आपके हर वोट के लिए खर्च होती है बड़ी रकम

नई दिल्ली
लोकतंत्र कोई आसानी से उपलब्ध होनेवाली चीज नहीं है और हर 5 साल में भारत को इसके लिए पहले से बड़ी कीमत चुकानी होती है। 2019 के लोकसभा चुनावों में कितना खर्च हुआ, इसका पता तो चुनावों के बाद ही चलेगा, लेकिन 2014 के चुनावों में खर्च के लिहाज से अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई थी। 2014 के चुनावों में चुनाव सामग्री और उपकरणों पर खर्च के साथ ही हर वोटर को पोलिंग बूथ तक लाने के लिए की जानेवाली रकम में भी बहुत बड़ी वृद्धि देखी गई थी।

लोकतंत्र का महापर्व होता है बहुत खर्चीला
अब तक हुए लोकसभा चुनावों में सबसे कम खर्चीला चुनाव 1957 में हुआ दूसरा लोकसभा चुनाव था। उस वक्त हुए इन चुनावों का खर्च करीब 10 करोड़ रुपये भर था। 2014 के चुनाव अब तक के सबसे खर्चीले चुनाव थे। 2014 के चुनावों में पूर्व में हुए सभी लोकसभा चुनावों के कुल खर्च का लगभग तीन चौथाई हिस्सा खर्च सिर्फ पिछले लोकसभा चुनावों में हुआ। इस खर्च में चुनाव उपकरणों की खरीद, इंस्टॉलेशन काउंटिंग स्टाफ और मतदान अधिकारियों की नियुक्ति पोलिंग बूथ और वहां पर टेंपररी फोन सुविधा, मतदान की स्याही, अमोनिया पेपर जैसी चीजों पर हुआ खर्च शामिल है।

प्रति वोटर होनेवाला खर्च लगातार बढ़ा
प्रति वोटर होनेवाले खर्च की बात की जाए तो हर चुनाव के साथ इसमें वृद्धि हुई है। पहले लोकसभा चुनाव में यह कीमत 1 रुपया से भी कुछ कम था और अगले 6 लोकसभा चुनावों तक यह आंकड़ा 1 रुपये के आसपास ही रहा। हालांकि, 2014 लोकसभा चुनावों में वृद्धि की दर पिछले चुनाव की तुलना में तीन गुना अधिक रही। 2014 लोकसभा चुनावों में प्रति वोटर खर्च लगभग 50 रुपये रहा।

इस बार मतदाताओं की संख्या कई देशों की जनसंख्या से अधिक
भारत के पहले लोकसभा चुनाव में करीब 20 करोड़ मतदाता थे। हर चुनाव में मतदाताओं की संख्या में बड़ी वृद्धि दर्ज होती रही है। इस बार 900 मिलियन मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे और यह आंकड़ा अमेरिका, ब्राजील और इंडोनेशिया की कुल जनसंख्या से अधिक है। ये तीनों ही देश जनसंख्या के लिहाज से तीसरे, चौथे और पांचवें सबसे अधिक आबादी वाले देश हैं।

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