दिल्ली के त्रिकोणीय मुकाबले में फायदे में दिख रही बीजेपी, ‘आप’ और कांग्रेस के लिए चुनौती

 नई दिल्ली 
दिल्ली में 2015 के विधानसभा चुनावों में नई बनी आम आदमी पार्टी ने जब बीजेपी के विजय रथ को रोकते हुए 67 सीटें हासिल की थीं तो देश में हर कोई हैरान था। अब 4 साल बाद लोकसभा चुनाव में केजरीवाल की पार्टी पसोपेश में है और 12 मई को दिल्ली में होने वाला मतदान उसके लिए परीक्षा सरीखा है। 2014 के आम चुनाव में दिल्ली की सभी 7 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। बीते दो महीनों से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी चुनावी गठबंधन के लिए बातचीत कर रहे थे। इसे लेकर पार्टी के अंदर ही उठ रहे सवालों के जवाब देते हुए अरविंद केजरीवाल यह कह रहे थे कि बीजेपी से निपटने के लिए पंजाब की 13, हरियाणा की 10, दिल्ली की 7, गोवा की 2 और चंडीगढ़ की एक सीट पर गठबंधन जरूरी है। 

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हालांकि, कांग्रेस सिर्फ दिल्ली में ही आम आदमी पार्टी के साथ गठजोड़ के मूड में थी। आम आदमी पार्टी इसके बावजूद यह कहती रही कि दिल्ली, हरियाणा और चंडीगढ़ की 18 सीटों में गठबंधन पर बात बन सकती है, आखिरी नतीजा यही हुआ कि आप और कांग्रेस अलग लड़ रहे हैं। अब दिल्ली समेत पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ में तीनों ही दल आमने-सामने हैं। 

विश्लेषक बोले, गठबंधन न होने से बीजेपी को बढ़त 
इस स्थिति को लेकर राजनीतिक विश्लेषक चंद्रभान प्रसाद कहते हैं, 'कांग्रेस-आप का गठबंधन बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती साबित हो सकता था, लेकिन ऐसा न होने से बीजेपी को वोटिंग में बड़ा फायदा होगा और जीत के उसके चांस बढ़ जाएंगे।' 2014 के वोट शेयर का अध्ययन करें तो बीजेपी बढ़त में दिखती है। 

2014 में बीजेपी को मिले थे 46.6 पर्सेंट वोट 
2014 में मोदी लहर पर सवार बीजेपी को 46.6 पर्सेंट वोट राजधानी में मिले थे, जबकि आप ने 33.1 और कांग्रेस ने 15.2 पर्सेंट वोट हासिल किए थे। अब त्रिकोणीय मुकाबले में निश्चित तौर पर आप और कांग्रेस दोनों के लिए कठिन स्थिति हो सकती है। इसकी वजह यह है कि दोनों को कोर वोट बेस एक ही है। दोनों पार्टियां मुस्लिमों, अनाधिकृत कॉलोनियों एवं झुग्गियों में रहने वाले गरीबों और मिडल क्लास के एक छोटे वर्ग के बीच अपनी पकड़ रखती हैं। 

2013 जैसे कांग्रेस और 'आप' में बंट सकते हैं वोट 
इसी वोट समीकरण के चलते 2015 में 'आप' ने 54 पर्सेंट मतों के साथ 67 सीटों पर कब्जा जमाया था, जबकि बीजेपी को 32 फीसदी और कांग्रेस को 10 पर्सेंट वोट मिले थे। 2013 में 29.5 पर्सेंट वोट हासिल करने वाली 'आप' के लिए यह बड़ी सफलता थी। बीजेपी का वोट शेयर तब भी 33 पर्सेंट था, जबकि कांग्रेस को 24.6 पर्सेंट वोट मिले थे। तब यह बात सामने आई थी कि कांग्रेस के वोट ही आप को ट्रांसफर हुए हैं। 

पुलवामा, बालाकोट से बदला मतदाताओं का मूड 
इस बार के चुनाव में भी 'आप' और कांग्रेस के बीच विभाजन की स्थिति हो सकती है, जबकि बीजेपी का वोट जस का तस बना रह सकता है। वोटर्स के मूड की बात करें तो ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जो मोदी को एक और मौका देने के पक्ष में हैं। भले ही 2014 की तरह इस बार मोदी लहर नहीं है, लेकिन पुलवामा आतंकी हमले और फिर बालाकोट एयर स्ट्राइक ने वोटर्स के मूड को प्रभावित किया है। 

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