किराए के घर में आईएएस-आईपीएस, तबादलों के बाद भी बंगले खाली नहीं कर रहे अफसर

भोपाल
 प्रदेश में ताबड़तोड़ तबादलों की वजह से प्रशासनिक अस्थिरता जैसे हालात बन गए हैं। ऐसी स्थिति में भोपाल से बाहर जिलों में भेजे गए अधिकारी राजधानी में आवंटित सरकारी बंगला 6 महीने की अवधि से पहले खाली करने को तैयार नहीं है। जिसकी वजह से भोपाल में पदस्थ किए गए दो दर्जन से ज्यादा आईएएस, आईपीएस अफसर बंगलों के लिए लाइन में हैं। यहां तक कि गृह मंत्रालय भोपाल कलेक्टर तरुण पिथौड़े को भी बंगला आवंटित नहीं कर पाया है। जबकि जिलों में कलेक्टर बंगला स्थाई (मार्क)होता है। बंगला आवंटित करने की गृह मंत्रालय के पास कोई पारदर्शिता (ऑनलाइन) प्रक्रिया नहीं है।

राजधानी में अफसर, मंत्रियों की आवास आवंटित कराने की पहली पसंद चार इमली क्षेत्र है।  चार-इमली में 25 बंगले बी-टाइप, 25 बंगले सी टाइप हैं। जिनमें से ज्यादातर मंत्री और वरिष्ठ अफसरों के पास है। डी टाइप बंगले 184 हैं।  जबकि ई टाइप बंगले 163 हैं। पिछले कुछ सालों में नए प्राधिकरण, आयोग और केंद्रीय संस्थाओं में अफसरों, जजों की संख्या बढऩे से उन्हें भी बंगला आवंटित करना होता है। जिसकी वजह से बंगलों की संख्या कम पड़ गई है। गृह विभाग के अनुसार 2011 के बाद से अखिल भारतीय सेवा के बैच में ज्यादा अफसर आए हैं। विधानसभा चुनाव के बाद से अभी तक लगभग सभी जिलों के एसपी, कलेक्टर, संभागायुक्त बदले जा चुके हैं। जिनमें से ज्यादातर को भोपाल बुलाया गया। इस दौरान कई अफसरों के बार-बार तबादले हुए। जिससे प्रशासनिक अस्थिरता जैसी स्थिति बनी। ऐसे में भोपाल से जिलों में गए अधिकारियों ने तत्काल आवास खाली नहीं किए। नियमानुसार उन्हें 6 महीने तक आवास रखने की पात्रता होती है। जिन्होंने जिलों पदस्थ होने पर तत्काल आवास खाली किए, उनमें से जो वापस भोपला आए वे आज बंगलों के लिए लाइन में है।

ये अफसर बंगले के लिए लाइन में

2011 बैच के आईएएस हरजिंदर सिंह, डॉ विजय, 2012 बैच के राहित सिंह और उनकी अफसर पत्नी हर्षिता सिंह, अनुराग वर्मा, कटनी कलेक्टर से भोपाल आए पंकज जैन, दमोह कलेक्टर से भोपाल आए नीरज सिंह, 2013 बैच की सोनिया मीणा, राहुल हरिदास, सोमेश मिश्रा, आशीष वशिष्ठ को बंगला नहीं मिला है। आईएएस दंपति नंदकुमारम और छवि भारद्वाज को भी बंगला नहीं मिला है। आईपीएस अफसर तरुण नायक, सिद्धार्थ बहुगुणा, कुमार सौरभ भी बंगले के इंतजार में है। इनमें से कुछ अधिकारी रेस्ट हाउस या फिर किराए के आवास में रह रहे हैं। कुछ अफसर जिलों में जाने के इंतजार में है।

इन्होंने खाली नहीं किया बंगला

शिवराज सरकार में भोपाल कलेक्टर रहे निशांत बड़बड़े ने इंदौर कलेक्टर बनने के बाद भी आवास खाली नहीं किया। उनके बाद भोपाल कलेक्टर रहे सुदाम खाड़े को चार इमली से बाहर प्रशासनिक अकादमी में बंगला आवंटित किया गया। देवास एसपी चंद्रशेखर सोलंकी, छतरपुर कलेक्टर मोहित बुंदास ने भी बंगला खाली नहीं किया। शिवराज सरकार में मुख्यमंत्री कार्यालय में रहे अफसर भी सरकारी बंगला छोडऩे को तैयार नहीं है। कुछ अधिकारी ऐसे हैं, जो खुद नहीं रहते, लेकिन बंगला आवंटित कराकर रखा है। लोकसभा चुनाव बाद भोपाल से जिन अफसरों को जिलों में भेजा है, उनमें से ज्यादातर ने बंगले खाली नहीं किए हैं।

नए अफसरों को आती है परेशान

जिलों में अफसरों के आवासों की मार्किंग होती है। जबकि राजधानी में ऐसा नहीं होता है। खासकर कलेक्टर, एसपी, एसएसपी का आवास तय नहीं है। नए अफसर जब राजधानी आते हैं, तब उन्हें (परिवार को)घर के लिए परेशान होना पड़ता है। ज्यादातर के बच्चे छोटे होते हैं, उन्हें किराए के आवास में जाना पड़ता है, फिर कुछ महीनों बाद आवास बदलना होता है।

गृह विभाग में नहीं है अपडेट डाटा

आवास आवंटन का गृह विभाग के पास अपडेट आनलाइन डाटा नहीं है। न ही पहले आओ पहले पाओ की प्रक्रिया है। आईएएस की अपेक्षा आईपीएस को पहले बंगला मिल जाता है। कुछ अफसरों को पात्रता से भी बड़ा घर आवंटित है। खाली घरों की सूची ऑनलाइन/ऑफलाइन अपडेट नहीं है। बंगलों में अफसर रह रहे हैं या नहीं इसकी पड़ताल भी नहीं होती।

यह सही हैं कि राजधानी में अफसरों के लिए बंगलों की कमी है। डी-टापइ 68 फ्लेट की मल्टी बन रही है। इसके बाद समस्या हल हो जाएगी। तबादला होकर बाहर जाने वालों को 6 महीने के भीतर आवास खाली करने की पात्रता होती है। इससे पहले उन्हें बाध्य नहीं किया जा सकता है।

नरेश पाल, सचिव, गृह विभाग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *