पक्षियों के आरामगाह के लिए ग्रामीणों ने दी 143 एकड़ जमीन

कटिहार

बिहार के ग्रामीणों ने देश और दुनिया के सामने एक अनूठी मिसाल पेश की है. दरअसल बिहार में कटिहार जिले के मनिहारी क्षेत्र के ग्रामीणों ने पक्षियों के प्रति प्रेम को दर्शाते हुए अपनी 143 एकड़ जमीन पक्षियों के आरामगाह बनाने के लिए दे दी. ग्रामीणों की इस मानवीय पहल पर उन्हें वन विभाग और जिला प्रशासन का भी साथ मिला है. इस पहल पर बिहार सरकार ने भी वन विभाग और कटिहार जिला प्रशासन की ओर से मिले प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगा दी है.

आपको बता दें कटिहार की गोगाबील झील को बिहार के पहले और एक मात्र 'कंजर्वेशन रिजर्व' और 'कम्युनिटी रिजर्व' का दर्जा मिला है. करीब 217 एकड़ क्षेत्र में फैली इस झील में 73.78 एकड़ सरकारी जमीन पर कंजर्वेशन रिजर्व है जबकि ग्रामीणों की 143 एकड़ भूमि को कम्युनिटी रिजर्व घोषित किया गया है.

गोगाबील बिहार का पहला 'कम्युनिटी रिजर्व' और 'कंजर्वेशन रिजर्व' बना, मगर इसके लिए स्थानीय ग्रामीणों को तैयार करना इतना आसान भी नहीं था. स्वयंसेवी संस्था 'जनलक्ष्य', 'गोगा विकास समिति', 'अर्णव' और 'मंदार नेचर क्लब' के लोगों ने स्थानीय लोगों के मन से इस भ्रम को दूर करने में सफलता पाई कि 'कम्युनिटी रिजर्व' बनने से उनके अधिकारों का हनन नहीं होगा और इसका प्रबंधन भी स्थानीय समुदाय के पास ही रहेगा. तब जाकर लोगों ने हामी भरी और इसके लिए जमीन दी.

राज्य वन्य प्राणी परिषद के पूर्व सदस्य अरविंद मिश्रा ने आईएएनएस को बताया कि इस पहल से अब यहां ईको टूरिज्म विकसित होगा और देश-दुनिया से आने वाले प्रवासी पक्षियों का यहां बसेरा अब सुरक्षित किया जाएगा. गोगाबील झील के एक तरफ गंगा नदी है, जबकि दूसरी ओर महानंदा नदी बहती है. साल में चार से छह महीने तक खेतों में पानी भरा रहने के कारण ग्रामीण एक ही फसल पैदा कर पाते हैं. 250 से अधिक गांव वालों ने जलभराव वाली जमीन को अभयारण्य में बदलने के लिए अपनी जमीन गोगाबिल पक्षी रिजर्व विकसित करने के लिए दे दी है.

गोगाबील झील सन 1990 के बाद प्रतिबंधित क्षेत्र था लेकिन वर्ष 2002 में वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम-1972 में संशोधन कर इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया और गोगाबील बिहार के संरक्षित क्षेत्रों की सूची से बाहर हो गया. यह झील विदेशी पक्षियों के लिए आराम फरमाने की जगह बन चुकी है. करीब 100-150 प्रजातियों के अनोखे पक्षी यहां दिखाई देते हैं. पक्षी अभ्यारण्य बनने के बाद अब पर्यटक भी यहां विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों को निहार सकेंगे.

जनलक्ष्य के डॉ राज अमन सिंह ने बताया कि उनकी संस्था ने झील किनारे के एक आदिवासी गांव 'मड़वा' को गोद भी लिया है, जहां विभिन्न शिविरों और कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.

बिहार के मुख्य वन्यप्राणी प्रतिपालक यानी चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन ए़ के पांडेय के अनुसार,  'अब यह गोगाबील झील पक्षियों के लिए आरामगाह होगी और पक्षी भी अब बिना डर के घूम सकेंगे. पर्यटकों की संख्या में भी इस क्षेत्र में वृद्धि होगी और पर्यटक भी यहां विभिन्न तरह के पक्षियों को निहार सकेंगे.'

ए़ के पांडेय वर्ष 2015 में भागलपुर के तत्कालीन क्षेत्रीय मुख्य वन संरक्षक थे और उन्होंने पहल करते हुए गोगाबील क्षेत्र का भ्रमण किया था. उसके बाद उन्होंने इसे विकसित करने और इसे वैधानिक दर्जा दिलाने के लिए प्रयास शुरू किए थे.

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