छिंदवाड़ा में बच्चों की मौत: दिल्ली की टीम से मिलने नहीं पहुंचे थे CMHO:शुरुआत में ही दवाओं पर करना था बैन: सिविल सर्जन भी हैं CMHO

छिंदवाड़ा के परासिया में बच्चों की मौतों के मामले में जिले के स्वास्थ्य विभाग की निष्क्रियता सामने आई है। शुरुआती तौर पर तीन बच्चों की मौत की सूचना मिलने के बावजूद, विभाग ने कोई त्वरित और ठोस कदम नहीं उठाया।
CMHO का विलंबित और उदासीन रवैया
राज्य शासन की सूचना और मीडिया रिपोर्ट्स के बाद जब दिल्ली की एक टीम बच्चों की मौत की वजह तलाशने परासिया पहुँची, तब भी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. नरेंद्र गोन्नारे घटनास्थल पर नहीं थे।
यह अत्यंत चिंताजनक है कि CMHO ने तब परासिया पहुँचना उचित समझा जब मौतों का आँकड़ा दोगुना हो गया। हालाँकि, वहाँ पहुँचने के बाद भी उनके द्वारा कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं की गई।
प्रशासनिक विफलताएँ और सीमित कार्रवाई
स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई केवल दो दिशाओं तक सीमित रही:
* वेक्टर जनित बीमारी की वजह तलाशने के लिए सैंपलिंग करना।
* इस घटनाक्रम के दौरान CMHO का परासिया में केवल दो-तीन बार से ज़्यादा नहीं जाना।
सबसे बड़ी प्रशासनिक विफलता यह रही कि मौतों का आँकड़ा लगातार बढ़ने के बावजूद, उपसंचालक/CMHO ने अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग नहीं किया। उन्हें वेक्टर जनित बीमारी के सैंपल की रिपोर्ट का इंतज़ार करने के बजाय, अपने स्तर पर डॉ. प्रवीण सोनी की प्रिस्क्रिप्शन वाली दवाओं की खरीदी-बिक्री को 15 दिनों के लिए अस्थायी रूप से प्रतिबंधित कर देना चाहिए था। यह कदम उनके अधिकार क्षेत्र में था, फिर भी उन्होंने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
दोहरी जिम्मेदारी पर सवाल
डॉ. नरेंद्र गोन्नारे एक ही समय में जिला अस्पताल में सिविल सर्जन और CMHO के दो महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ हैं। स्वास्थ्य महकमे के इस उदासीन और गैर-जिम्मेदाराना रवैये ने स्पष्ट कर दिया कि यदि समय रहते कार्रवाई की जाती, तो कई परिवारों की गोद उजड़ने से बच सकती थी। यह घटना जवाबदेही और तत्परता की कमी पर गंभीर सवाल खड़े करती है।