छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए विधायक दल का नेता चुनना बड़ी चुनौती

रायपुर
छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद भाजपा विपक्ष में है. मजबूत विपक्ष बनने के लिए एक भाजपा को एक ऐसे नेता की जरूरत है, जो विधनसभा में न सिर्फ हर मुद्दे पर सत्ता पक्ष को सवालों के कटघरे में खड़ा करे. बल्कि अपने विधायकों को साथ लेकर भी चल सके. ऐसे में विधायक दल के नेता का चयन करने में छत्तीसगढ़ भाजपा की हालत वही नजर आ रही है, जो करीब 18 साल पहले थी.

बता दें कि जब सन 2000 में राजधानी रायुपर के भाजपा कार्यालय एकात्म परिसर में विधायक दल के नेता का चयन हुआ था, उस समय वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केंद्रीय पर्यवेक्षक थे. विधायकों से रायशुमारी के बाद नंदकुमार साय को नेता बनाया जाता है. घोषणा के पहले बृजमोहन अग्रवाल उम्मीद लगाए बैठे थे कि उन्हें ये जिम्मेदारी मिलेगी. हालांकि उनके समर्थक यह तय करके आए थे कि यदि बृजमोहन अग्रवाल को विधायक दल का नेता नहीं बनाया जाता तो क्या करना है?

यही वजह बताई जाती है कि साल 2000 में भाजपा से विधायक दल के नेता की घोषणा के तुरंत बाद लाठी, डंडे, पेट्रोल और तलवार तक निकाल ली गई. बीजेपी दफ्तर में जमकर तोड़फोड़, सिर फूटौव्वल हुआ. तीन गाड़ियां जला दी गईं, जिसमें से दो उस वक्त के प्रदेश प्रभारी लखीराम अग्रवाल और बीजेपी नेता गौरीशंकर अग्रवाल की थीं. इस पूरी घटना के बाद विधायक बृजमोहन अग्रवाल को निष्कासित किया गया था. वापसी दो साल बाद हुई थी. दरअसल उस वक्त माना जाता था कि बीजेपी में दो खेमे हैं. एक वह जो संगठन खेमा था और दूसरा पूर्व का भाजपा सत्तारूढ़ खेमा था.

क्या अब बदल गए हालात?
हालांकि हालात 2018 में भी ज्यादा बदले नजर नहीं आते हैं. माना जा रहा है कि भाजपा में अभी भी दो खेमे हैं. जिसमें एक में विधायक बृजमोहन अग्रवाल का खेमा है, जिसमें विधायक शिवरतन शर्मा और विधायक ननकी राम कंवर हैं. वहीं दूसरा खेमा उनका, जिन्हें डॉ. रमन सिंह ने अपने मुख्यमंत्री रहते उनका करीबी माना जाता रहा. इसमें पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर और राजेश मूणत शामिल हैं. हालांकि इनमें केवल अजय चन्द्राकर और डॉ. रमन सिंह जीते हैं.

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