खाद्य विभाग के अफसर करते हैं अपने कमरों में बैठकर काम

भोपाल
जिला प्रशासन के अंतर्गत आने वाला खाद्य विभाग का अमला बंद कमरे में बैठने की तनख्वाह ले रहा है। हालात ये हैं कि जिले की 407 सरकारी राशन की दुकानों पर खाद्य विभाग के आधा दर्जन कनिष्ठ आपूर्ति अधिकारी और दूसरे अफसर जांच करने की बजाय बंद कमरे में ही बैठकर रिपोर्ट तैयार कर कलेक्टर और दूसरे अफसरों को भेज रहे हैं। राशन दुकानों की जांच के नाम पर ये अफसर सिर्फ कागजी कार्रवाई ही कर रहे हैं। जबकि राशन दुकानों में गेहूं और चावल में मिट्टी और कंकड मिल रहे हैं। इसका खुलासा खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर द्वारा दो बार किए गए औचक निरीक्षण में सामने आ चुकी है। ऐसे में सवाल यही है कि जब मंत्री को हर बार घटिया और मिट्टी मिला गेहूं-चावल मिला है, तो रूटीन जांच करने वाले खाद्य इंस्पेक्टरों को गड़बड़ी क्यों नहीं मिलती। ऐसे में जिले के ये अफसर जनता के साथ खुलेआम धोखेबाजी कर रहे हैं।

कनिष्ठ खाद्य आपूर्ति अधिकारी जिले में राशन की दुकानों पर जांच करने की अलावा बाकी सारे काम करने में माहिर हैं। सूत्रों के मानें तो ये अफसर उगाही के चक्कर में ही दुकानों की तरफ टहलने जाते हैं। कार्रवाई के नाम पर इनकी ओर से कोई काम नहीं किया जाता है। ये जनता के साथ सीधे-सीधे धोखेबाजी कर रहे हैं, जनता के लिए आने वाली खाद्य सामग्री की जांच पर इनका ध्यान ही नहीं है।  

खाद्य विभाग के अफसरों के ऊपर इसके पहले भी आरोप लग चुके हैं कि ये दुकानों की जांच करने की बजाय अपने कमरों में ही बैठकर काम करते हैं। तीन साल पहले भी जिले में गेहूं में मिट्टी मिलाने का कांड और करोद मंडी में सरकारी गेहूं बिकने का मामला सामने आ चुका है। अब इन अफसरों की कारगुजारी पर इस कारण से सवाल उठ रहे हैं कि यदि ये अफसर समय-समय पर राशन दुकानों की जांच करते हैं, तो फिर इन्हें गेहूं में मिट्टी और कंकड क्यों नहीं दिखते। इस मामले में नान के अफसरों पर भी सवाल उठ रहे हैं। पहले भी नान के अफसर मिट्टी मिलाने के मामले में दोषी सिद्ध हो चुके हैं। सरकारी दुकानों में सीधे गोदामों से सप्लाई होती है। दुकान में सामान जाने के पहले ये अफसर जांच क्यों नहीं करते हैं।

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