अमेठी के बाद अमेठी के राजा का भी कांग्रेस से मोहभंग, पहले भी तोड़ चुके हैं नाता

अमेठी
पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय से ही अमेठी राज परिवार का नाता नेहरू-गांधी परिवार से करीबी और उतार-चढ़ाव भरा रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को अमेठी संसदीय सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद अमेठी राजपरिवार की 34वीं पीढ़ी के राजा डॉ. संजय सिंह का भी कांग्रेस से मोहभंग हो गया है.

उन्होंने कांग्रेस को एक बार फिर अलविदा कह दिया है और अब बीजेपी का दामन थामने जा रहे हैं. संजय सिंह ने कांग्रेस छोड़ने के साथ-साथ राज्यसभा सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया है.

1998 में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता

संजय सिंह से कांग्रेस से दूसरी बार नाता तोड़ा है. इससे पहले 90 के दशक में जब वीपी सिंह ने कांग्रेस छोड़ी थी तब संजय सिंह ने भी पार्टी का साथ छोड़ा दिया था. इसके बाद कांग्रेस के खिलाफ ताल ठोककर चुनावी मैदान में उतरे. उन्होंने 1998 में कैप्टन सतीश शर्मा को बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़कर हराया और वाजपेयी सरकार में मंत्री बने.

साल 1999 में सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति में आ गईं और अमेठी से ही अपना पहला चुनाव लड़ा. इस चुनाव में भी संजय सिंह उनके खिलाफ बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में थे, लेकिन जीत नहीं सके. इसके बाद राहुल गांधी ने राजनीति में कदम रखा तो उन्होंने कांग्रेस में घर वापसी की. 2009 के लोकसभा चुनाव में वे कांग्रेस के टिकट पर सुल्तानपुर लोकसभा से चुनाव लड़े और जीत दर्ज कर दूसरी बार संसद पहुंचने में सफल रहे.

नेहरू-गांधी परिवार से रहा करीबी रिश्ता

बता दें कि अमेठी राज परिवार का नेहरू-गांधी परिवार से करीबी रिश्ता रहा है. राजा माधव बख्श सिंह ने ही मोतीलाल नेहरू को आनन्द भवन बनवाने की सलाह दी थी. 1926 में जवाहरलाल नेहरू ने फैजाबाद-मछलीशहर संयुक्त सीट से चुनाव लड़ा था. तब उन्होंने अपना राजनीतिक केन्द्र अमेठी रियासत को बनाया था. यहीं से उन्होंने अपने चुनाव का संचालन किया.

आजादी के बाद देश में जब रियासतों के विलय का अभियान चला था, तब नेहरू ने अमेठी के तत्कालीन राजा और संजय सिंह के पिता रणंजय सिंह को मंत्री बनने का प्रस्ताव दिया था पर उन्होंने नकार दिया था. इसके बाद रणंजय सिंह अमेठी की सियासत में सक्रिय रहे और नेहरू परिवार से उनके रिश्ते उसी तरह मजबूत बना रहा.

नेहरू के बाद संजय गांधी और फिर राजीव गांधी ने अमेठी को राजनीतिक कर्मभूमि बनाया. उस वक्त भी गांधी परिवार से संजय सिंह के बेहद करीबी रिश्ते थे. संजय गांधी के दौर में ही संजय सिंह ने सियासत में कदम रखा था. 1980 के दशक के दौरान वह दो बार उत्तर प्रदेश के विधायक चुने गए और मंत्री पद पर भी रहे.

हालांकि 1989 में रिश्तों में दरार पड़ गई. इसके बाद वीपी सिंह के साथ उन्होंने कांग्रेस छोड़ दिया. संजय सिंह की शादी वीपी सिंह की भतीजी गरिमा सिंह से हुई थी, लेकिन इस रिश्ते में नया मोड़ 1988 में आया.

सैयद मोदी हत्याकांड में आया नाम

28 जुलाई 1988 को लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम के बाहर विश्व चैम्पियन बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की गोलीमार कर हत्या कर दी गई थी. सैयद मोदी हत्याकांड में शुरुआती जांच के दौरान अमेठी के राजघराने से ताल्लुक रखने वाले तत्कालीन जनमोर्चा नेता संजय सिंह का नाम सामने आया. उस वक्त यूपी की राजनीति में भूचाल आ गया था.

देश की निगाहें इस हाई प्रोफाइल मर्डर केस की जांच पर टिकी थी. हर कोई यही जानना चाहता था कि आखिर किसके इशारे पर इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया था. बताया जाता है कि सैयद मोदी, अमिता मोदी और संजय सिंह के बीच गहरी दोस्ती थी. माना जाता है कि संजय सिंह और अमिता के बीच पनपे प्यार के रिश्ते ने ही सैय्यद मोदी की जान ले ली.

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