संतान सप्तमी व्रत का महत्व जानें क्यों किया जाता है

संतान सप्तमी व्रत का महत्व जानें क्यों किया जाता है

संतान सप्तमी व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। सप्तमी तिथि को भगवान सूर्य को समर्पित किया गया है। कहते हैं संतान सप्तमी व्रत संतान की कामना करने वालों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। तो आप को बताते है व्रत कथा नियम संतान सप्तमी व्रत भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को संतान सप्तमी और अनंत सप्तमी के नाम से जाना जाता है। भविष्य पुराण में बताया गया है कि सप्तमी तिथि भगवान सूर्य को समर्पित है। सप्तमी तिथि के दिन भगवान सूर्य की पूजा अर्चना करने से आरोग्य औऱ संतान सुख की प्राप्ति होती है।

भविष्य पुराण में बताया गया है कि भगवान सूर्य की अष्टदल बनाकर उनकी पूजा करें। भगवान को श्रद्धा अनुसार घी का या तेल का दीप जलाये और फूल माला या लाल कनेर का फूल मिल जाए तो इसका अर्पण करने से पूजा अति फलदायी होती है इनके साथ गुड़ और आटे का प्रसाद और मीठी पूड़ी का नेवद बनाकर भगवान सूर्य को अर्पित करें। सूर्य देव की पूजा में लाल वस्त्र धारण करना चाहिए।साथ ही साथ इसमें चांदी का चूड़ा महिला पूजन में शामिल करते है फिर इसका चूड़ा धारण करने से संतान के लिए शुभ होता है।

संतान सप्तमी व्रत की कथा

संतान सप्तमी व्रत संतान सुख प्रदान करने वाला व्रत है। इस व्रत से संतान को आरोग्य और दीघायु की प्राप्ति होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार पांडु पुत्र युधिष्ठिर को भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के महत्व को बताते हुए कहा था कि इस दिन व्रत करके सूर्य देव और लक्ष्मी नारायण की पूजा करने से संतान की प्रप्ति होती है। भगवान ने बताया कि इनकी माता देवकी के पुत्रों को कंस जन्म लेते ही मार देता था। लोमश ऋषि ने माता देवकी को तब संतान सप्तमी व्रत के बारे में बताया। माता ने इस व्रत को रखा और लोमश ऋषि के बताए विधान के अनुसार माता ने इस व्रत के नियम का पालन किया इससे मेरा जन्म हुआ और मैंने कंस के अत्याचार से धरती को मुक्ति दिलाई।यह कथा बहुत प्रचलित है जिससे लोगों ने शिक्षा लेकर इस व्रत को करते है ।