द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर मूवी रिव्यू

कलाकार: अनुपम खेर,अक्षय खन्ना,सुजैन बर्नर्ट,अर्जुन माथुर,आहना कुमरा
निर्देशक:  विजय रत्नाकर गुट्टे
मूवी टाइप: Drama,Biography
अवधि: 1 घंटा 52 मिनट

पूर्व पीएम के बेहद करीबी रहे संजय बारू की किताब 'द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर ' पर आधारित निर्देशक विजय रत्नाकर गुट्टे की फिल्म में एक तरफ पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को 'सिंह इस किंग' कहा गया है, तो दूसरी तरफ कमजोर और महाभारत का भीष्म पितामह बना दिया है, जिन्होंने राजनीतिक परिवार की भलाई की खातिर देश के सवालों का जवाब देने के बजाय चुप्पी साधे रखी। फिल्म में कुछ ऐसी बातें भी हैं, जो पूर्व पीएम की इमेज को क्लीन करने के साथ-साथ धूमिल भी करती है। ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर को किताब बद्ध करने वाले पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार और करीबी रहे संजय बारू का कहना है कि उस किताब के प्रकाशित होने के बाद पीएम उनसे कभी नहीं मिले। क्या यही बात पीएम को नागवार गुजरी? बहरहाल यह सच तो पूर्व पीएम और संजय बारू के बीच का है, मगर संजय बारू की किताब के बहाने 2004 से 2014 के बीच पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पीएमओ से जुड़ी जिस दुनिया को दिखाया गया है, उसपर फिल्म बनाने की मंशा को लेकर लोग कई सवाल खड़े कर रहे हैं। खास तौर पर तब जब कि चुनाव बेहद करीब हैं। इसके इतर इसे सिनेमाई अंदाज में देखा जाए तो अनुपम खेर, अक्षय खन्ना के साथ सहयोगी कास्ट की परफॉर्मेंस इतनी जबरदस्त है कि आप उस दौर को जीने लगते हैं।
फिल्म की कहानी संजय बारू के नजरिए से है, जो 2004 में लोकसभा में यूपीए के विजयी होने के साथ शुरू होती है, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (सुजैन बर्नेट) स्वयं पीएम बनने का लोभ त्यागकर डॉक्टर मनमोहन सिंह को पीएम पद के लिए चुनती हैं। उसके बाद कहानी में राहुल गांधी (अर्जुन माथुर), प्रियंका गांधी (आहना कुमरा) जैसे कई किरदार आते हैं। संजय बारू (अक्षय खन्ना ) जो पीएम का मीडिया सलाहकार है, लगातार पीएम की इमेज को मजबूत बनाता जाता है। उसने एक बात पहले ही स्पष्ट कर दी है कि वह हाईकमान सोनिया गांधी को नहीं बल्कि पीएम को ही रिपोर्ट करेगा। पीएमओ में उसकी चलती भी खूब है, मगर उसके विरोधियों की कमी नहीं है। बारू पीएम को ट्रांसफॉर्म करता है, उनके भाषण लिखता है फिर पीएम का मीडिया के सामने आत्मविश्वास से लबरेज होकर आना, बुश के साथ न्यूक्लियर डील की बातचीत, इस सौदे पर लेफ्ट का सरकार से सपॉर्ट खींचना, पीएम को कटघरे में खड़े किए जाना, पीएम के फैसलों पर हाईकमान का लगातार प्रभाव, पीएम और हाईकमान का टकराव, विरोधियों का सामना जैसे कई दृश्यों के बाद कहानी उस मोड़ तक पहुंचती है, जहां न्यूक्लियर मुद्दे पर पीएम इस्तीफा देने पर आमादा हो जाते हैं पर हाईकमान उनको इस्तीफा देने से रोक लेती है। आगे की कहानी में उनकी जीत के अन्य पांच साल दर्शाए गए हैं, जो एक तरह से यूपीए सरकार के पतन को दर्शाती है, जहां 2 जी जैसे घोटाले दिखाए गए हैं।

फिल्म में इस बात को खास तौर पर रेखांकित किया गया है कि कैसे वे अपनी ही पार्टी के लोगों की राजनीति का शिकार बने। निर्देशक विजय रत्नाकार गुट्टे की फिल्म उस खास दर्शक वर्ग के लिए है, जो राजनीति में गहरी रुचि रखता है। मासेज के लिए इसे समझना दुष्कर है। फिल्म में दर्शाए गए रेफरेंस को ध्यान से देखने की कड़ी जरूरत है। दर्शकों को वे पीएमओ की ऐसी दुनिया में ले जाते हैं, जिसका उसे अंदाजा तो है, मगर वह उससे परिचित नहीं है। फिल्म की कहानी बहुत ही सपाट है। रोमांचक टर्न्स ऐंड ट्विस्ट की कमी खलती है। मुख्य कलाकारों को छोड़कर सहयोगी चरित्रों का समुचित विकास नहीं किया गया है। कई जगहों पर फिल्म एक ही सेट अप के कारण बोर करने लगती है, मगर डार्क ह्यूमर आपका मनोरंजन भी करता है।

अभिनय की बात की जाए तो पूर्व पीएम की भूमिका में अनुपम खेर शुरुआत में वॉइस मॉड्यूलूशन और दोनों हाथ आगे झुकाकर चलने के अंदाज से अटपटे लगते हैं, मगर जैसे-जैसे किरदार का विकास होता जाता है और कहानी आगे बढ़ती जाती है, चरित्र में अनुपम खेर कन्विसिंग लगने लगते हैं। उन्होंने किरदार की गंभीरता को बनाए रखा है। किताब के तथ्यों के मुताबिक, उन्होंने पीएम की बेचारगी, बेबसी और डार्क ह्यूमर को बखूबी निभाया है। बारू के किरदार में अक्षय खन्ना फिल्म के हाई लाइट साबित हुए हैं। सूत्रधार के रूप में अपने लुक, विशिष्ट संवाद अदायगी और तंजिया लहजे के बलबूते पर अक्षय ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया है। जर्मन ऐक्ट्रेस सुजैन बर्नर्ट ने सोनिया गांधी के लुक को अच्छी तरह अपनाया है, मगर किरदार में उनका नेगेटिव स्ट्रीक ज्यादा स्ट्रॉन्ग है। प्रियंका के रूप में आहना का लुक जबरदस्त है, मगर उन्हें ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं मिला है। उसी तरह राहुल की भूमिका में अर्जुन माथुर को ज्यादा सीन्स नहीं मिले। पीएम की पत्नी की भूमिका में दिव्या सेठ याद रह जाती हैं। अन्य राजनीतिक किरदारों में कलाकारों की कास्टिंग और अभिनय सधा हुआ है।

क्यों देखें-राजनीति में रुचि रखने वाले इस फिल्म को जरूर देख सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *