती हैं। 

डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड्स स्थानीय आदिवासी युवाओं से बना है, जिनमें सरेंडर कर चुके नक्सली भी शामिल हैं। लाल आतंक के खिलाफ लड़ाई में इन्होंने शानदार प्रदर्शन किया है। दंतेवाड़ा में डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड्स के 5 यूनिट हैं और पहली बार बस्तर क्षेत्र के किसी जिले में महिला कमांडोज भी शामिल हैं। पल्लव कहते हैं, 'अब वे यूनिफॉर्म में फिर से लौटने पर खुश हैं, अब वे एक अलग विचारधारा के साथ लड़ रही हैं।' 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *