कोरोना से पलायन: लकवाग्रस्त बुजर्ग को कंधे पर लादकर 500 किलोमीटर ले आए

 
लखनऊ

चार कंधों पर एक बल्ली। कपड़ों का एक झूला और उसमें झूलते हुए आगे बढ़ते 60 पार के सालिग। एक हाथ और पैर को लकवा मार गया है। बीते चार दिनों से 40 लोगों का यह कारवां इस नि:शक्त बुजुर्ग को ढोते हुए दिल्ली से लखनऊ पहुंचा। हमारे संवाददाता को पता चला तो मौके का हाल देखकर कलेजा हलक में आ गया। भूखे-प्यासे बच्चे, औरतें, जवान और बूढ़ों का यह दल श्रावस्ती जिले के एकौना बाजार जाने के लिए तैयार बैठा था।
गोमतीनगर के सिनेपोलिस मॉल के पास बैठे लोगों के चेहरे से थकान और भूख टपकी पड़ रही थी। भला हो सीनियर आईपीएस अफसर नवनीत सिकेरा और स्थानीय थाने के प्रभारी श्याम बाबू शुक्ला का। उनकी नजर इन लोगों पर पड़ीं तो उनके खाने-पीने और सरकारी बस से श्रावस्ती भेजने का इंतजाम हुआ।

इन लोगों में शामिल जगराम ने बताया कि वह दिल्ली में दिहाड़ी मजदूर हैं। जनता कर्फ्यू का ऐलान होते ही उनके ठेकेदार ने बिना पैसा दिए भगा दिया। तब तक दिल्ली में उनके जैसे लोगों के लिए कोई इंतजाम भी नहीं हुए थे। लिहाजा, वे पैदल ही वहां से चल पड़े।

रास्ते में कहीं ट्रक पर तो कहीं टेम्पो पर कुछ-कुछ देर के लिए सवार होने का मौका भी मिला। सबने उनसे पैसे लिए। किसी ने 10 रुपये सवारी तो किसी ने 50 रुपये तक। लकवा मारे बुजुर्ग का इनमें से कोई सगा बेटा नहीं था। कोई साला, कोई भांजा और कोई बहनोई। पर सबने उनका खयाल रखकर कंधे पर रखकर आए।

बुजुर्ग सालिग से जब इस संवाददाता ने कहा कि दादा आप कितने भाग्यशाली हो कि इतने लोग इतनी दूर से आपको कंधे पर लेकर चल रहे हैं तो वह दुख और पीड़ा से फूट पड़े- हमका मौत काहे नहीं आये रई। यह सुनकर उनके जीजा भी बोल पड़े-मरत भी तो नाहीं हैं। पर यह बात अपनी किसी मजबूरी से नहीं कही गई थी।

सभी लोग आईपीएस सिकेरा के प्रति कृतज्ञ नजर आए, जिन्होंने रास्ते से गुजरते वक्त उन लोगों को देखकर अपनी गाड़ी रोकी और उन्हें भेजने का इंतजाम किया। नवनीत सिकेरा को किसी जमाने में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट माना जाता था। हाल ही में उनके ऊपर एक वेब सीरीज भी आई है। उन्होंने कहा कि बल्ली पर लटके बुजुर्ग की हालत देखकर खुद उनकी आंखों से आंसू निकल आए। उन्होंने कहा कि 500 किलोमीटर तक किसी शख्स को कंधे पर लाना आसान नहीं होता।
 

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