एकतरफा कॉन्ट्रैक्ट नहीं बना सकते बिल्डर: SC

नई दिल्ली
बिल्डर एकतरफा कॉन्ट्रैक्ट मानने के लिए फ्लैट खरीददार को बाध्य नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणी करते हुए फ्लैट का पजेशन देने में 2 साल की देरी करने के मामले में बिल्डर कंपनी से कहा है कि वह फ्लैट खरीददार को उसका 4 करोड़ 83 लाख रुपये ब्याज समेत वापस करे। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली बेंच ने यह फैसला दिया।

बेंच ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि 8 मई 2012 को बिल्डर और खरीददार के बीच अग्रिमेंट हुआ था। अग्रिमेंट में कहा गया था कि अगर खरीददार ने पेमेंट में देरी की तो उसे 18 फीसदी इंट्रेस्ट पेमेंट करना होगा। अगर बिल्डर ने तय समय में फ्लैट का पजेशन नहीं दिया तो खरीददार 12 महीने और इंतजार करेगा। रिफंड की स्थिति में बिल्डर सिर्फ मूलधन वापस करेगा। उसमें देरी हुई तो बिल्डर 9 फीसदी ब्याज का भुगतान करेगा।

एकतरफा समझौता मानना बाध्यकारी नहीं: SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अग्रिमेंट एकतरफा है और अनुचित है। अदालत ने कहा कि फ्लैट खरीददार को एकतरफा अग्रिमेंट मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। ऐसा कॉन्ट्रैक्ट जिसे बिल्डर ने तैयार किया है और खरीददार के पास उस पर दस्तखत करने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है तो ऐसा कॉन्ट्रैक्ट फाइनल और बाध्यकारी नहीं हो सकता। नैशनल कंज्यूमर फोरम ने बिल्डर को निर्देश दिया था कि वह फ्लैट खरीददार को 4 करोड़ 83 लाख 25 हजार 280 रुपये वापस करे और साथ ही 10.7 फीसदी ब्याज का भुगतान करे। इस फैसले को बिल्डर कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

नैशनल कंज्यूमर फोरम के फैसले को कोर्ट ने रखा बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नैशनल कंज्यूमर फोरम का फैसला सही है और बिल्डर की दलील जस्टिफाई नहीं है। बिल्डर कंपनी अपना वादा पूरा करने में विफल हुआ कि वह तय समय में ओसी (अक्युपेंसी सर्रिफिकेट) प्राप्त करेगा और फ्लैट खरीददार को समय पर पोजेशन देगा। मौजूदा मामले में दो साल बाद उसने पोजेशन ऑफर किया। बिल्डर कंपनी दो साल की देरी से पोजेशन लेने केलिए खरीददार को बाध्य नहीं कर सकता। खरीददार ने 10 फीसदी ब्याज पर लोन लिया है और गुड़गांव में ही दूसरी जगह फ्लैट खरीद लिया है। ऐसे में बिल्डर कंपनी खरीददार को उसका पूरा पैसा ब्याज के साथ रिफंड करे।

गुड़गांव के सेक्टर 62 में बिल्डर कंपनी ने रेजिडेंशल प्रॉजेक्ट लॉन्च किया था। इसमें खरीददार ने फ्लैट बुक किया। इसके लिए 8 मई 2012 को एग्रीमेंट साइन किया गया। खरीददार ने कुल 4 करोड़ 83 लाख 25 हजार 280 रुपये पेमेंट किए। एग्रीमेंट में कहा गाय था कि बिल्डर 39 महीने के भीतर ओसी के लिए अप्लाई करेगा और 6 महीने ग्रेस पीरियड होगा यानी 4 मार्च 2016 तक वह ओसी लेगा और पोजेशन देगा। आरोप है कि बिल्डर कंपनी ने तय समय में ओसी अप्लाई नहीं किया।

मामला नैशनल कंज्यूमर फोरम में आया। खरीददार ने आरोप लगाया कि तय समय में ओसी नहीं लिया और फ्लैट नहीं दिया ऐसे में पूरी रकम वापस किया जाए और 18 फीसदी ब्याज दिया जाए और 10 लाख रुपये मुआवजा दिया जाए। नैशनल कंज्यूमर फोरम ने बिल्डर कंपनी से रकम वापस करने और 10.7 फीसदी ब्याज का भुगतान करने को कहा। इस फैसले को बिल्डर कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कंज्यूमर फोरम के फैसले को सही ठहराया

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