नीतीश से मिलकर बोले तेजस्वी- अस्थिर नहीं होने देंगे सरकार, बिहार में बदली फिजा

 
पटना 

बिहार विधानसभा के चल रहे इस बजट सत्र में बड़ी तेजी से सियासी चालें चली जा रही हैं. विधानसभा से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर(एनआरसी) और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) के खिलाफ प्रस्ताव पास होने के बाद एक तरफ भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) जहां मायूस नजर आ रही है, वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के बीच एक बार फिर विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में मुलाकात हुई.

मंगलवार (25 फरवरी) को भी दोनों की मुलाकत हुई थी, उसके बाद सदन में एनआरसी और एनपीआर पर प्रस्ताव सदन में पास हुआ. बुधवार को भी दोनों की मुलाकत बंद कमरे में हुई. अबतक नीतीश कुमार को खुलकर कोसने वाले तेजस्वी ने नीतीश कुमार से मुलाकात पर मीडिया से कहा कि बिहार में सरकार को अस्थिर नहीं होने देंगे.

पिछले चार सालों में चार बार सरकार बदली हैं. नीतीश कुमार से तालमेल पर उन्होंने कहा कि जिनके पास बीजेपी से लड़ने की ताकत नहीं है, उन्हें साथ लाकर क्या करेंगे.
 
बंद कमरे में हुई मुलाकात
बुधवार को विधानसभा अध्यक्ष के कमरे में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव बारी-बारी से पहुंचे. दोनों की मुलाकात अध्यक्ष के कमरे के भीतर बने छोटे से कक्ष में हुई. इससे पहले मंगलवार को भी तेजस्वी यादव नीतीश कुमार से मिलने उनके कक्ष में चले गए थे. उसके बाद ही विधानसभा में सर्वसम्मति से एनआरसी और एनपीआर पर प्रस्ताव पास हुआ.

कक्ष से बाहर निकल कर तेजस्वी ने कहा कि औपचारिक तौर पर चाय पीने के लिए अध्यक्ष के चेंबर में गए थे. अगर अरविंद केजरीवाल अमित शाह से मिलने जा सकते है तो क्या हम नीतीश कुमार से नहीं मिल सकते हैं.

नीतीश के साथ जाने पर साधी चुप्पी
जब पत्रकारों ने पूछा कि क्या फिर से नीतीश कुमार के साथ वो जा सकते हैं उन्होंने खुलकर तो कुछ नहीं कहा. लेकिन ये कहकर जरूर चौंका दिया कि बिहार में सरकार को अस्थिर नहीं होने देंगे. यानि अगर एनआरसी और एनपीआर के मुद्दे पर बीजेपी कुछ खेल करती है तो वो नीतीश सरकार को समर्थन दे सकते हैं.
 
ऐसा 2013 में भी हो चुका है, जब नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ा था तो राष्ट्रीय जनता दल(आरजेडी) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बिना शर्त बाहर से सरकार को समर्थन दिया था.

बिहार में इस साल अक्टूबर में चुनाव है. इस बीच एनआरसी और एनपीआर के मुद्दे पर सियासी चाले चली जा रही हैं. अब ऊंट किस करवट बैठेगा, ये कहना तो मुश्किल है लेकिन जिस तरीके से चीजें बदल रही हैं, उससे लगता है कि चुनाव आते आते कुछ उलट फेर हो जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

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