टसर कृमिपालन: किसानों के अतिरिक्त आय का बना साधन : कोसा उत्पादन से 30 हजार हितग्राही हुए लाभान्वित

रायपुर

छत्तीसगढ़ राज्य में ग्रामोद्योग के रेशम प्रभाग द्वारा संचालित  टसर  कृमिपालन कार्य से ग्रामीण अंचल में निवास कर रहे अनुसूचित जाति एवं पिछड़े वर्ग के गरीब परिवारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराया जा रहा है।  विभागीय अधिकारियों ने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य में दो प्रकार की रेशम प्रजातियों टसर एवं मलबरी  ककून  का उत्पादन  होता है । पालित डाबा टसर ककून उत्पादन योजनांतर्गत प्रदेश में उपलब्ध साजा-अर्जुन के टसर खाद्य पौधों पर  कीट  पाले जाते हैं। इस योजना को अपनाने के लिए हितग्राहियों को किसी प्रकार की पूंजी निवेश की आवश्यकता नहीं होती है ऐसे कृषक जिनकी स्वयं की भूमि पर पर्याप्त मात्रा में टसर खाद्य पौधे उपलब्ध हैं वे कृषक इस योजना को अपनाकर स्वरोजगार प्राप्त कर सकते हैं। विभाग द्वारा  टसर  स्वस्थ डिम्ब समूह  रियायती  दर पर प्रति कृषक को 100 स्वस्थ डिम्ब समूह उपलब्ध कराया जाता है जिससे वर्ष में तीन फसलों के माध्यम से  कृषकों द्वारा उत्पादित की जा सकती है । प्रत्येक फसल में 8000 – 10000  कोसा का उत्पादन कर पांच सौ रूपये से 3000 रूपये प्रति कृषक को आय होती है। यह योजना राज्य के समस्त जिलों में संचालित चार सौ बीस टसर कोसा बीज केंद्रों एवं नवीन (राजस्व-वनभूमि)विस्तार केंद्र तथा चिन्हांकित वन क्षेत्रों में   क्रियान्वित की जा रही है । वर्ष 2019-20 में कुल एक हजार आठ लाख नग पालित कोसा का उत्पादन लक्ष्य प्रस्तावित है तथा 32320 हितग्राहियों को लाभान्वित करना प्रस्तावित है।  जनवरी माह 2020 तक लगभग आठ सौ इक्यासी लाख नग कोसा का उत्पादन हो चुका है जिससे लगभग 30 हजार हितग्राहियों को लाभान्वित किया गया है।

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