अजीत जोगी ने विधानसभा चुनाव में हार के लिए बसपा को बताया जिम्मेदार

रायपुर
 विधानसभा चुनाव से पहले एकतरफा जीत का दावा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जकांछ) के प्रमुख अजीत जोगी ने मान लिया है कि बसपा से गठबंधन की वजह से उनकी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। विधानसभा चुनाव के त्रिकोणीय होने की जिस संभावना के आधार पर जोगी ने सत्ता में आने की जो रणनीति बनाई वह भी धराशायी हो गई, क्योंकि तमाम कोशिशों के बावजूद जकांछ विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय नहीं बना पाई। उसके अलावा जकांछ पर भाजपा की बी टीम होने का ठप्पा भी भारी पड़ा है।

विधानसभा चुनाव में हार की समीक्षा के बाद जकांछ ने रविवार को एक विस्तृत श्वेतपत्र जारी कर बताया है कि वे चुनाव क्यों हारे और उन्हें आगे कैसे काम करना है। पार्टी ने माना है कि बसपा से गठबंधन की वजह से जकांछ को केवल सतनामी समाज और दलितों की पार्टी मान लिया गया। इसकी वजह से अन्य वर्गों के वोट उन्हें नहीं मिले। सरकार से नाराज पिछड़ा और अति पिछड़ा तबका कांग्रेस से जुड़ा।

इसकी वजह से मुकाबला त्रिकोणीय नहीं बन पाया। पार्टी को 15-20 सीटों का नुकसान हुआ। बसपा से गठबंधन को लोगों ने जोगी के क्षेत्रीयतावाद से हटने के रूप में लिया। उन्हें लगा कि अब फैसले रायपुर में नहीं उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में लिए जाएंगे। वहीं भाजपा की बी टीम की छवि और अंतिम समय में राजनांदगांव सीट से अजीत जोगी के चुनाव नहीं लडऩे की घोषणा से भी लोगों में गलत संदेश गया।

जकांछ प्रवक्ता सुब्रत साहू ने कहा 21 बिंदुओं का यह श्वेतपत्र अपनी कमजोरियों को पहचानने, सुधारने और भविष्य में इनपर विजय पाने की कोशिश है। जकांछ के मीडिया समन्वयक संजीव अग्रवाल कहते हैं कि यह आत्मविवेचना है। इस फायदे-नुकसान के बावजूद लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन कायम रहेगा। माना जा रहा है कि चाहे जो भी हो बसपा से गठबंधन के नुकसान बताकर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जकांछ ने दबाव की रणनीति वाले अपने पत्ते खोल दिए हैं।

बसपा बोली- पहले पूरी रिपोर्ट देखेंगे
बसपा के प्रदेश प्रभारी श्रीकांत ने कहा कि उनकी पार्टी जकांछ की पूरी समीक्षा रिपोर्ट देखकर ही अपना रुख तय करेगी।

इनको भी बताया हारने की वजह
– कांग्रेस की मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट नहीं करने की रणनीति काम कर गई।
– चुनाव से ठीक पहले अजीत जोगी बीमार पड़ गए।
– पहले ही टिकट घोषित हो जाने से भाजपा-कांग्रेस के बागियों को मौका नहीं दिया जा सका।
– गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ गठबंधन नहीं हो पाया।
– बस्तर-सरगुजा के लोग जोगी को कांग्रेसी ही मानते रहे।
– पार्टी का घोषणापत्र और चुनाव चिन्ह लोगों तक नहीं पहुंच पाया।
– अल्पसंख्यकों में भरोसा नहीं पैदा कर पाए। भाजपा पर ही हमलावर रहे।

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