आम चुनाव के बाद बदल सकता है नीति आयोग का कलेवर

 नई दिल्ली
नीति आयोग ने अपने वर्जन 2.0 के लिए मंथन शुरू कर दिया है। इसका नया रूप आम चुनाव के बाद पेश किया जा सकता है। आयोग ने एक आंतरिक बैठक में पहली जनवरी 2015 को अपने गठन के बाद किए गए कार्यों की समीक्षा की। इसमें यह भी देखा गया कि संस्था को मजबूत बनाने और नीतिगत मोर्चे पर की जाने वाली सिफारिशों को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए क्या किया जा सकता है।

सूत्रों ने बताया कि इस बैठक के नतीजे के आधार पर आयोग नई सरकार के कार्यभार संभालने के बाद नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री के सामने प्रेजेंटेशन दे सकता है। इसमें यह बताया जा सकता है कि आयोग के कामकाज को और दमदार बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए।

यह बैठक मार्च के पहले हफ्ते में मोहाली में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनस के कैंपस में हुई थी। आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार, सीईओ अमिताभ कांत, सदस्यों रमेश चंद और वी. के. सारस्वत सहित 25 सीनियर सरकारी अधिकारियों और 3-4 लैटरल एंट्री वाले अफसरों ने इस बैठक में हिस्सा लिया था।

नीति आयोग का गठन एनडीए सरकार ने पहले से चले आ रहे योजना आयोग को भंग करने के साथ किया था। योजना आयोग को भंग किए जाने की विपक्ष ने आलोचना की थी।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल में कहा था कि उनकी पार्टी अगर सत्ता में आई तो नीति आयोग को भंग कर दिया जाएगा क्योंकि इसने पीएम के लिए मार्केटिंग प्रेजेंटेशन देने और 'आंकड़ों में हेरफेर' करने के सिवा कोई काम नहीं किया है।

एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि तीन दिनों तक चली बैठक में पाया गया कि फंड की कमी के कारण आयोग को पायलट प्रॉजेक्ट्स पर काम करने में दिक्कत होती है। इसके अलावा बैठक में यह भी पाया गया कि आयोग में एजुकेशन और टूरिजम जैसे सेक्टरों पर काम करने वाले कुशल लोगों की कमी है और इन पदों पर सिविल सर्वेंट्स की रैंडम आधार पर की जाने वाली भर्तियों से बात नहीं बनती क्योंकि उन्हें इन सेक्टरों की खास जानकारी नहीं होती।

बैठक में शामिल रहे अधिकारी के अनुसार, इस बात की जरूरत महसूस की गई कि पीएम के साथ आयोग के वाइस चेयरमैन के ज्यादा संवाद की आवश्यकता है। पीएम आयोग के पदेन अध्यक्ष होते हैं। मीटिंग में आयोग के लैटरल एक्सपर्ट्स और इसके सरकारी अधिकारियों के बीच तालमेल की कमी पर भी चिंता जताई गई, जिससे प्राय: नीतियां बनाने में देर हो जाती है।

मीटिंग में शामिल रहे एक अन्य सीनियर सरकारी अधिकारी ने बताया कि आयोग 3 से 5 साल के लिए एकमुश्त बजट तय करने की मांग करेगा ताकि पायलट प्रॉजेक्ट्स शुरू करने में दिक्कत न हो। आयोग ने फंड के लिए मंत्रालयों से संपर्क किया है, लेकिन कुछ मामलों में मंत्रालय तब फंड देने में आनाकानी करते हैं, जब प्लान उनकी सोच के मुताबिक न हो।

अधिकारियों ने कहा कि बैठक में इस बात पर भी चर्चा की गई थी कि आयोग का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक रहा है या नहीं, इसे और प्रभावी बनाने के लिए कौन से कदम उठाए जाने चाहिए और तय किए गए लक्ष्य हासिल करने में किस तरह की चुनौतियां आ रही हैं।

वित्त आयोग के पूर्व चेयरमैन विजय केलकर ने हाल में सुझाव दिया था कि आयोग को फाइनैंशल पावर दिए जाएं ताकि क्षेत्रीय असंतुलन दूर किया जा सके। उन्होंने आयोग के उपाध्यक्ष को आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी का स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाने की सलाह भी दी थी। वित्तीय अधिकार दिए जाने की उनकी सलाह का आयोग के उपाध्यक्ष ने समर्थन किया है।

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