ग्वालियर को मेट्रो सिटी बनाने की कमलनाथ सरकार की योजना पर उठ रहे सवाल

ग्वालियर

कमलनाथ सरकार ने भोपाल के साथ-साथ ग्वालियर को भी मेट्रोपॉलिटिन सिटी बनाने का ऐलान किया है. सरकार का मकसद इन शहरों को मेट्रोपॉलिटन बनाकर उनमें सुविधाएं और विकास तेज़ करना है. लेकिन क्या वाकई में ऐसा हो पाएगा? ये सवाल इसलिए क्योंकि इन शहरों में सुविधाएं और डेवलपमेंट के नाम पर पहले से विशेष क्षेत्रों का प्रावधान है. ग्वालियर में डेवलपमेंट के नाम पर स्पेशल एरिया डेवलपमेंट यानि साडा का पहले से प्रावधान है. इस योजना के नाम पर 500 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च भी की जा चुकी है, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला.

कैसे हो पाएगा इन शहरों का विकास?
मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने अपने पहले बजट में भोपाल और इंदौर को मेट्रोपॉलिटिन सिटी बनाने का ऐलान किया था. बाद में सिंधिया समर्थक मंत्रियों की मांग पर ग्वालियर को भी मेट्रोपोलिटन सिटी बनाने का ऐलान कर दिया गया. सरकार ने मेट्रोपॉलिटन सिटी बनाने का ऐलान तो कर दिया लेकिन क्या वाकई में इस ऐलान भर से इन शहरों का विकास हो पाएगा या फिर वाकई कदम कुछ और उठाने की ज़रुरत है.

ग्वालियर को लेकर उठ रहे सवाल
दरअसल ग्वालियर को मेट्रोपॉलिटिन सिटी बनाने पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि ग्वालियर में डेवलपमेंट के नाम पर स्पेशल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी यानि साडा का पहले से प्रावधान है. शहर में जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए साल 1992 में विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण साडा बनाया गया था जिसके तहत शहर से कुछ दूर एक नया शहर बसाने की योजना थी. साडा पर अब तक 500 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च हो चुके हैं, बावजूद इसके विकास के नाम पर वहां वीरान ज़मीन पड़ी है. साल 1992 में जब ये प्रोजेक्ट शुरु हुआ तब साडा का क्षेत्रफल करीब 30,140 हेक्टेयर था जो 2012 में हुए नए गजट नोटीफिकेशन के अनुसार करीब 75000 हेक्टेयर हो गया. साडा के नाम पर पैसा तो बहुत खर्च हुआ लेकिन वहां रहने के लिए कोई नहीं आया.

कौन है साडा के विकसित न होने का ज़िम्मेदार?
ग्वालियर में साडा के विकसित न हो पाने की वजह सरकारों की उदासीनता रही है, जिसमें बीजेपी और कांग्रेस दोनों शामिल हैं. हालांकि अब बीजेपी विपक्ष में है तो नई योजनाओं को लेकर सवाल उठा रही है. शहरों में जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए उनका विस्तार और विकास दोनों हों ये कौन नहीं चाहता लेकिन नई योजनाओं के नाम पर जनता को खुश करना और पैसों की बंदरबांट ही आखिर कहां तक जायज है .

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