कोरोना से जंग में धारा 144 लगा तो डरना कैसा? यह तो सबसे बड़ी दवा है

 
नई दिल्ली

कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने के लिए देश के कुछ इलाकों में आपराधिक दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 लागू करने का ऐलान होने लगा तो लोग घबराने लगे। घबराहट का ही परिणाम है कि खाने-पीने के सामान ज्यादा-से-ज्यादा मात्रा में इकट्ठा करने की होड़ मच गई। हालांकि, ऐसा होना नहीं चाहिए।

जागरूकता से समाधान, अफवाह से समस्या
जब देश ही नहीं, पूरी दुनिया एक भयावह संकट के दौर से गुजर रहा हो तो हम सब की जिम्मेदारी बन जाती है कि खुद को ज्यादा-से-ज्यादा जागरूक बनाएं, न कि अफवाहों का शिकार बन जाएं। जागरूकता से समाधान ढूंढा जा सकता है जबकि अफवाहों के पीछे भागने से समस्या बढ़ती है। हमें पता होना चाहिए कि हमारे देश में कोरोना वायरस मूलतः विदेशों से आ रहे संक्रमित लोगों के संपर्क में आने से फैला और फैल रहा है। अभी भारत में इसका संक्रमण दूसरे चरण तक ही सीमित है जिसके तहत वायरस इंडिविजुअल लेवल पर ही फैलता है।
 

…तब दूसरे चरण में ही सीमित रहेगा संक्रमण
अगर अतिरिक्त सावधानी नहीं बरती जाए और जागरुकता को भरपूर तवज्जो नहीं दिया जाए तो फिर यह प्रसार के तीसरे चरण में पहुंच सकता है। यह चरण होता है कम्यूनिटी लेवल का। तब लोग समूहों में संक्रमित होने लगते हैं, जैसा कि पहले चीन में हुआ और अब इटली में देखा जा रहा है। वायरस के संक्रमण के तीसरे चरण में पहुंचने की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इटली में एक दिन में ही 475 लोगों की मौत हो गई।

धारा 144 की जरूरत क्यों
ऐसे में सवाल उठता है कि हमारा देश कोरोना वायरस के संक्रमण के तीसरे चरण में नहीं पहुंच पाए, यह सुनिश्चित करने में एक नागरिक के तौर पर हमारा क्या योगदान हो सकता है? इसका जवाब कहीं न कहीं इसी धारा 144 में छिपा है। दरअसल, धारा 144 के तहत एक साथ 3 से ज्यादा लोगों के जमा होने की मनाही होती है। हमें पता है कि समाज का हर व्यक्ति इतना समझदार नहीं होता कि वह अपनी तरफ से झुंड नहीं बनाने की सतर्कता बरते।
 
शाहीन बाग का सर्वोत्तम उदाहरण
यहां तो स्थिति ऐसी है कि तमाम प्रयासों के बावजूद दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी धरना खत्म नहीं किया जा रहा है। वहां सैकड़ों लोग जमा हो रहे हैं। वो खुद भी दुनियाभर में कोरोना वायरस के कहर से वाकिफ हैं। विभिन्न स्तर पर उन्हें समझाया भी जा रहा है कि धरने में शामिल कोई एक व्यक्ति भी संक्रमित हो गया तो इसका कितना भयावह परिणाम निकल सकता है, लेकिन वो नहीं मान रहे। बहरहाल, शाहीन बाग का उदाहरण देने का मकसद यह है कि ऐसे नाजुक हालात में सिर्फ लोगों की समझ पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, बल्कि कानून का डर भी पैदा करना पड़ता है।
 

असली दवा है धारा 144
इसलिए, धारा 144 के तहत लागू निषेधाज्ञा को नकारात्मक दृष्टि से नहीं देखें। यह कोरोना के खिलाफ जंग का बेहद आसान तरीका है। अगर हमने सरकार की तरफ से हो रही जोर-आजमाइश में अपनी समझदारी साझा कर दी तो कोरोना के कारण फैल रही कोविड-19 बीमारी की गति यूं ही नियंत्रित रखा जा सकती है। बस हमें यही समझना होगा कि धारा 144 कोई आसन्न संकट की निशानी नहीं, बल्कि कोरोना से निपटने की असली दवा है।
 

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