कही आपको तो नहीं पार्किंसंस रोग

 

पार्किंसंस रोग एक ट्रेमर डिजीज है, जिसमें व्यक्ति के शरीर के किसी हिस्से में कंपन्न या हिलना और झटके लगने जैसी दिक्कत होने लगती है, जिस पर वह व्यक्ति चाहकर भी नियंत्रण नहीं कर पाता। इस बीमारी से व्यक्ति की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। क्योंकि उनके काम करने की गति बहुत धीमी हो जाती है…

पार्किंसंस का शुरुआती चरण
-व्यक्ति हंसना चाहता है लेकिन इसके लिए उसे अपने चेहरे से पूरा सहयोग नहीं मिल पाता है। वॉकिंग के दौरान उसका कोई एक हाथ सामान्य तरीके से मूवेंट नहीं करता है।
– जब किसी व्यक्ति के शरीर में पार्किंसंस रोग की शुरुआत हो रही होती है तो प्रारंभिक चरण में उस व्यक्ति का अपने कुछ मनोभावों पर नियंत्रण नहीं रहता है। जैसे, अपने चेहरे से अपनी भावनाओं को दर्शाने में उसे दिक्कत होती है।
-कई बार यह दिक्कत केवल हाथ में कंपकंपी होने से भी शुरू होती है। समस्या इस की बात है कि इन लक्षणों को हमारे समाज में शुरुआती स्तर पर गंभीरता से नहीं लिया जाता और धीरे-धीरे यह बीमारी खतरनाक रूप ले लेती है।

पार्किंसंस के शुरुआती लक्षण
ट्रेमर्स: कंपकंपी आना, लगातार अंग में कंपन्न होना या ट्रेमर उस स्थिति को कहते हैं, जब किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध उसके शरीर का कोई हिस्सा हिलने लगता है और खुद ही शांत भी हो जाता है।
-ट्रेमर की दिक्कत आमतौर पर हाथों में होती है। इसमें व्यक्ति का हाथ या उंगलियां अचानक कंपकंपाने लगती हैं और कई बार उंगलियां या अंगूठा किसी एक तरफ झुकने या घूम जाने की दिक्कत भी हो सकती है।
-हालांकि यह दिक्कत पीड़ित व्यक्ति द्वारा हाथ को थपथपाने, शांत करने का प्रयास करने और हल्का दबाव डालने पर ठीक हो जाती है। ऐसा आमतौर पर तब होता है, जब हाथ आराम की अवस्था में या किसी एक अवस्था में देर तक रहता है।

चाल का धीमा हो जाना
-सामान्य तौर पर पार्किंसंस के लक्षण हाथ से शुरू होते हैं और धीरे-धीरे बढ़ते रहते हैं। अगर वक्त पर ध्यान ना दिया जाए तो यह बीमारी व्यक्ति के चलने-फिरने की गति को धीमा कर देती है।
-रोगी के कदम पहले की तुलना में छोटे हो जाते हैं। कई बार कुर्सी से उठने में भी दिक्कत होती है। चलते समय कई बार पैरों ना उठा पाने की स्थिति में पैरों को घसीटना पड़ता है।

मसल्स का सख्त होना
– पार्किंसंस की शुरुआत में शरीर के किसी भी प्रभावित हिस्से की मांसपेशियां सामान्य से अधिक सख्त होने लगती हैं। धीरे-धीरे इनकी ये स्टिफनेस और अधिक बढ़ सकती है।
-इससे व्यक्ति को मसल्स में दर्द की दिक्कत बनी रह सकती है। साथ ही गति करने की क्षमता भी धीमी हो जाती है।

संतुलन बनाने में समस्या
-पार्किंसंस के रोगी को तुरंत खड़े होने या बैठने में दिक्कत होती है। कई बार उन्हें खड़े होने और बैठने के सही पॉश्चर को फॉलो करने में दिक्कत होती है।
-कुछ रोगियों को पलकें झपकाने में दिक्कत, हाथ हिलाने में दिक्कत या सामान्य मूवमेंट्स में भी परेशानी होने लगती है।

बोलने और लिखने में दिक्कत होना
-कुछ लोगों में पार्किंसंस ने कारण स्पीच संबंधी दिक्कतें होने लगती हैं। जैसे, आवाज धीमी होना, बोलते वक्त परेशानी होना, शब्दों को पहले की तरह क्लियर ना बोल पाना ।
-पार्किंसंस के कारण ग्रसित व्यक्ति को लेखन में भी दिक्कत होती है। या तो कुछ भी साफ-साफ लिखने में वे पूरी तरह असमर्थ हो जाते हैं या फिर लिखने के दौरान उनके शब्दों का आकार बहुत छोटा होने लगता है।

पार्किंसंस बीमारी के मुख्य कारण
– पार्किंसंस की बीमारी आमतौर पर तब होती है, जब किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में तंत्रिका तंत्र संबंधी कोशिकाएं कमजोर पड़ने लगती हैं।
-कुछ स्थितियों में नर्वस सिस्टम की ये कोशिकाएं टूटने या मरने भी लगती हैं। कई बार बॉडी में जरूरी हॉर्मोन्स का उत्पादन सही मात्रा में ना होने पर भी पार्किंसंस की दिक्कत हो सकती है।
-लेवी बॉडीज (Lewy Bodies)प्रोटीन से बनी उन सेल्स का जमाव होता है, जो नर्वस सिस्टम के अंदर जमा होती हैं। ये भी पार्किंसंस डिजीज का कारण बन सकती हैं।
-बढ़ती उम्र भी पार्किंसंस का खतरा बढ़ने की वजह होती है। आमतौर पर यह बीमारी 60 साल की उम्र के आस-पास शुरू होती है। हालांकि युवाओं में यह बीमारी बहुत दुर्लभ होती है।
-हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि पार्किंसंस की बीमारी महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक होती है। खासतौर पर हर्बिसाइट्स और कीटनाशकों के अधिक संपर्क में रहने पर इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।

पूरी तरह ठीक नहीं होती
-पार्किंसन रोग पूरी तरह ठीक नहीं हो पाता है। हालांकि पेशंट की स्थिति में बहुत अधिक सुधार की संभावना जरूर रहती है।
-इलाज और कुछ थेरेपीज के जरिए इस बीमारी को इतना नियंत्रित किया जा सकता है कि आप अपनी सामान्य दिनचर्या के सभी कार्य ठीक से कर पाएं।
-हो सकता है कि आपके डॉक्टर आपके ब्रेन के किसी हिस्से की सर्जरी कराने का सुझाव भी आपको दें। ऐसे सुझाव रोगी की स्थिति पर निर्भर करते हैं। किसी को ऑपरेशन की जरूरत हो सकती है, जबकि किसी का उपचार केवल दवाओं से भी हो सकता है।
-हमारा मकसद इस बात को लेकर आपको जागरूक करना है कि जब शरीर में इस तरह के लक्षण दिखें तो उन्हें अनदेखा करने के बजाय तुरंत इलाज कराएं। ताकि बीमारी गंभीर रूप ना ले सके।

होती हैं इस तरह की दिक्कतें
– जिन लोगों को पार्किंसंस की बीमारी हो जाती है उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि हर पेशंट को यहां बताई गई सभी दिक्कतें हों।
-सोचने की क्षमता कमजोर होना: पार्किंसंस की दिक्कत होने पर रोगी को सोचने-समझने और चीजों को याद रखने में दिक्कत होने लगती है।
-डिप्रेशन: पार्किंसंस में मरीज को डिप्रेशन हो सकता है। या उसका अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रहता है। ऐसा कई बार रोग के शुरुआती स्तर पर भी हो सकता है। इस स्थिति में डिप्रेशन का इलाज काफी मददगार होता है।
-निगलने में दिक्कत होना: जैसे-जैसे यह बीमारी बढ़ती जाती है, रोगी को होनेवाली समस्याएं भी बढ़ने लगती हैं। कुछ लोगों का पानी और खाना निगलने में भी परेशानी हो सकती है।
-नींद से जुड़ी दिक्कतें: इस बीमारी में नींद से जुड़ी सस्याएं होना बेहद सामान्य बात है। रोगी को रात के वक्त कई बार नींद टूटने की शिकायत होती है साथ ही दिन में कई बार नींद की गहरी झपकियां आ सकती हैं।
-पेशाब से जुड़ी समस्याएं: पार्किंसंस के कारण रोगी को ब्लेडर से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। इस कारण बार-बार पेशाब आना, पेशाब पर नियंत्रण ना कर पाना या पेशाब करने में दिक्कत होना जैसी तकलीफें होती हैं।

कुछ रोगियों को होती हैं ये समस्याएं
पार्किंसंस के कारण एक तरफ जहां कुछ लोगों को शारीरिक समस्याएं होती हैं, वहीं कुछ लोगों को इंद्रियों से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं। इनमें कुछ समस्याएं इस प्रकार हैं…
-थकान रहना: पार्किंसंस के कुछ रोगी हर समय खुद को थका हुआ महसूस करते हैं। खासतौर पर शाम के वक्त उनकी हालत ऐसी हो जाती है, जैसे किसी ने उनकी सारी ऊर्जा खींच ली हो। आमतौर पर इस दिक्कत की वजह वे समझ नहीं पाते।
– ब्लड प्रेशर की समस्या: कुछ लोगों में पार्किंसंस के कारण ब्लड प्रेशर से जुड़ी समस्याएं होने लगती हैं। इनमें बीपी हाई होना और बीपी लो होना कोई भी स्थिति हो सकती है।
-सूंघने में दिक्कत होना: कई बार पार्किंसंस के मरीज को चीजों की स्मेल पहचानने में दिक्कत होती है। तो कभी-कभी उन्हें स्मेल पता ही नहीं लगती है। ऐसा सूंघने की शक्ति कमजोर होने का कारण होता है।
-सेक्शुअल डिसफंक्शन: पार्किंसंस के मरीजों की सेक्स लाइफ भी प्रभावित होती है। इनकी सेक्स में रुचि कम हो जाती है या फिर तुरंत स्खलित होने की समस्या हो सकती है।
– दर्द बना रहना: पार्किंसंस के रोगियों को शरीर के कुछ खास हिस्सों में हर समय दर्द बने रहने की शिकायत हो सकती है। वहीं कुछ लोगों को पूरे शरीर में ही हर समय दर्द बना रह सकता है।

पार्किंसंस की रोकथाम के तरीके
-पार्किंसंस का खतरा उन लोगों में अधिक होता है, जिनकी फैमिली हिस्ट्री में यह दिक्कत हो और ये लोग स्वस्थ जीवन शैली भी नहीं अपना रहे होते हैं।
-तनाव से दूर रहने का प्रयास करें। अत्यधिक तनाव होने की स्थिति में बॉडी में हॉर्मोन्स का असंतुलन हो जाता है, जो आपको इस बीमारी की तरफ धकेल सकता है।
-हेल्दी डायट और योग हर तरह की बीमारी से बचाव का तरीका हैं। इसलिए यह जरूरी है कि आप स्वस्थ जीवन शैली को अपनाएं।
-हालांकि पार्किंसंस का रोग होता क्यों है, यह अभी तक पूरी तरह साफ नहीं हो पाया है। इस बीमारी से जुड़ी अलग-अलग रिसर्च में यह बात सामने आई है कि योग करना, खुश रहना और एरोबिक एक्सर्साइज करके इस बीमारी से बचाव संभव है।

इलाज से जुड़ी बातें
-जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि इस बीमारी के पूरी तरह ठीक होने की संभावना नहीं होती है। लेकिन इसे बहुत हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। ताकि रोगी एक सामान्य जीवन जी सके।
– लेकिन अगर आपको ऊपर बताए गए लक्षणों में से कोई भी दिक्कत अपने आपमें महसूस हो रही हो तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं। ताकि बढ़ने से पहले ही इस बीमारी को रोका जा सके। साथ ही यदि आपके शरीर में कोई और दिक्कत पनप रही हो तो उसे दूर किया जा सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *