अयोध्‍या पर मध्‍यस्‍थता फेल, अब आगे का रास्ता आज होगा तय

नई दिल्‍ली
अयोध्‍या में 2.77 एकड़ बाबरी मस्जिद-राम जन्‍मभूमि जमीन विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने की उम्‍मीद अब धूमिल हो गई है। अयोध्या विवाद मामले में गठित मध्यस्थता समिति ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में अपनी फाइनल रिपोर्ट पेश की। समिति के सदस्‍यों ने कहा कि वे इस विवाद का समाधान करने में अक्षम हैं। मध्‍यस्‍थता समिति की इस रिपोर्ट के बाद लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद के आपसी बातचीत से समाधान की कोशिशों को तगड़ा झटका लगा है।

सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच अब शुक्रवार को इस मुद्दे पर सुनवाई करेगी और माना जा रहा है कि सर्वोच्‍च अदालत 30 अगस्‍त, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं की प्रतिदिन सुनवाई के लिए एक कार्यक्रम तय कर सकती है। बता दें कि हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि विवादित जमीन को तीन समान हिस्‍सों में बांट दिया जाए और एक-एक हिस्‍सा राम लला (मूर्ति), निर्मोही अखाड़ा और सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड को दे दिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने गठित की थी तीन सदस्यीय समिति
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एफ. एम. कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की थी, जिसे मामले का सर्वमान्य समाधान निकालना था। मध्यस्थता समिति में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू भी शामिल थे। मध्यस्थता पैनल ने संबंधित पक्षों से बंद कमरे में बातचीत की। हालांकि, हिंदू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने बाद में सुप्रीम कोर्ट से मध्यस्थता प्रक्रिया को रोककर मामले की रोज सुनवाई की गुहार लगाई क्योंकि उनके मुताबिक मध्यस्थता की दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हो रही है।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वे लोग सभी विरोधी पक्षों में आपसी सहमति बनाने में असफल रहे। इसलिए अब समय आ गया है कि मध्‍यस्‍थता प्रक्रिया को रोक दिया जाए। 8 मार्च से लेकर अब तक 155 दिन फैजाबाद में सभी पक्षों से विचार विमर्श किया गया। इस दौरान हिंदुओं के पक्ष ने मध्‍यस्‍थता का कड़ा विरोध किया वहीं मुसलमानों के पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उन्‍होंने मध्‍यस्‍थता प्रक्रिया का समर्थन किया था।

'कट्टरवादी धड़े को साथ लाने में असफल रहे'
मध्‍यस्‍थता समिति के सदस्‍यों ने कहा कि उन्‍होंने सभी पक्षों के उदारवादी खेमे को एक मंच पर लाकर विचार विमर्श करने में सफलता हासिल की लेकिन कट्टरवादी धड़े को वे साथ लाने में असफल रहे। इससे पहले 18 जुलाई को समिति ने कोर्ट को स्टेटस रिपोर्ट सौंपी थी। तब सीजेआई ने कहा था कि अभी मध्यस्थता की रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर नहीं लिया जा रहा, क्योंकि ये गोपनीय है। पैनल जल्द अंतिम रिपोर्ट सौंप दे। अगर कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला तो हम 2 अगस्त को रोजाना सुनवाई पर विचार करेंगे।

मामले की सुनवाई सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता और जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण व जस्टिस एस. ए. नजीर की सदस्यता वाली संवैधानिक बेंच कर रही है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपीलें दायर की गई हैं। हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच समान रूप से विभाजित करने का आदेश दिया था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने मई 2011 में हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के साथ ही अयोध्या में विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।

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