केजरीवाल के लिए आखिर कांग्रेस क्यों है मजबूरी

 
नई दिल्ली  
   
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बुधवार को कांग्रेस से विनती करते नजर आए कि अगर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस हाथ मिला लें तो बीजेपी को हराया जा सकता है. ये अलग बात है कि उनकी विनती दिल्ली के लिए नहीं बल्कि हरियाणा के लिए थी लेकिन इसके मायने गंभीर हैं. राजनीति की समझ रखने वाले लोग भी जानते हैं कि अरविंद केजरीवाल को विनती करने के मोड में जल्दी नहीं देखा जाता. बावजूद इसके वे कांग्रेस को अपने पाले में मिलाने में लगे हैं, तो इसके नफा-नुकसान की भी उन्हें समझ होगी ही. लोगों को ताज्जुब इसलिए भी है क्योंकि अभी हाल में दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित ने दो टूक कह दिया कि आम आदमी पार्टी से कोई अलायंस नहीं होगा. अब सवाल है कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी है जो कांग्रेस से गठजोड़ के लिए आम आदमी पार्टी ने अपने सारे घोड़े खोल दिए हैं?

कांग्रेस से लगी आस
जान लें कि दिल्ली के अलावा देश का ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां आम आदमी पार्टी दम ठोक कर कह दे कि हमारा वहां ठोस जनाधार है. इस पार्टी ने कई राज्यों में पूरी कोशिश की मगर उसके सियासी प्रयोग मुंह के बल गिरे हैं. उदाहरण के तौर पर पंजाब और गोवा को देख लें. दोनों जगह आम आदमी पार्टी पूरी तैयारी में गई लेकिन गोवा में उसे बैरंग वापस लौटना पड़ा. हालांकि, पंजाब लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन क्लीन स्वीप के सपने उसके धरे रह गए. बता दें कि पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 4, कांग्रेस को 3, अकाली दल को 4 और बीजेपी को 1 सीट पर जीत मिली थी. पंजाब लोकसभा में अच्छा कर चुकी आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव में पिछड़ गई. इस पिछड़ने को वह गठबंधन से भरपाई करना चाहती है ताकि मिलकर बीजेपी को हराया जा सके.

हरियाणा के रास्ते दिल्ली का सफर
अब बात हरियाणा की. आम आदमी पार्टी का हरियाणा में मजबूत आधार नहीं है और पार्टी यहां घुसने की कोशिश कर रही है. इंडियन नेशनल लोकदल में फूट के बाद जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का दिसंबर में गठन हुआ था. अभी हाल में जेजेपी ने जींद विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था. इसी उपचुनाव में आम आदमी पार्टी ने जेजेपी उम्मीदवार का समर्थन किया था लेकिन बीजेपी उम्मीदवार कृष्ण लाल मिड्ढा 12248 वोटों से बाजी मार गए. जेजेपी के दिग्विजय सिंह चौटाला दूसरे नंबर पर रहे. यानी बीजेपी नंबर एक, जेजेपी नंबर दो और कांग्रेस नबंर तीन पार्टी रही.

इस लिहाज से भी आम आदमी पार्टी सोच रही है कि हरियाणा में अगर कांग्रेस और जेजेपी से गठबंधन हो जाए तो बीजेपी को आसानी से मात दी जा सकती है. मगर अरविंद केजरीवाल की पार्टी के सामने अहम सवाल ये है कि उस बीजेपी को कैसे जवाब दें जिसने 2014 लोकसभा चुनाव में 7 सीटों पर कब्जा जमाया था जबकि आईएनएलडी को 2 और कांग्रेस को 1 सीट पर संतोष करना पड़ा था. आम आदमी पार्टी  इस सवाल का जवाब कांग्रेस के साथ गठबंधन में ढूंढ रही है.

शीला, तंवर से कैसे हो बात

ऐसा नहीं है कि अरविंद केजरीवाल बुधवार को अचानक हरियाणा में गठबंधन के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाने को तैयार हो गए. जेजेपी और आम आदमी पार्टी में गठबंधन की चर्चाएं वहां पिछले काफी दिन से चल रही हैं लेकिन गठबंधन किसी अंजाम तक नहीं पहुंच पाया है. केजरीवाल भलीभांति जानते हैं कि हरियाणा में गठबंधन की बात बनती है तो दिल्ली में गठजोड़ की संभावना दूर नहीं होगी, लेकिन असली समस्या ये है कि दिल्ली में कांग्रेस की कमान आज शीला दीक्षित के हाथ में है, तो हरियाणा में अशोक तंवर अध्यक्ष हैं. इन दोनों नेताओं से अरविंद केजरीवाल आखिर बात करें तो कैसे? ऐसे में केजरीवाल सीधे तौर पर राहुल गांधी को संबोधित कर रहे हैं और गठबंधन की आस जगा रहे हैं.

अब जब कांग्रेस का जवाब आ गया है तो क्या मानें कि दोनों पार्टियों में गठबंधन की संभावनाएं क्षीण हो गई हैं? ऐसा मानना भूल होगी क्योंकि राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल में किसी न किसी प्रकार की आपसी समझदारी जरूर है, तभी दोनों एक दूसरे पर प्रहार से बचते नजर आते हैं. हाल में केजरीवाल से एक सवाल पूछा गया कि क्या आम आदमी पार्टी गठबंधन की बातचीत से आगे बढ़ चुकी है? इस पर केजरीवाल का काफी सधा जवाब था कि "बिना गठबंधन के आम आदमी के सांसद जीत रहे हैं, फिलहाल आम आदमी पार्टी के पास कांग्रेस से कोई जानकारी नही है". उनकी बातों में कांग्रेस के खिलाफ कहीं तल्खी नहीं झलकी. इससे साफ है कि केजरीवाल कहीं न कहीं गठबंधन की मजबूरी से बंधे हैं कि हो सकता है कल को कोई अच्छी खबर आ जाए.

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