क्या है मीसा भारती की खामोशी का सबब ?

पटना 
लोकसभा चुनाव में आरजेडी की ऐतिहासिक शिकस्त हुई है. इसको लेकर पार्टी में मंथन का दौर भी चल रहा है, लेकिन लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती ने चुप्पी साध रखी है. चुनाव में मिली हार के बाद से ही वह कुछ खास नहीं बोली हैं. पूरे चुनावी कैम्पेन के दौरान भी अपने संसदीय क्षेत्र (पाटलिपुत्र) को छोड़ मीसा भारती ज्यादा एक्टिव नहीं रहीं.

जाहिर है जिस तरीके से वह अपनी ही पार्टी में सिमट कर रह गई हैं इसको लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. यही नहीं जिस अंदाज में उन्होंने मौन साध रखी है इसको लेकर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार फैजान अहमद कहते हैं कि अगर इसे गहराई में जानना हो तो कुछ साल पहले चलना होगा. वे कहते हैं-  लालू यादव ने जब 2015 में चुनावी जीत के बाद राजनीतिक विरासत का बंटवारा किया था तो मीसा भारती को दिल्ली की जिम्मेदारी दी गई थी. यानि लोकसभा और राज्यसभा से संबंधित चीजों को वही देखेंगी. लेकिन बीतते वक्त के साथ ही वह हाशिये पर जाती चली गईं.

फैजान अहमद बताते हैं कि लालू परिवार के बीच विरासत की जंग वर्ष 2016 की शुरुआत में काफी विस्तार पा चुका था. इसके बीच-बचाव के लिए लालू यादव के कहने पर सीएम नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर ने पहल की थी, तब मामला शांत हो गया था.

बकौल फैजान अहमद, तेजस्वी को कमान सौंपने के बाद मीसा भारती आरजेडी की राजनीति में दखल देने लगी थीं. इससे परेशान लालू प्रसाद ने मीसा भारती को राज्यसभा में भेज दिया था. तब यह कहा गया था कि वह दिल्ली और लोकसभा चुनाव से जुड़ी बातें मीसा भारती ही देखेंगी.

वहीं तेजस्वी यादव को तेजप्रताप के साथ बिहार की कमान सौंपी गई थी. हालांकि तेजप्रताप यादव इससे संतुष्ट नहीं थे. दरअसल वह बड़ा बेटा होने के नाते खुद को लालू यादव का उत्तराधिकारी मानते हैं. वे अक्सर अपने आपको दूसरा लालू भी कहते हैं.

यह भी साफ है कि तेजस्वी यादव ने पूरे लोकसभा चुनाव कैम्पेन को सेल्फ सेंटर्ड कर लिया था. वहीं मीसा भारती और तेजप्रताप यादव एक खेमे में नजर आ रहे थे. हालांकि ऊपर से तो सब ठीक दिखाने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन अंदरखाने हलचल मची थी.

दरअसल जिस तरह से तेजस्वी यादव ने अपनी बड़ी बहन मीसा भारती को पाटलिपुत्र संसदीय सीट से टिकट दिए जाने की बात को लेकर जिस तरह से मुद्दा बनाया, वह भी परिवार के भीतर चल रही खींचतान की तस्दीक करती है.

मीसा भारती के टिकट मामले पर जिस तरह तेजस्वी के बड़े भाई तेजप्रताप ने मोर्चा संभाला और मीसा भारती के पाटलिपुत्र से लड़ने का खुला एलान कर दिया, इससे लालू परिवार में काफी खींचतान दिखी.

जाहिर है लालू यादव की अनुपस्थिति में तेजस्वी यादव ने जिस तरह से मीसा भारती और तेजप्रताप यादव को इग्नोर किया है. इससे लालू परिवार में रार अभी बाकी होने के संकेत हैं.

वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं, परिवार में अंदरुनी कलह तो टिकट बंटवारे के समय ही दिख गई थी. बड़े भाई तेजप्रताप यादव से तेजस्वी यादव की दूरी समय-समय पर दिखती भी रही है.

रवि उपाध्याय की बात की तस्दीक इससे भी होती है कि बीते 13 मई को नालंदा की एक चुनावी सभा में तेजस्वी के सामने ही तेजप्रताप ने मंच पर कहा, 'हमेशा से हम व्याकुल रहे कि तेजस्वी जी के साथ, जो हमारे अर्जुन हैं उनके कार्यक्रम में जाएं, लेकिन ये पहले ही हेलीकॉप्टर से उड़ जाते थे और हम रह जाते थे जमीन पर.

लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने शिवहर और जहानाबाद सीट पर भी अपने उम्मीदवार अंगेश कुमार और चंद्रप्रकाश को टिकट दिलाने के लिए तेजस्वी यादव को कहा तो वह नहीं माने. अब नतीजा सबके सामने है और इन दोनों ही सीटोंं पर आरजेडी के प्रत्याशियों की हार हो गई है.

इन सबके बावजूद ऐसा लगता है कि तेजप्रताप यादव ने फिलहाल तेजस्वी को ही अपना नेता माना है. यानि उन्होंने 'सरेंडर' कर दिया है. लेकिन मीसा भारती की खामोशी अब भी सवालों का सबब बनी हुई है.

बहरहाल वरिष्ठ पत्रकार फैजान अहमद और रवि उपाध्याय दोनों  ही ये मानते हैं कि लालू परिवार में विरासत की लड़ाई फिलहाल थम जरूर गयी है, लेकिन आने वाले समय में मीसा की चुप्पी कहीं आने वाले तूफान का संकेत भी हो सकती है.

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