छत्तीसगढ़ के अंडा उत्पादक नकारत्मक विरोध से आहत

रायपुर
राज्य सरकार ने शासकीय स्कूलों व आंगनबाड़ी केन्द्रों में मध्यान्ह भोजन में अंडे को शामिल करने का निर्णय लिया है यह स्वागत योग्य कदम है इसलिए कि कुपोषण को दूर करने के लिए अण्डा सबसे अधिक सशक्त माध्यम है जिसका प्रोटीन जैविक गुणांक 94 फीसदी होता है और मां के दूध का 100 फीसदी, इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुमोदित किया है।

लेकिन कथित तौर पर कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं और इसके लिए वे कारण भी गलत दर्शा रहे हैं। आज छत्तीसगढ में जितना उत्पादन है उसकी तुलना में खपत भी पर्याप्त है। विडंबना इस बात की है जो लोग कुक्कुट के व्यवसाय से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए चाहे किसी भी रूप में हो विरोध कर रहे हैं। पर उनका मकसद किसी से प्रतिस्पर्धा करना नहीं और न ही किसी का विरोध पर भोजन की स्वतंत्रता पर रोक लगाने का अधिकार भी किसी को नहीं हैं। छत्तीसगढ़ से पहले भी कई राज्यों में अंडों का वितरण किया जा रहा है।

रायपुर में अंडा उत्पादक कुक्कुट पालक किसानों की प्रदेश स्तरीय बैठक हुई जिसमें पीपुल्स फार फोल्ट्री के अध्यक्ष डा. मनोज शुक्ला, नेशनल एग कोआर्डिनेशन के चेयरमेन अचिन बेनर्जी और छग स्टेट पोल्ट्री फार्मर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एस के सूर सहित राज्य के विभिन्न जिलों से आये कुक्कुट पालक किसानों नें हिस्सा लिया। बैठक में कुक्कुट पालकों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के इस फैसले का स्वागत किया जिसमें उन्होनें राज्य से बाल-कुपोषण हटाने की दिशा में अंडे को मध्यान्ह भोजन में सम्मिलित करने का निर्णय लिया है। यह सर्वविदित है कि अंडा एक उत्तम पोषक आहार है जो कि कुपोषण हटाने में मुख्य भूमिका निभा सकता है। इसी तारतम्य में देश के लगभग 15 राज्यों नें अपने अपने सरकारी स्कूलों तथा आंगनबाडि?ों के मध्यान्ह भोजन में तीन से पाँच अंडे प्रति सप्ताह प्रति बालक देने का प्रावधान रखा है,जिसके की सकारात्मक परिणामों को बच्चों के स्वास्थ्य में निरन्तर आ रहे सुधारों से समझा जा सकता है।

प्रदेश के अंडा उत्पादक किसानों नें कहा कि उन्हें उनके फार्मों के अंडे ना तो कल बेचने में परेशानी थी और ना ही भविष्य में होगी, क्योंकि ना सिर्फ प्रदेश में बल्कि समूचे देश में अंडों की खपत तेजी से बढ़ रही है, इसलिए उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मध्यान्ह भोजन में अंडा शामिल किया जाएगा अथवा नहीं। किंतु प्रदेश में बाल-कुपोषण की भयावहता को देखते हुए अब यह आवश्यक हो गया है कि अपने उत्पाद की पोषक गुणवत्ता को जनमानस के बीच लाकर यह बताया जाए कि अन्य राज्यों की तरह हमारे राज्य में भी यदि अंडा सफलतापूर्वक बिना किसी विरोध के बच्चों के मध्यान्ह भोजन में लागू हो जाता है तो हम भी अपने राज्य को अतिशीघ्र बाल-कुपोषण मुक्त बना सकते हैं और इसके लिए अब अंडा उत्पादक किसान शांतिपूर्ण तरीके से अपना पक्ष राज्य सरकार तथा राज्य की जनता के बीच रखेंगे।

भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है जिसमें प्रत्येक वर्ग तथा सम्प्रदाय के व्यक्तियों को संवैधानिक दायरे में अपनी रुचि के अनुसार भोजन चयन का अधिकार प्राप्त है, इन परिस्थितियों में यह अधिकार ना तो किसी धार्मिक संस्था को और ना ही किसी संगठन को है कि वह किसी व्यक्ति के भोजन चयन के अधिकारों को प्रभावित करे। यह भी अत्यंत ही हास्यास्पद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन लोगों का स्वत: का व्यवसाय, कुक्कुट पालन से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है वो लोग भी ज्ञापन देते घूम रहे हैं कि बच्चों के मध्यान्ह भोजन में अंडा शामिल ना किया जाए। हम कबीरपंथ समेत हर समाज की भावनाओं का पूर्ण सम्मान करते हैं। अगली बैठक 6 अगस्त को प्रस्तावित है जिसमें आगे की रणनीति पर विचार कर उसका क्रियान्वयन किया जाएगा। बैठक में प्रमुख रूप से एस.एस. ब्राम्हणकर, किशोर घोष, पंकज माथुर, मनोज कुरुपा, रवि सरीन, किरण पटेल, संजीव जग्गी, हरदीप सिंग, डिम्पी जग्गी, गौतम घोष, हैप्पी आवल सहित प्रमुख लोग उपस्थित थे।

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