जासूसों के हाथ लग जाती यह जानकारी तो अनर्थ हो जाता 

 
नई दिल्‍ली

पाकिस्‍तान हाई कमिशन का स्‍टाफ जो जासूसी करते पकड़ा गया, वह किसी सामान्‍य मिशन पर नहीं था। उन दो पाकिस्‍तानी जासूस के मंसूबे कोई बहुत बड़ा सीक्रेट जानने के नहीं थे। मगर जो जानकारी वो चाहते थे, अगर उन्‍हें मिल जाती तो भारत के लिए बड़ी मुश्किल हो जाती। किसी भी युद्ध की सूरत में भारत बेहद कमजोर पड़ जाता। उन्‍हें भारतीय सेना के सप्‍लाई-रूट की जानकारी चाहिए थी। इसके लिए उन्‍होंने कई रूप बदले। कभी कारोबारी बने, कभी व्‍यापारी, कभी खुद को सिक्‍योरिटी कंपनी का हेड बताया, कभी न्‍यूज रिपोर्टर बन गए।

छोटे लेवल के अधिकारियों को जाल में फंसाते थे
ISI के ट्रेन्‍ड दो जासूस- आबिद हुसैन और ताहिर हुसैन की नजर विभिन्‍न विभागों के छोटे डिफेंस कर्मचारियों पर रहती थी। उनसे इन्‍फॉर्मेशन के लिए वह अक्‍सर संपर्क करते थे। हालांकि उनका मिशन अलग था। उन्‍हें सेना की कोई खुफिया जानकारी नहीं चाहिए थी। वह बैंकहैंड जॉब्‍स में ज्‍यादा इंटरेस्‍टेड थे। उनका असली मकसद था रेलवे के जरिए हथियारों और गोला-बारूद की सप्‍लाई का रूट जानना। यह जानकारी बाद में एक बड़ी साजिश में इस्‍तेमाल होने वाली थी।

हाथ लग जाती इन्‍फॉर्मेशन तो हो जाता अनर्थ
इन जासूसों के हाथ अगर हथियारों के मूवमेंट रूट का खाका लग जाता तो बड़ी मुश्किल होती। पाकिस्‍तान की योजना थी कि इस जानकारी को भारत के साथ युद्ध/संघर्ष के समय इस्‍तेमाल किया जाएगा। पाकिस्‍तान उन रेलवे ट्रैक्‍स को नुकसान पहुंचाता जिनसे भारत की सेना अपने हथियार और गोला-बारूद सप्‍लाई करती ताकि वह समय से सीमा तक न पहुंच सके।
 
नेपाल की सरकार ने देश के नए राजनीतिक नक्शे में भारत के तीन इलाकों लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को शामिल किया है। भारत ने नेपाल के इस कदम पर सख्त नाराजगी जताई है और साथ ही नेपाल को कड़ा संदेश देने के लिए अब भारत इस मुद्दे पर नेपाल को चीन की ही चाल से घेरना चाहता है। देखिए ये वीडियो रिपोर्ट।

सेना के लिए क्‍यों लाइफलाइन जैसा है ये रूट
युद्ध-काल में सेना के मूवमेंट की जानकारी दुश्‍मन देश के लिए किसी गोल्‍डमाइन से कम नहीं। ऊपर से अगर ये पता चल जाए कि गोला-बारूद और हथियार किन रास्‍तों से पहुंच रहे हैं तो काम आसान हो जाता है। सेना के सामान की सप्‍लाई करने के लिए सामान्‍य रूट का इस्‍तेमाल नहीं किया जाता। ऐसे में, अगर वो जासूस रूट की जानकारी पा लेते तो युद्ध के समय पाकिस्‍तान को बड़ा एडवांटेज रहता। वह साजिश के तहत सेना के टैंक और बाकी हथियार, गोला-बारूद की सप्‍लाई रोक देता और फिर बॉर्डर पर जोरदार हमला करता।

हाई कमिशन की जॉब तो बस एक कवर थी
41 साल का आबिद दो साल पहले वीजा असिस्‍टेंट बनकर हाई कमिशन आया था। असल में वह, ISI से ट्रेनिंग पाया हुआ जासूस था जो पाकिस्‍तान के पंजाब में रहा करता था। रोज सुबह आबिद हाई कमिशन से निकलता और सेना भवन तथा केंद्रीय सचिवालय के बाहर दिन गुजारता। उसने नासिर गौतम के नाम का एक आधार कार्ड भी बनवा रखा था। उसका साथी था ताहिर हुसैन। वह भी ट्रेन्‍ड जासूस। दोनों अपने काम पर भरोसेमंद ड्राइवर जावेद को लेकर ही निकलते थे।
 
इस बार बनकर आया था पत्रकार का भाई
रविवार को जब करोलबाग से दोनों को पकड़ा गया तो आबिद खुद को किसी पत्रकार का भाई बताकर कर्मचारी से मिलने आया था। वह पाकिस्‍तान के खिलाफ भारत की तैयारी दिखाने के लिए रेल मूवमेंट्स पर एक स्‍टोरी करने की कहानी बना रहा था। 31 मई की मुलाकात फिक्‍स हुई थी। रविवार को दोनों कागजात इधर-उधर करते रंगे हाथ पकड़े गए थे।

पिछले साल नौ कर्मचारियों पर डाल रहे थे डोरे
जासूसों का भांडा फूटने पर उन्हें 24 घंटे में भारत छोड़ना पड़ा। पिछले एक साल में उन्‍होंने लोअर रैंक के कम से कम नौ डिफेंस कर्मचारियों से जानकारियां हासिल करने की कोशिश की थी। फरवरी में उन्‍होंने एक जवान से दोस्‍ती गांठ ली। इसी जवान से मिलने रविवार को दोनों करोलबाग आए थे।
 

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