जहां समंदर में भिड़े ब्रिटेन-ईरान, वहीं 31 साल पहले अमेरिका को भी उतारनी पड़ी थी नेवी    

नई दिल्ली

होरमुज की खाड़ी में ईरान और ब्रिटेन के बीच जारी तनाव के ताजा हालात का असर आने वाले दिनों में पूरी दुनिया पर देखने को मिल सकता है. दरअसल, 19 जुलाई को ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स ने ब्रिटेन का झंडा लगे तेल के जहाज स्टेना इमपेरो को कब्जे में ले लिया. ईरान ने इस तेल टैंकर को होरमुज स्ट्रेट से गुजरते वक्त कब्जे में ले लिया. ब्रिटेन ने इसे अंतरराष्ट्रीय जलमार्ग का उल्लंघन बताया और अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और नाटो ने इसे ईरान की ओर से अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में नेविगेशन के अधिकारों का उल्लंघन करार दिया. अब ब्रिटेन ने अपने जहाजों की सुरक्षा के लिए रॉयल नेवी के जहाजों को होरमुज स्ट्रेट भेज दिया है. अमेरिका के दो युद्धपोत पहले से ही इस इलाके में डेरा डाले हुए हैं.

तनाव का ये ताजा मामला तब सामने आया है जब ईरानी परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका से बढ़ रहे तनाव के बीच ब्रिटिश रॉयल मरीन ने यूरोपीय कानून तोड़ने का आरोप लगाकर इसी महीने ईरान के एक टैंकर ‘ग्रेस’ को जिब्राल्टर से जब्त कर लिया था. इस बीच अमेरिका ने भी दावा किया था कि होरमुज की खाड़ी में तैनात उसके युद्धपोत ने एक ईरानी ड्रोन को मार गिराया. ईरान और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ता तनाव खाड़ी क्षेत्र में बड़े संकट का संकेत दे रहा है. और इसका केंद्र बन रहा है होरमुज स्ट्रेट.

ईरानी परमाणु कार्यक्रम को लेकर बढ़ा तनाव

ईरान के साथ अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौता टूटने के बाद अमेरिका ने शिकंजा कसते हुए ईरान के तेल निर्यात पर मई से पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद भारत समेत तमाम देशों को ईरानी तेल लेना बंद करना पड़ा था. इसके बाद ईरान ने धमकी दी थी कि यदि उसका तेल रोका गया तो होरमुज स्ट्रेट से किसी भी देश का एक बूंद तेल भी बाहर नहीं जा पाएगा.

होरमुज जलडमरुमध्य की अहमियत

होरमुज जलडमरुमध्य खाड़ी से होने वाले तेल कारोबार को लेकर पूरी दुनिया के लिए अहमियत रखता है. यह स्ट्रेट ईरान के दक्षिण में फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है. अपनी सबसे संकरी जगह पर इसकी चौड़ाई 33 किलोमीटर है तथा दोनों दिशाओं में जहाजों के आने-जाने के लिए सिर्फ 3 किलोमीटर चौड़ा रास्ता बचता है. बहरीन में तैनात अमेरिका का पांचवां समुद्री सैन्य बेड़ा इस क्षेत्र में व्यावसायिक यातायात की सुरक्षा करता है. इलाके के बाकी देशों के लिए इस खाड़ी में ईरानी सक्रियता हमेशा खतरा बना रहता है.

दुनिया के तेल कारोबार का करीब 20 फीसदी हिस्सा इस संकरे समुद्री गलियारे से गुजरता है. ईरान के अलावा सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत और इराक अपना ज्यादातर कच्चा तेल इसी रास्ते से निर्यात करते हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा लिक्विड नेचुरल गैस (एलएनजी) का निर्यातक देश कतर अपना लगभग पूरा गैस होरमुज से ही भेजता है. जापान-भारत-चीन-दक्षिण कोरिया जैसे एशियाई देशों का अधिकांश तेल इसी इलाके से होकर पहुंचता है. ईरान-इराक युद्ध के बाद से होरमुज में कई हमले होते रहे हैं. इस साल ब्रिटिश टैंकर पकड़ने के अलावा सऊदी टैंकरों पर हमले के आरोप भी ईरान पर लगे हैं.

जलक्षेत्र पर नियंत्रण को लेकर हमेशा रहा है तनाव

इस इलाके से जहाजों का आवागमन समुद्री इलाके में नेविगेशन के लिए बने संयुक्त राष्ट्र के कानून के अनुरूप होता है. हालांकि तमाम देशों की ओर से कई बार इन्हें मानने से इनकार करने पर तनाव बढ़ जाता है. खासकर होरमुज जलडमरुमध्य में ईरानी दावे से कई बार तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है.

अतीत पर गौर करें तो अप्रैल 1959 में ईरान ने होरमुज स्ट्रेट पर अपना दावा जताते हुए इलाके में अपनी समुद्री सीमा का 12 नॉटिकल माइल तक विस्तार कर लिया और ऐलान किया कि इस इलाके से सिर्फ हमारी अनुमति के बाद ही अंतरराष्ट्रीय जहाज गुजर पाएंगे. जुलाई 1972 में ओमान ने भी अपनी समुद्री सीमा 12 नॉटिकल मील बढ़ा लिया. इसके साथ ही होरमुज स्ट्रेट पर पूरी तरह दोनों देशों का कब्जा हो गया. हालांकि अंतरराष्ट्रीय जहाजों की आवाजाही रोकी नहीं गई. लेकिन मई 1993 में ईरान ने समुद्री नौवहन के लिए ऐसा कानून लागू किया जिससे यूएन कोड का उल्लंघन हो रहा था. इसके अनुसार वॉरशिप, सबमरीन और परमाणु-संपन्न जहाजों को ईरानी जलक्षेत्र से गुजरने से पहले अनुमति लेनी होगी.

कब-कब बने तनाव के हालात?

– एक दिन का युद्ध

1984 में ईरान-इराक युद्ध के वक्त भी इराकी हमलों के बाद जहाजों की आवाजाही पर असर पड़ा था. लेकिन अंतरराष्ट्रीय जहाजों की आवाजाही को लेकर होरमुज स्ट्रेट में पहला संघर्ष 1988 में हुआ जब अमेरिका ने जहाजों से टकराव को लेकर ईरानी नेवी के खिलाफ एक दिन का युद्ध छेड़ा जिसे ऑपरेशन प्रेइंग मैंटिस नाम दिया. ये ऑपरेशन 14 अप्रैल 1988 को ईरानी नौसेना द्वारा यूएसएस सैम्युएल बी. रॉबर्ट्स जहाज के आगे ईरानी माइन लगाने के खिलाफ हुआ. अमेरिकी नेवी ने ईरान का एक फ्रिगेट, एक गनबोट और 6 हथियारबंद स्पीडबोट डुबो दिया. अमेरिकी एक्शन में ईरान के एक दूसरे फ्रिगेट को भी काफी क्षति पहुंची.

 – ईरानी विमान मार गिराया

3 जुलाई 1988 को होरमुज स्ट्रेट में तैनात अमेरिकी युद्धपोत ने ईरानी यात्री विमान को फाइटर जेट समझकर गाइडेड मिसाइल से मार गिराया. इसमें 290 लोग मारे गए. ईरान ने अमेरिका को कड़ा सबक सिखाने का ऐलान किया.

– 8 जनवरी 2007 को अमेरिकी परमाणु सबमरीन यूएसएस न्यूपोर्ट पानी के अंदर से होरमुज स्ट्रेट होकर गुजर रहा था तभी उसका टक्कर जापानी तेल टैंकर एमवी मोगामिगावा से हो गया. हालांकि इसमें तेल लिक नहीं हुआ ना ही कोई घायल हुआ.

– दिसंबर 2007 से जनवरी 2008 के बीच होरमुज स्ट्रेट के इलाके में तैनात अमेरिकी युद्धपोत और ईरानी स्पीड बोट के बीच टकराव के कई हालात बने. इसके बाद दोनों देशों में आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए.

– 29 जून 2008 को ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स ने अपनी नई सुरक्षा नीति घोषित की और ऐलान किया कि अगर अमेरिका और इजरायल की ओर से कोई भी हमला होता है तो वे होरमुज स्ट्रेट में यातायात रोककर पूरी दुनिया में तेल को लेकर आर्थिक तबाही मचा देंगे. ईरानी धमकी का जवाब देने के लिए बहरीन स्थित पांचवें अमेरिकी युद्धपोत ने पर्शिया की खाड़ी को पार किया और अमेरिकी नेवी कमांडर ने कहा कि हम दुनिया के एक तिहाई तेल आपूर्ति की व्यवस्था को ईरान का बंधक नहीं बनने देंगे.

– जुलाई 2008 में ईरानी ऐलान का जवाब देने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में कई देशों के दर्जनों युद्धक जहाज होरमुज स्ट्रेट में पहुंचे और सैन्य अभ्यास किया. ईरान के तट के पास पश्चिमी देशों के अभ्यास से तनाव के हालात बन गए. अगस्त 2008 में अमेरिकी नेवी जहाज की अगुवाई में 40 से अधिक जहाजों ने होरमुज स्ट्रेट की ओर रुख किया. हालांकि, ईरान की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो फिलहाल टकराव टल गया.

– ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लगने के बाद 2012 में फिर इलाके में तनाव बढ़ गया. 3 जनवरी 2012 को पर्शिया की खाड़ी से अमेरिकी युद्धपोत के हटते ही ईरान ने ऐलान कर दिया कि अब इसकी वापसी नहीं होने देंगे और ये आखिरी चेतावनी है. जवाब में अमेरिकी नेवी ने ऐलान किया कि उसका युद्धपोत जल्द ही लौट रहा है और जो भी इसे रोकेगा उसके खिलाफ सैन्य एक्शन होगा. फ्रांस भी ईरान के खिलाफ उतर आया. यूरोपीय यूनियन से भी उसने ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों को लागू करने की अपील की और पर्शिया की खाड़ी में अपना अत्याधुनिक युद्धपोत भेज दिया. ब्रिटिश जहाजों ने भी इलाके में गश्त बढ़ा दी.

– अगस्त 2018 में ईरानी बैलिस्टिक मिसाइल टेस्ट के बाद दावा किया गया कि अब ईरान ने जहाजों को टारगेट करने की क्षमता हासिल कर ली है. ईरान ने ऐलान किया कि इलाके में कोई भी अतिक्रमण उसे कार्रवाई के लिए उकसाने वाला होगा.

– फिर अप्रैल 2019 में अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौता टूटने के बाद अमेरिका ने ईरान पर नए प्रतिबंध लगाए तब से तनाव का नया दौर शुरू हो गया है. इसके बाद ब्रिटेन द्वारा ईरानी तैल टैंकर पकड़ना, अमेरिकी जासूसों को पकड़ने का ईरान का दावा, अमेरिकी ड्रोन मार गिराने का ईरान का दावा और फिर ईरान द्वारा ब्रिटिश तेल जहाज पकड़ने के बाद इलाके में तनाव बढ़ गया है और कभी भी संघर्ष का रूप ले सकता है.

पश्चिमी देशों से ईरान का विवाद पुराना

वर्तमान में दुनिया ईरान के परमाणु कार्यक्रमों को लेकर पश्चिमी दुनिया से तनाव के हालात देख रही है लेकिन इस इलाके में तनाव का इतिहास काफी पुराना है. इसकी शुरुआत तब हुई जब 1950 के दशक में अमेरिकी मदद से ईरान के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादिक की सरकार का तख्तापलट हुआ. अमेरिका समर्थक मोहम्मद रजा पहलवी के हाथ में ईरान का शासन आया तो ईरान-अमेरिका का सहयोग का दौर भी दुनिया ने देखा.

इस्लामिक क्रांति के बाद बिगड़ी बात

लेकिन 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति और फिर अयातुल्लाह खुमैनी के सत्ता पर प्रभाव के बाद ईरान-अमेरिका की दुश्मनी का जो दौर शुरू हुआ वो आज तक बरकरार है. 1979 में ईरानी इस्लामिक प्रदर्शनकारियों ने तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास को कब्जे में ले लिया. ये बंधक संकट 444 दिनों तक जारी रहा. 1980 से 1988 के ईरान-इराक युद्ध में भी इराकी शासक सद्दाम हुसैन को ईरान के खिलाफ अमेरिका का पूरा समर्थन मिला. इन सब हालातों में बढ़े तनाव के बीच आज तक ईरान और अमेरिका के बीच कूटनीतिक संबंध कायम नहीं हो सके. और अब एक बार फिर परमाणु समझौता टूटने के बाद खाड़ी का क्षेत्र तनाव की ओर बढ़ रहा है.

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