विलुप्त हो चुकी शान्तिरानी साड़ी पुनर्जीवन के बाद फिर से साड़ी प्रेमियों की पसंद बनी

रायपुर
देश और विदेश में छत्तीसगढ़ की समृद्ध कारीगरी का उदाहरण बनी शान्तिरानी साड़ी नई दिल्ली के साड़ी प्रेेमियों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। नई दिल्ली के छत्तीसगढ़ भवन में लगी हैंडलूम प्रदर्शनी में अब तक सैकड़ों  खरीददारों ने छत्तीसगढ़ी बुनकरों से उनके उत्पाद खरीदे हैं ।

कोसा साड़ियों की कारीगरी के  लिए प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ के बुनकरों ने एक विलुप्त हो चुकी साड़ी को पुनर्जीवन प्रदान किया है। शान्तिरानी के नाम से प्रसिद्ध यह विशिष्ट कारीगरी वाली साड़ी 1980 के पूर्व काफी चलन में थी और छत्तीसगढ़ तथा बाहर के प्रदेशों के लोग भी इसे काफी पसंद करते थे। परन्तु अपनी दुरूह शैली और अत्यधिक परिश्रम के चलते इसे कारीगरों ने बनाना बंद कर दिया था। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ के बुनकरों ने पुराने संदर्भ को जुटा कर परिश्रम से इसे पुनः नया जीवन प्रदान कर दिया है । यह साड़ी अब पुनः देश और विदेश में छत्तीसगढ़ की समृद्ध कारीगरी का उदाहरण बन गयी है ।

इस विशिष्ट शैली को पुर्नजीवित करने वाले छत्तीसगढ़ के रायगढ़ के बुनकर कन्हैया देवागंन ने बताया कि इस साड़ी की खासियत यह है कि इसमें सूक्ष्म और महीन कार्य होता है तो बिन्दुओं को इस प्रकार मिलाना होता है कि वह एक निश्चित आकार ले सके । इसमें धागों को पहले विभिन्न रंगों में रंगा जाता है और फिर सावधानीपूर्वक ताना-बाना में सेट किया जाता है ।  इसके लिए काफी परिश्रम और पूर्णता से कार्य करना होता है और काफी अनुभवी कारीगर ही इसे अंजाम दे सकता है । उन्होंने बताया कि इस साड़ी में 7 , 8 और 9 लाईने होती है और वे जब आपस में मिलती है तो नियत आकार के चैक्स  का रूप ले लेती है । उन्होंने बताया कि शान्तिरानी साड़ी छत्तीसगढ़ से विदेशों को भी निर्यात की जा रही है ।

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