एनआरसी पर सरकार ने मजबूरी में पीछे खींचा कदम, सीएए पर विरोध का केंद्र को नहीं था अंदाजा

 नई दिल्ली 
राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) पर देश भर से मिले फीडबैक से केंद्र सरकार ने फिलहाल कदम कुछ पीछे खींच लिए हैं लेकिन गृहमंत्रालय में इसे लेकर कई स्तरों पर कवायद की गई है। दस्तावेजों की सूची तैयार करने पर भी मंत्रालय में काफी काम हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रामलीला मैदान पर दिए गए बयान के पहले तक इस मसले पर गृहमंत्रालय का रुख पूरी तरह से आक्रामक था।

मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों का दावा था कि एनआरसी लागू करने से कोई राज्य इनकार नहीं कर सकता। हालांकि, देश भर में विरोध प्रदर्शनों के चलते मंत्रालय की ओर से यह सफाई जरूर दी गई थी कि एनआरसी की वजह से किसी को परेशानी नहीं होगी। नागरिकता संबंधी दस्तावेजों को लेकर भी लचीला रुख अपनाते हुए कई तरह के दस्तावेजों को मान्यता देने की बात मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों की ओर से कही गई थी।

गृहमंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि यह सही है कि राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस मामले पर मंत्रालय के भीतर कवायद चल रही थी। मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी ने सरकारी कवायद के मद्देनजर ही एनआरसी को लेकर किसी को परेशानी न होने का भरोसा दिया था। लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि एनआरसी की अभी कोई योजना नहीं है।

मंत्रालय के सूत्रों ने कहा था कि एनआरसी को लेकर कोई नया विधेयक लाने की जरूरत नहीं थी इसपर केवल लागू करने के लिए मानक प्रक्रिया (एसओपी) तैयार होना है। इसलिए नए सिरे से कैबिनेट में चर्चा नहीं होनी है। सूत्रों ने कहा कि दरअसल सरकार एक साथ कई मोर्चे खुल जाने से घिर गई। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर देश भर में विरोध का उसे अंदाजा नहीं था।

सरकार इस आंदोलन के पूर्वोत्तर तक सिमटने को लेकर आश्वस्त थी। इसलिए पूरी रणनीति पूर्वोत्तर को ध्यान में रखकर बनाई गई थी। सरकार में एक धड़ा मानता है कि अगर एनआरसी की बात तुरंत नहीं की जाती तो शायद सीएए को लेकर मामला इतना नहीं बढ़ता। लेकिन सीएए, एनआरसी एक साथ जुड़ जाने से एनपीआर को लेकर भी विवाद हो गया जिसपर पहले कोई विवाद नहीं था।

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