2018 में अपनी साख मजबूत बनाए रखने के लिए जूझती रही बिहार की राजनीति

  
पटना

राजद सुप्रीमो लालू यादव को चारा घोटाला मामले में सजा सुनाए जाने के बाद एनडीए के हमलावर रुख से 2018 में बिहार की राजनीति गरमाई रही। उपचुनाव, भागलपुर-दरभंगा उपद्रव एवं मुजफ्फरपुर गृह कांड मामले पर विपक्ष के पलटवार से लेकर रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के पाला बदलने तक लगातार बिहार की राजनीति गर्म रही और पूरे साल अपनी साख मजबूत बनाए रखने को जूझती रही।

राजद अध्यक्ष के रांची जेल में बंद होने से वर्ष 2018 के पहले दिन उनके पटना स्थित आवास पर सन्नाटा पसरा रहा, वहीं इसको लेकर एनडीए हमलावार रही। बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने अपनी पार्टी के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के संकल्प को आगे बढ़ाते हुए कहा कि राज्य के लोगों को जल्द ही ‘लालटेन’ से छुटकारा मिल जाएगा। वहीं, जदयू ने राजद की राजनीति के खात्मे की घोषणा करते हुए कहा कि राज्य को अराजकता की आग में झोंकने वाले लालू एवं उनके परिवार की अब प्रदेश की सत्ता में कभी वापसी नहीं हो सकेगी।

राजद अभी जवाब देने की तैयारी ही कर रहा था कि 06 जनवरी को सीबीआई की विशेष कोर्ट ने लालू को चारा घोटाले के एक मामले में साढ़े 3 वर्ष कारावास की सजा सुना दी। राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा गर्म हो गई कि लालू के बाद राजद का क्या होगा। इसी बीच अघोषित रूप से पार्टी की कमान राजद प्रमुख के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने संभाल ली। उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता इसका करारा जवाब देगी।

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