न्यूनतम वेतन की गारंटी देगी सरकार, पुराने कई श्रम कानूनों को आसान करने की योजना

 नई दिल्ली
 
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'वेतन संहिता विधेयक 2019' को बुधवार को मंजूरी दे दी। इस विधेयक के लागू हो जाने के बाद केंद्र सरकार देशभर के कामगारों के लिए न्यूनतम वेतन तय करेगी, जिससे कम वेतन राज्य सरकारें नहीं दे पाएंगी। इस बिल के इसी संसद सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि सरकार की योजना पुराने कई श्रम कानूनों को सरल कर उनकी जगह सिर्फ चार कानून बनाने की है जिसमें यह पहला कानून होगा।

विधेयक में प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार रेलवे और खनन समेत कुछ क्षेत्रों के लिए न्यूनतम मजदूरी तय करेगी, जबकि राज्य अन्य श्रेणी के रोजगारों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र होंगे। न्यूनतम मजदूरी में हर पांच साल में संशोधन होगा। विधेयक में कर्मचारियों के पारिश्रमिक से जुड़े मौजूदा सभी कानूनों को एक साथ करने और केंद्र सरकार को पूरे देश के लिये एक न्यूनतम मजदूरी तय करने का अधिकार देने का प्रावधान किया गया है।

सरकार ने देश में कारोबार सुगमता को बढ़ावा देने और निवेश आकर्षित करने के लिये श्रम क्षेत्र में चार संहिता का प्रस्ताव किया है जो मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक सुरक्षा और कल्याण तथा औद्योगिक संबंधों से जुड़ी होंगी। मजदूरी संहिता उनमें से एक है।

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सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, ''मंत्रिमंडल ने मजदूरी संहिता पर विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी है।" सरकार का इसे संसद के मौजूदा सत्र में पारित कराने का इरादा है। मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में 10 अगस्त 2017 को मजदूरी संहिता विधेयक को लोकसभा में पेश किया था। इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति को भेजा गया। समिति ने 18 दिसंबर 2018 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। हालांकि, मई 2019 में 16वीं लोकसभा भंग होने के साथ विधेयक निरस्त हो गया।

मजदूरी संहिता मजदूरी भुगतान कानून, 1936, न्यूनतम मजदूरी कानून, 1948, बोनस भुगतान कानून 1965 और समान पारिश्रमिक कानून 1976 का स्थान लेगा। विधेयक में प्रावधान है कि केंद्र सरकार रेलवे और खान समेत कुछ क्षेत्रों के लिये न्यूनतम मजदूरी तय कर सकती है जबकि राज्य अन्य श्रेणी के कर्मचारियों के लिये न्यूनतम मजदूरी तय करने को स्वतंत्र हैं। संहिता में राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने का प्रावधान है। केंद्र सरकार विभिन्न क्षेत्रों या राज्यों के लिये अलग से न्यूनतम वेतन निर्धारित कर सकती है। कानून के मसौदे में यह भी कहा गया है कि न्यूनतम मजदूरी की समीक्षा हर पांच साल में की जाएगी।

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