गैस की दवा से हल्के कोरोना लक्षण वाले मरीजों को मिल सकती है राहत!
नई दिल्ली
एक नए अध्ययन का दावा है कि कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों को गैस की दवा से राहत मिल सकती है। ऐसे मरीजों को खांसी व सांस लेने में तकलीफ होने पर यह दवा दो दिन के अंदर असर करने लगेगी। इतना ही नहीं मरीज को अगले 14 दिन तक कोरोना के ऐसे लक्षणों में आराम रहेगा। यह अध्ययन ‘गट’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे घर में क्वारंटाइन हुए मरीजों को लाभ मिल सकता है।
आसानी से उपलब्ध व सस्ती एंटी एसिडिटी दवाओं का उपयोग अपच की समस्या दूर करने के लिए किया जाता है। अध्ययन में पाया गया कि यह दवा कोविड-19 के उन मरीजों को आराम पहुंचा सकती है, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत नहीं होती। ऐसे मरीजों में कोरोना के प्रमुख छह लक्षण जैसे खांसी, सांस लेने में कठिनाई, थकान, सिरदर्द और भोजन के स्वाद का पता न लगने जैसी समस्याएं हर दिन आती हैं। मरीजों में गैस की दवा का असर पता करने के लिए शोधकर्ताओं ने ऐसा ट्रैकिंग तरीका अपनाया जो आमतौर पर कैंसर मरीज के लिए इस्तेमाल होता है। इसमें उन्होंने कोरोना के छह प्रमुख लक्षणों की माप के लिए चार बिंदु पैमाने विकसित किए।
पेट में अम्ल की मात्रा घटने से लाभ
अगर हल्के लक्षण वाले कोरोना के मरीज के पेट और सीने में जलन महसूस हो रही हो तो 20-160 मिलीग्राम फैमोटिडीन दवा दिन में चार बार ली जा सकती है। फैमोटिडीन एक एंटी एसिडिटी दवा है जिसे लेने के 24 से 48 घंटों के भीतर संक्रमित मरीज को कोरोना के लक्षणों से राहत मिलेगी। यह दवा पेट में अम्ल की मात्रा को कम कर देती है। अध्ययनकर्ता का कहना है कि इस अध्ययन से यह सुझाव मिलता है कि फैमोटिडीन दवा लाभ कर सकती है पर यह स्थापित नहीं होता। गौरतलब है कि इस दवा को एंटी मलेरिया दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के साथ संयोजित करके पहले से ही क्लीनिक ट्रायल किया जा रहा है।
14 दिन में मरीजों के लक्षण दूर हुए
यह अध्ययन हल्के संक्रमण वाले कुल दस मरीजों पर किया गया जिनमें छह पुरुष और चार महिलाएं थीं और सभी की उम्र 23 से 71 साल के बीच थी। इन मरीजों को ज्यादा खांसी आने, सिर दर्द आदि में हालत ज्यादा खराब होने पर उन्हें यह दवा दी गई। इन मरीजों में कुछ मोटापाग्रस्त व डायबटिक भी थे। मरीजों को दवा की अधिकततम 80 एमजी मात्रा दिन में तीन बार दी गई, जिससे दो दिन के अंदर ही मरीजों को आराम महसूस हुआ। यह ट्रीटमेंट औसतन 11 दिन चला। अध्ययनकर्ताओं ने पेशेंट रिपोर्टेड सिम्पटम ट्रैकिंग सिस्टम से मरीजों की हालत जांची जिससे पता लगा कि 14 दिन बाद ज्यादातर के लक्षण दूर हो गए।