…तो अब यूपी में मंत्रियों के ‘अहम’ में नहीं पिसेगी जनता

 
लखनऊ 

सीएम योगी आदित्यनाथ ने मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद विभागों के बंटवारे में भी 'लड़ाई' खत्म करने की कोशिश की है। सरकार के गठन के समय बांटे गए काम-काज से अलग इस बार एक तरह के विभागों को एक ही मंत्री के पास रखा गया है। इससे मंत्रियों की 'अहम' की लड़ाई में फंसती योजनाओं की फाइलों के चक्कर में जनता नहीं पिसेगी। यही वजह है कि पिछली बार अलग-अलग कैबिनेट मंत्रियों में बंटे आधा दर्जन से अधिक विभाग इस बार एक ही छतरी के तले लाए गए हैं। 

मंत्रिमंडल का विस्तार ऐसे समय में हुआ है जब नीति आयोग के निर्देश पर विभागों के पुनर्गठन की कवायद चल रही थी। पुनर्गठन तो अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंचा, लेकिन इस दौरान किए गए होमवर्क का असर विभागों के बंटवारे पर साफ दिख रहा है। पिछली बार एक-दूसरे से जुड़े कई विभाग अलग-अलग मंत्रियों के हिस्से चले गए थे। इनमें कुछ विभागों के प्रमुख सचिव एक ही हैं। ऐसे में अलग-अलग मंत्रियों को रिपोर्ट करने और समन्वय बनाने में अधिकारियों के भी पसीने छूटते थे। योजनाएं एक-दूसरे से जुड़ी होने के कारण कई बार आपसी सहमति न होने के चलते देर होती थी। इस बार यह कमी दूर होती नजर आ रही है। 

मसलन पिछली बार ऊर्जा श्रीकांत शर्मा थे जबकि वैकल्पिक ऊर्जा विभाग ब्रजेश पाठक के पास था। अब दोनों ही विभाग श्रीकांत शर्मा देखेंगे। स्वास्थ्य विभाग पहले सिद्धार्थनाथ सिंह के पास था तो मातृ व शिशु कल्याण रीता बहुगुणा जोशी के हिस्से थे। अब दोनों विभाग जयप्रताप सिंह के पास हैं। पर्यटन विभाग पहले रीता देखती थीं, तो संस्कृति लक्ष्मी नारायण चौधरी। इस बार दोनों विभाग नीलकंठ तिवारी देखेंगे। महिला कल्याण पहले रीता के पास था तो बाल विकास एवं पुष्टाहार अनुपमा जायसवाल के पास। दोनों विभागों की बहुत ही योजनाओं के स्टॉक होल्डर एक थे। इस बार दोनों विभाग स्वाती सिंह के पास हैं। सिंचाई व जल संसाधन से जुड़े सभी विभाग इस बार एक छतरी के तले हैं। दुग्ध विकास की जिम्मेदारी पहले लक्ष्मी नारायण देखते थे तो पशुधन का जिम्मा एसपी सिंह बघेल का था। अब दोनों विभाग लक्ष्मी नारायण के पास हैं। 
 

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