चीन की दवा, अमेरिका की वैक्सीन… कोरोना पर जगी उम्मीद की किरण
अमेरिका
चीन की दवा, अमेरिका की वैक्सीन… कोरोना पर जगी उम्मीद की किरणअमेरिका में लोगों पर टेस्ट की गई पहली कोरोना वायरस वैक्सीन असरदार साबित हुई है। सोमवार को Moderna ने जब शुरुआती रिजल्ट्स जारी किए तब पूरी दुनिया को एक उम्मीद मिली कि शायद जल्द कोरोना का टीका मिल जाएगा। वहीं चीन की एक लैबोरेट्री ने एक ऐसी दवा बनाई है जिसे लेकर उसका दावा है कि यह कोविड-19 को रोकने में सफल होगी। वहां की पेकिंग यूनिवर्सिटी में इसपर रिसर्च चल रही है। साइंटिस्ट्स के मुताबिक, यह दवा ना सिर्फ मरीजों का रिकवरी टाइम कम करती है, बल्कि वायरस के प्रति शॉर्ट-टर्म इम्युनिटी भी देती है। दूसरी तरफ, Moderna वैक्सीन की टेस्टिंग मार्च में शुरू हुई थी। जिन आठ लोगों को दो-दो बार इस वैक्सीन की डोज दी गई, उनके शरीर में एंटीबॉडीज बनने लगीं। उन एंटीबॉडीज को लैब में मानव कोशिकाओं पर टेस्ट किया गया। पता चला कि ये वायरस को अपने क्लोन बनाने से रोक सकती हैं। शरीर में एंटीबॉडीज का लेवल उतना ही रहा जितना कोरोना से रिकवर हो चुके मरीजों में मिलता है। अमेरिकी कंपनी के मुताबिक, वैक्सीन ट्रायल के सेकेंड फेज में 600 लोगों पर टेस्ट किए जाएंगे। सबकुछ ठीक रहा तो जुलाई में हजारों स्वस्थ लोगों पर इस वैक्सीन की टेस्टिंग होगी। उम्मीद इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि सब प्लान के हिसाब से होने पर इस साल के आखिर तक या 2021 की शुरुआत में दुनिया को कोरोना वैक्सीन मिल सकती है।
कम डोज ही साबित हुई असरदार
जिन 8 लोगों को वैक्सीन दी गई, उन्हें तीन तरह की डोज मिली। लो, मीडियम और हाई। अभी जो नतीजे आए हैं, वे वैक्सीन के लो और मीडियम डोज के हैं। इस वैक्सीन का एक साइड इफेक्ट देखने को मिला कि एक मरीज की उस बांह पर लाल निशान पड़ गए जहां टीका लगा था।
ज्यादा डोज, एंटीबॉडीज भी ज्यादा
8 में से आधे लोगों को 100 mcg और बाकी को 25 mcg की डोज दी गई थी। जिन्हें ज्यादा डोज मिली, उनके शरीर में एंटीबॉडीज भी ज्यादा बनीं। यह शुरुआती डेटा वैक्सीन डेवलपमेंट में अबतक का सबसे एडवांस्ड हैं।
अब पता चलेगी वैक्सीन की सही डोज
वैक्सीन के फेज टू ट्रायल की परमिशन मिल गई है। Moderna का कहना है कि वह 250 mcg की डोज की जगह 50 mcg वाली डोज टेस्ट करना चाहती है। फेज टू में वैक्सीन की ऑप्टिमल डोज का पता लगाया जाता है। ताकि लोगों के लिए सही मात्रा में वैक्सीन की डोज तैयार की जा सके।
चाहिए इन सवालों के जवाब
साइंटिस्ट्स यह पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि नोवेल कोरोना वायरस के खिलाफ कौन सी एंटीबॉडीज असल में असरदार होंगी। यह भी पता करना होगा कि उन एंटीबॉडीज से कितने वक्त के लिए कोविड-19 से प्रोटेक्शन मिलेगी।
अभी शुरुआती चरणों में हैं वैक्सीन के ट्रायल
Moderna के अलावा भी कई कंपनियां कोरोना की वैक्सीन बनाने में लगी हैं। CureVac ने प्रीक्लिनिकल नतीजे सामने रखे हैं। उसके मुताबिक, जानवरों में टेस्टिंग के अच्छे नतीजे आए हैं। Verily ने भी एंटीबॉडी टेस्टिंग को लेकर नई क्लिनिकल रिसर्च शुरू की है।
लंबा होगा इंतजार या जल्द मिल जाएगी वैक्सीन?
एक वैक्सीन डेवलप करने में बहुत वक्त लगता है। अबतक सबसे जल्दी कोई वैक्सीन चार साल में बनाई गई है। ऐसे में, Moderna की वैक्सीन के शुरुआती नतीजे बड़ी उम्मीद जगा रहे हैं। आपको बता दें कि कोई वैक्सीन पहले प्री-क्लिनिकल और क्लिनिकल टेस्टिंग से गुजरती है। फिर उसका प्रॉडक्शन शुरू होता है। लाइसेंसिंग होती है। फिर मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन शुरू होता है। दुनियाभर में कोरोना के लिए करीब 90 वैक्सीन पर रिसर्च चल रहा है।